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Showing posts from 2016

500/1000 के नोट जमा कराने और बदलने में क्‍या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए:-

कार्यलय व  घर में रखे 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बैंक में जमा कराने जा रहे हैं या पुराने नोट बदलने जा रहे हैं तो इसके लिए कुछ सावधानियाँ जरूरी हैं। वरना आप इनकम टैक्‍स विभाग के शिकंजे में फंस सकते हैं। आपके बैंक खाते पर सरकार की नजर है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि खाते में पैसे जमा कराने और नोट बदलने में आपको क्‍या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए। 1) एक ला ख रुपए तक जमा कराने में दिक्‍कत नहीं । वेतनभोगी वर्ग के लोग, गृहणी या छोटे सेवा प्रदाता व व्यापारी अगर अपने अकाउंट में एक लाख रुपए तक जमा कराते हैं या 1 लाख रुपए के पुराने नोट बदल कर नए नोट लेते हैं तो ऐसे लोगों को कोई दिक्‍कत नहीं होगी। 2) जमा करें इनकम टैक्‍स रिटर्न:- अगर आप बैंक में पचास हजार या एक लाख रुपए जमा करा रहे हैं तो आप मार्च 2016 तक और मार्च 2017 का रिटर्न जरूर भरें। मार्च 2016 का रिटर्न अब भी भरा जा सकता है। अगर आप इनमक टैक्‍स रिटर्न नहीं भरते हैं और बैंक में 1 लाख या दो लाख रुपए जमा कराते हैं तो इनकम टैक्‍स विभाग की नजर में आ सकते हैं। 3) बचत खाते में दस लाख रुपए से ज्‍यादा जमा न करें:- आपको बचत खातें मे

Be a Not Negotiable :: स्वयं को बिकाऊ मत बनने दो !

Be a Not Negotiable स्वयं को बिकाऊ मत बनने दो "स्वच्छ मतदान, राष्ट्र निर्माण" अगर आप भारतीय हैं तो मतदान अवश्य करें! निवेदक:-  अंशुमान दुबे   (एडवोकेट) पूर्व उपाध्यक्ष दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी #UP_2017_ELECTION #BCUP_2016_Election #BBA_2016_ELECTION #CBA_2017_ELECTION #AdvAnshuman Be a Not Negotiable  ::  स्वयं को बिकाऊ मत बनने दो !

वकीलों का काला कोट गुलामी का प्रतीक:-

हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था में काम करने वाले जो एडवोकेट मित्र हैं। उनसे और अपने आपसे माफ़ी मांगते हुए आप सबसे ये पूछता हूँ कि - क्या आप जानते हैं, यह काला कोट पहन के अदालत में क्यों जाते हैं? क्या काले को छोड़ के दूसरा रंग नहीं है भारत में? सफ़ेद नहीं है। नीला नहीं है। पीला नहीं है। हरा नहीं है? और कोई रंग ही नहीं है। काला ही कोट पहनना है। वो भी उस देश की न्यायपालिका में जहाँ तापमान 45 डिग्री हो। तो 45 तापमान जिस देश में रहता हो। वहाँ के वकील काला कोट पहन के बहस करें। तो बहस के समय जो पसीना आता है। वो और गर्मी के कारण जो पसीना आता है वो। तरबतर होते जायें। और उनके कोट पर पसीने से सफ़ेद सफ़ेद दाग पड़ जायें। पीछे कालर पर और कोट को उतारते ही इतनी बदबू आये कि कोई तीन मीटर दूर खिसक जाये। लेकिन फिर भी कोट का रंग नही बदलेंगे। क्योंकि ये अंग्रेजों का दिया हुआ है। आपको मालूम है। अंग्रेजो की अदालत में काला कोट पहन के न्यायपालिका के लोग बैठा करते थे। और उनके यहाँ स्वाभाविक है । क्योंकि उनके यहाँ न्यूनतम -40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होता है। जो भयंकर ठण्ड है। तो इतनी ठण्ड वाली देश में काला कोट ही पहनन

