वाराणसी में स्वामी विवेकानंद के प्रवास:
पहला प्रवास (1888):
स्वामी विवेकानंद ने 1888 में वाराणसी की अपनी पहली यात्रा में, गौतम बुद्ध और आदि शंकराचार्य के उपदेश स्थलों का दौरा किया, और भूदेव मुखोपाध्याय तथा त्रैलंग स्वामी जैसे विद्वानों से मुलाकात की।
1890 में वाराणसी:
1890 में, उन्होंने वाराणसी की एक और यात्रा की, जो 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में उनकी ऐतिहासिक उपस्थिति से पहले की थी।
1902 में अंतिम प्रवास:
1902 में, अपने अंतिम प्रवास के दौरान, स्वामी विवेकानंद "गोपाल विला" में लगभग 35 दिनों तक रहे, जहाँ उन्होंने स्थानीय युवाओं को प्रेरित किया और "सेवा का घर" (सेवाश्रम) की स्थापना में मदद की।
गोपाल विला:
"गोपाल विला" में उनके प्रवास के दौरान, उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया जो एक संघ शुरू कर रहे थे और शहर के गरीब और बेसहारा रोगियों की सेवा कर रहे थे।
केदारेश्वर मंदिर:
स्वामी विवेकानंद को केदारेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी ने व्यक्तिगत रूप से मंदिर में आमंत्रित किया था, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अंतिम यात्रा:
यह उनकी अंतिम यात्रा थी, जिसके बाद 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में उनका निधन हो गया।
वाराणसी से संबंध:
माता का काशी आगमन:
स्वामी विवेकानंद की मां भुवनेश्वरी देवी ने पुत्र प्राप्ति के लिए वाराणसी के वीरेश्वर मंदिर में प्रार्थना की थी।
बाल्यावस्था:
स्वामी विवेकानंद का जन्म काशी में ही हुआ था और उनका बचपन का नाम वीरेश्वर था।
ज्ञान प्राप्ति:
वाराणसी प्रवास के दौरान, स्वामी विवेकानंद ने बौद्ध धर्म के बारे में बहुत ज्ञान प्राप्त किया।
शिकागो जाने की प्रेरणा:
वाराणसी में प्रवास के दौरान, उन्हें शिकागो में विश्व धर्म संसद में भाग लेने की प्रेरणा मिली।
स्मारक की मांग:
वाराणसी के अर्दली बाजार में स्वामी विवेकानंद के प्रवास स्थल पर एक स्मारक बनाने की मांग की जा रही है।