Monday, 24 February 2014

हम सब क सब हमार... स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता)

जब-जब सामुहिक हित के ऊपर व्यक्तिगत हित हावी होगा,
तब-तब विचारों एवं भाषा में दोष पैदा होगा

"हम सब क सब हमार..."
स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता)
समाजवाद की यह परिभाषा स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता) ने अपनी मृत्यु दिनांक २४-०२-२००८ की पूर्व संध्या पर अपने भतीजे श्री विनोद सिंह (अधिवक्ता) के सम्मुख प्रकट किया था। 
समाजवाद की यह लघु परिभाषा आज के सभी समाजवादी शायद भूल चुके है। तभी तो समाजवादी विचार धारा अब प्रासंगिक नहीं है।

Saturday, 22 February 2014

हरिवंशराय जी की महान प्रेरणा दायक रचना...!!!

लहरों से डर कर
नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब
दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर,
सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास
रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना,
गिरकर चढ़ना
न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत
बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में
गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ
लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही
मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह
इसी हैरानी में.....।
मुट्ठी उसकी खाली
हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है,
इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई,
देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो,
नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर
मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही
जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।

--हरिवंशराय बच्चन

Wednesday, 12 February 2014

सावधान भारत सावधान...!!! चुनाव सिर पर हैं...!!!

जातिवाद हमारे देश की सबसे बड़ी बीमारी है, यह भ्रष्टाचार से भी बड़ी बीमारी है। कुछ दूषित मानसिकता के लोग और नेता अपने निजी स्वार्थ में जातिवाद को हवा देते है। 
क्या 21 वी सदी में जातिवाद का कोई महत्त्व है ? 
मेरे विचारों के अनुसार जातिवाद का कोई महत्त्व नहीं है। 
दूषित मानसिकता के लोग और नेता चुनाव जीतने के लिए और अपना महत्व बनाये रखने के लिए जाति के नाम पर वर्षों से पूरे देश को गुमराह कर रहे हैं और फिर चुनाव सिर पर हैं...!!!  अतः  
सावधान भारत सावधान……!!!
जातिवाद ही नहीं ये दूषित मानसिकता के लोग और नेता धर्म एवं क्षेत्रवाद के नाम पर अपनी राजनैतिक इच्छाओं को पूरा करने की आस में हैं। अतः  
सावधान भारत सावधान……!!!

संत कबीर ने इस सत्य को कई सदी पूर्व अपनी एक रचना में कह दिया था, संत कबीर की उस रचना का शीर्षक है "साधो, देखो जग बौराना"।  
साधो, देखो जग बौराना ।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ।

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