ढ़ाई आखर प्रेम का :: डॉ. जाकिर नायक

विगत दो दिनों में तथाकथित धर्मगुरु डॉ. जाकिर नायक के youtube video देखा, सुना व समझा तो महसूस हुआ कि डॉ. साहब हर चीज़ का reference देते हैं... कुरान का फला पृष्ठ, वेद का फला पृष्ठ, बाइबल का फला पृष्ठ.. आदि आदि। और तो और सारी तकरीरें/भाषण अंग्रेजी भाषा में... क्या देश का मुसलमान इतना शिक्षित हो चुका है..??? हमारे लाखों गरीब मुसलमान भाइयों का क्या...??? पहले वे अंग्रेजी सीखे तब ना, डॉ. साहब समझ में आयेंगें। इन सब पर मेरे प्यारे फकीर "कबीर" ने बहुत पहले कह दिया था, जो डॉ. जाकिर नायक को श्रद्धा पूर्वक स्वरुप समर्पित है... "पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय॥" #AdvAnshuman #भारतमेराधर्म

अधिवक्ता पेंशन व युवा अधिवक्ता भत्ता... आंदोलन एक यात्रा:-

अधिवक्ता पेंशन कल्याणकारी योजना के लिये निरन्तर आंदोलन करते रहना है। हम अधिवक्ता बंधुओं को अगर अच्छी योजना बनाकर दिया जायेगा तो हम व्यक्तिगत अंशदान को भी तैयार हैं। 2009 में जब यह आंदोलन शुरु हुआ तो न बार एसोसिएशन साथ मे था और ना बार काउंसिल। फिर 2010 में बनारस बार और फिर सेन्ट्रल बार साथ में आया। पेंशन उपसमिति बनी। उत्तर प्रदेश अधिवक्ता पेंशन (कल्याणकारी) योजना नियम, 2010 का प्रारूप बना और तत्कालीन प्रदेश सरकार व बार काउंसिल को भेजा गया। पर कुछ न हुआ 2012 विधानसभा चुनाव व बार काउंसिल चुनाव आया। समाजवादी पार्टी व भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अधिवक्ता पेंशन व युवा अधिवक्ता भत्ता सम्मिलित कर लिया। यह देख काफी बार काउंसिल व बार एसोसिएशन के प्रत्याशियों ने भी अधिवक्ता पेंशन व युवा अधिवक्ता भत्ता का वादा किया। यह हमारी मांग की मौलिक विजय थी। चुनाव के पश्चात स.पा. सरकार व उसके मुख्यमंत्री व मंत्रियों ने वकीलों के हर सम्मेलनों में व गोष्ठी में अधिवक्ता पेंशन व युवा अधिवक्ता भत्ता की बात दोहराई है पर 5 (पाँच) साल होने को आये किया कुछ नहीं। अधिवक्ता पेंशन योजना व युवा अधिव

BCI Verification Rules ~Vs.~ BCUP

निम्न स्तर की व्यवस्था में बिना सही नियोजन के उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने 10.06.2016 तक 70000+ अधिवक्ता बंधुओं के वेरिफिकेशन फार्म जमा करा लिये हैं। अब देखना यह होगा कि इन फार्मों की जांच के उपरांत कब तक Certificate of Practice (COP) तथा वैधता तिथि के साथ वाला Identity Card कब तक मिलता है...??? यहां यह भी देखने योग्य होगा कि जिन अधिवक्ता बंधुओं ने वेरिफिकेशन फार्म नहीं भरा है, उनका क्या होता है...??? वेरिफिकेशन फार्म भरकर अधिवक्ता बंधुओं ने गेंद अब बार काउंसिल अॉफ इंडिया तथा बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश के पाले में डाल दी हैं, अब देखना है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले अब क्या-क्या करते हैं...??? वैसे यह कहने में कोई कष्ट नहीं है कि जिस तरीके से वेरिफिकेशन फार्म भरें व भरवायें गये हैं वह कहीं से भी स्तरीय नहीं था और यह खेद का विषय है। बार काउंसिल का अधिवक्ताओं प्रति रवैया सही नहीं था। अॉनलाइन के युग में बाबा आदम के जमाने का तरीका, जहां एक पृष्ट के अॉनलाइन फार्म से काम चल सकता था वहां बिना बात के 11 पृष्ठ का फार्म manually भरवाया गया। #AdvAnshuman

