इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीआरपी और विज्ञापन से हाेने वाले मुनाफ़े में व्यस्त है। प्रिंट मीडिया भी अब टीवी और सोशल मीडिया पर निर्भर हो चुका है। उसकी हालत भी उन जैसी ही हो चुकी है। प्रिंट में छपे निजी या सरकारी विज्ञापनों में समाचारों काे तलाश करने के बाद पढ़ने माैका मिलता है।
ऐसे में पत्रकारों व समाचार कर्मियाें की सुरक्षा कैसे सम्भव है...???
पत्रकारिता पूर्व में समाज सेवा की श्रेणी में आती थी। परन्तु 21वीं सदी नें पत्रकारिता अब व्यापार हाे चुका है। अभी समाज सेवा की भावना रखने वाले कुछ पत्रकार जीवित हैं पर इनकी हत्या हाे रही है, पूरे भारत में। सुरक्षा के आभाव में पत्रकारिता की मृत्यु हाे जायेगी।
Wednesday, 24 June 2015
देश भर में पत्रकाराें पर हमला व हत्या चिन्ता का विषय है :-
Monday, 8 June 2015
गाे-दान नहीं, नेत्रदान :-
कल दिनांक 06.06.2015 काे मेरे परिवार (माँ, पापा, मैं और पत्नी) ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया है कि, परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु पर हमारा परिवार गाे-दान अथवा अन्य नहीं करेगा। बल्कि हमसब "नेत्र-दान" करेंगे।
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#नेत्रदान
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