Skip to main content

चर्चा विराम का नुस्खा : अधजल गगरी छलकत जाय

लेखक कुलवंत हैप्पी

यह कहावत तब बहुत काम लगती है, जब खुद को ज्ञानी और दूसरे को मूर्ख साबित करना चाहते हों। अगर आप चर्चा करते हुए थक जाएं तो इस कहावत को बोलकर चर्चा समाप्त भी कर सकते हैं मेरी मकान मालकिन की तरह। जी हाँ, मेरी जब जब भी मेरी मकान मालकिन के साथ किसी मुद्दे पर चर्चा होती है तो वे अक्सर इस कहावत को बोलकर चर्चा को विराम दे देती है। इसलिए अक्सर मैं भी चर्चा से बचता हूँ, खासकर उसके साथ तो चर्चा करने से, क्योंकि वो चर्चा को बहस बना देती है, और आखिर में उक्त कहावत का इस्तेमाल कर चर्चा को समाप्त करने पर मजबूर कर देती है। मुझे लगता है कि चर्चा और बहस में उतना ही फर्क है, जितना जल और पानी में या फिर आईस और स्नो में।

कभी किसी ने सोचा है कि सामने वाला अधजल गगरी है, हम कैसे फैसला कर सकते हैं? क्या पता हम ही अधजल गगरी हों? मुझे तो अधजल गगरी में भी कोई बुराई नजर नहीं आती। कुछ लोगों की फिदरत होती है, हमेशा सिक्के के एक पहलू को देखने की। कभी किसी ने विचार किया है कि अधजल गगरी छलकती है तो सारा दोष उसका नहीं होता, कुछ दोष तो हमारे चलने में भी होगा। मुझे याद है, जब खेतों में पानी वाला घड़ा उठाते थे, तो वहाँ भरा हुआ भी छलकता था, और अध भरा  भी छलकता था, क्योंकि खेतों में जमीं समतल नहीं होती, जब जमीं समतल नहीं होगी, तो हमारे पाँव भी सही से जमीं पर नहीं टिक पाएंगे।

अधजल गगरी से याद आया, हमारे गाँव में लाजो-ताजो नामक दो बहनें रहती थी, वो पानी भरने के लिए गाँव से बाहर कुएं पर जाती थी, दूसरी महिलाओं की तरह। तब तो गाँव के रास्ते भी कच्चे थे, स्वाभिक था ऐसे में पाँव पर मिट्टी का पाऊडर लगना। ताजो का घड़ा बिल्कुल नया था, जबकि लाजो के घड़े के ऊपर वाले हिस्से में छोटा सा सुराख था, इसलिए वो हमेशा अपने घड़े को अधभरा रखती। जब वो घड़ा लेकर चलती तो पानी घड़े के भीतर छलकता, ऐसे में कुछ पानी जमीं पर गिर जाता और कुछ उसके जिस्म पर, जो उसके जिस्म को ठंड पहुंचाता। ताजो का घड़ा, लाजो के सुराख वाले घड़े को देखकर अक्सर सोचता, एक तो मुझसे आधा पानी लाता है, ऊपर से लाजो को भिगोता है, फिर भी मुझसे ज्यादा लाजो इसकी तरफ ज्यादा ध्यान देती है। कुछ समय बाद सुराख वाला घड़ा टूट गया, उसके टूटने पर लाजो को वैसा ही सदमा पहुंचा, जैसा किसी अपने के चले जाने पर पहुंचता है। रोती हुई लाजो को दूसरे घड़े ने सवाल किया कि तुम इसके लिए क्यों रो रही हो, ये घड़ा तो अक्सर तुम्हें भिगोता था, और पानी भी मुझसे आधा लाता था। तो लाजो ने कहा, "तुम्हें याद है, जब तुम हमारे घर नए नए आए थे"। घड़ा बोला," हाँ, मुझे याद है"। लाजो ने कहा, "तुमने देखा था तब उस रास्ते को जहाँ से हम रोज गुजरते हैं'। घड़ा ने कहा, 'हाँ', तब वो बिल्कुल घास रहित था"। घास रहित शब्द सुनते ही लाजो ने कहा, "अगर उस रास्ते पर घास उग आई है, तो सिर्फ और सिर्फ इस सुराख वाले घड़े के कारण, अगर ये घड़ा छलकता न, तो कभी भी उस रास्ते पर आज सी हरियाली न आती"। इतना सुनते ही दूसरा घड़ा चुप हो गया।

जरूरी नहीं कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब, बाईबल, गीता और कुरान का तोता रटन करने वाला ज्ञानी हो, ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई व्यक्ति इन सब धार्मिक ग्रंथों की अच्छी अच्छी बातें ग्रहण कर, अच्छी तरह से अपने जीवन में उतार ले। इस मतलब यह तो न होगा कि सामने वाले के पास अल्प ज्ञान है, सिर्फ इस आधार पर कि उसको पूरे ग्रंथ याद नहीं। मुझे लगता है, जितना उसके पास है, वो उसके लिए काफी है, क्योंकि वो तोता रटन करने की बजाय, उसको समझकर जीवन में उतरा रहा है, जो लोग तोता रटन पर जोर देते हैं, वो धार्मिक होकर भी ताजो के भरे हुए घड़े की तरह किसी दूसरे का फायदा नहीं कर सकते, और ताजो की घड़े की तरह अधजल वाले लाजो के घड़े से ईष्या करते रहते हैं। ग्रंथों में ईष्या को त्यागने के बारे में सिखाया गया है, लेकिन तोता रटन करने वाला क्या जाने इस ज्ञान को।

Comments

Popular posts from this blog

"तुलसी दोहा शतक'' में गोस्वामी तुलसीदास ने किया था राम मंदिर को तोड़े जाने का जिक्र :: #AdvAnshuman

एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते ? ये बात सही है कि रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था और यह सब झूठ है। यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया।  उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस

लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ:-

वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है।  जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai

अधिवक्ता दिवस-2013 की शुभकामना || Wishes for Advocate's Day-2013

3rd December, 2013 an "Advocate's Day". Be United & Fight for our Rights. with lots of Wishes & Regards Anshuman Dubey Adv. अधिवक्ता दिवस-2013 की शुभकामनाओ के साथ,  सदैव आप के स्नेह और सहयोग का आभारी... आपका प्रिय अंशुमान दुबे, अधिवक्ता Mo. 9415221561 http://a3advocate.blogspot.in/   ~ * ~ Web link for Advocate's Day of   Adhivakta Pension Vikas Samiti, Varanasi:- http://advocatepension.blogspot.in/2011/12/happy-advocates-day.html