न्यायपालिका:-

पूरी न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर हमारा उच्चतम न्यायालय है। हर राज्य या कुछ राज्यों के समूह पर उच्च न्यायालय है। उनके अंतर्गत निचली अदालतों का एक समूचा तंत्र है। कुछ राज्यों में पंचायत न्यायालय अलग-अलग नामों से काम करते हैं, जैसे न्याय पंचायत, पंचायत अदालत, ग्राम कचहरी इत्यादि। इनका काम छोटे और मामूली प्रकार के स्थानीय दीवानी और आपराधिक मामलों का निर्णय करना है। राज्य के अलग-अलग कानून इन अदालतों का कार्यक्षेत्र निर्धारित करते हैं। प्रत्येक राज्य न्यायिक जिलों में विभाजित है। इनका प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश होता है। जिला एवं सत्र न्यायालय उस क्षेत्र की सबसे बड़ी अदालत होती है और सभी मामलों की सुनवाई करने में सक्षम होती है, उन मामलों में भी जिनमें मौत की सजा तक सुनाई जा सकती है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश जिले का सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है। उसके तहत दीवानी क्षेत्र की अदालतें होती हैं जिन्हें अलग-अलग राज्यों में मुंसिफ, उप न्यायाधीश, दीवानी न्यायाधीश आदि नाम दिए जाते हैं। इसी तरह आपराधिक प्रकृति के मामलों के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्

कानूनी व्यवसाय:-

देश के कानूनी व्यवसाय से संबंधित कानून अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और देश की बार काउंसिल द्वारा निर्धारित नियमों के आधार पर संचालित होता है। कानून के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिए यह स्वनिर्धारित कानूनी संहिता है जिसके तहत देश और राज्यों की बार काउंसिल का गठन होता है। अधिवक्ता कानून, 1961 के तहत पंजीकृत किसी भी वकील को देश भर में कानूनी व्यवसाय करने का अधिकार है। किसी राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत कोई वकील किसी दूसरे राज्य की बार काउंसिल में अपने नाम के तबादले के लिए निर्धारित नियमों के अनुसार आवेदन कर सकता है। कोई भी वकील एक या ज्यादा राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत नहीं हो सकता है। अधिवक्ताओं की दो श्रेणियां हैं जिनमें से एक को वरिष्ठ अधिवक्ता और शेष को अधिवक्ता कहा जाता है। यदि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय का यह मत है कि कोई अधिवक्ता अपनी योग्यता अदालत में अपनी स्थिति, विशेष जानकारी या कानूनी अनुभव के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता बनने का अधिकारी है तो उसे उसकी सहमति से वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता किसी अन्य अधिवक्ता के बगैर उच्चतम न्यायालय में पेश नहीं

अधिवक्ता कल्याण कोष:-

कनिष्ठ वकीलों को वित्तीय सहायता मुहैया कराकर उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना और दरिद्र एवं विकलांग वकीलों के लिए कल्याण कार्यक्रम चलाना कानूनी बिरादरी के लिए सदैव महत्वपूर्ण रहा है। कई राज्यों ने इस विषय पर अपने अलग विधान बनाए हैं। संसद में ‘अधिवक्ता कल्याण कोष कानून, 2001’ पारित किया है। यह कानून उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के लिए मान्य् है जहां इस विषय पर कोई कानून नहीं बना है। इस कानून का उद्देश्य है कि संबंधित सरकार ‘अधिवक्ता कल्याण कोष’ का गठन करे। इस कानून में यह अनिवार्य है कि हर वकील किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण और प्राधिकार में वकालतनामा दाखिल करने के लिए निश्चित मूल्य के टिकट लगाए। ‘अधिवक्ता कल्याण कोष टिकट’ से जुटाई गई राशि अधिवक्ता कल्याण कोष का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। सभी वकील आवेदन राशि और वार्षिक चंदा देकर अधिवक्ता कल्याण कोष के सदस्य बन जाते हैं। इस कोष का संचालन संबद्ध सरकार द्वारा गठित ट्रस्टी करती है। सदस्य को गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने पर इस कोष से अनुदान राशि दी जाती है या वकील की प्रैक्टिस बंद हो जाने पर एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। वकील की

वकालत के साथ आजीविका के लिए अन्य कार्य व्यवसायिक दुराचरण:-

बार कौंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के पार्ट IV के चैप्टर II के सैक्शन 7 नियम 47-52 में एक एडवोकेट पर अन्य व्यवसायिक गतिविधियाँ करने पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं, ये निम्न प्रकार हैं – Section VII-Restriction on other Employments 47. An advocate shall not personally engage in any business; but he may be a sleeping partner in a firm doing business provided that in the opinion of the appropriate State Bar Council, the nature of the business is not inconsistent with the dignity of the profession. 48. An advocate may be Director or Chairman of the Board of Directors of a company with or without any ordinarily sitting fee, provided none of his duties are of an executive character. An advocate shall not be a Managing Director or a Secretary of any company. 49. An advocate shall not be a full-time salaried employee of any person, government, firm, corporation or concern, so long as he continues to practise, and shall, on taking up any such employment, intimate the fact to the Bar Council on whose r

Bar Council of India to Filter Lawyers with Mandatory Certificate of Practice

Now, a law degree and enrolment with respective state Bar Councils will not be enough to be a practising lawyer. Wary of the tendency of law graduates to switch careers after being enrolled, the Bar Council of India (BCI) has introduced a new rule mandating a certificate of practice for advocates i.e. BCI Certificate and Place of Practice (Verification) Rules, 2015. The BCI, at a joint meeting of the representatives of all state bar councils, had  expressed concern over the growing exodus of lawyers, many of them who shift to other jobs without informing the professional body. An Advocate would not be entitled to practice law unless he holds a valid certificate of practice issued either under BCI All India Bar Examination Rules or the newly amended BCI Certificate and Place of Practice (Verification) Rules, 2015. The Certificate of Practice has to be renewed once every five years. According to the BCI, the legal profession is slipping out of the hands of practising advocates. The va

प्रातःकालीन न्यायालय पर रार :-

***प्रातःकालीन न्यायालय का समय 2003 में जब मैंने वाराणसी कचहरी में वकालत करना शुरू किया था तो तत्समय 06:30 से 12:30 तक हुआ करता था। वर्ष 2014 में हाईकोर्ट ने प्रातःकालीन न्यायालय को समाप्त कर दिया जिसके विरोध में 2014 के माह मई/जून कोई कार्य नहीं हुआ अर्थात दो माह प्रातःकालीन न्यायालय के लिए आंदोलन स्वरुप बनारस व अन्य जिलों के अधिवक्ता संघों ने कार्य से विरत रहने का प्रस्ताव पारित किया। 2014 के आंदोलन का असर रहा कि 2015 में हाईकोर्ट से प्रातःकालीन न्यायालय का समय 8:30 से 2:30 प्रस्तावित किया गया और प्रातःकालीन समय न स्वीकार करने के दशा में न्यायालय की समयावधि 10:00 से 5:00 रहने की बात भी कही गयी थी। हाईकोर्ट के प्रस्ताव पर सेन्ट्रल बार एसोसिएशन में 2015 में संयुक्त बार की बैठक हुयी, जिसमें निर्णय हुआ कि 8:30 से 2:30 समय अस्वीकार है और विरोध स्वरूप हर माह की 28 तारीख को अधिवक्ता बंधु कार्य से विरत रहेंगे और 10 से 5 कार्य करेगें। यह क्रम सालभर चलता रहा। परन्तु किसी भी पदाधिकारी चाहे वह बार संघ अथवा बार काउंसिल का हो, ने यह विचार नहीं किया कि हाईकोर्ट के इस निर्णय को बुन्देलखण्ड व पूर्व

बसंती चोले संग होली 2016 की शुभकामनाएँ:-

Kashi Smart City :: काशी स्मार्ट सिटी:-

काशी smart city::: facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...??? काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी। मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था। आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं। तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..??? बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चु