दाे दिन से तबीयत खराब थी। जरूरी काम व मीटिंग में उपस्थित नहीं हाे सका। आज 15.07.2015 की सुबह 10:00 बजे बिना खाये घर से काेर्ट गया और पूरे दिन काम किया। शाम में चेम्बर कर जब 11:00 दही चावल का पहला निवाला मुंह में डालने काे हुआ ताे पुत्र अश्वथ ने पानी मांगा। मैंनें उसे व मां काे एक-एक ग्लास पानी दिया और फिर पहला निवाला ग्रहण किया।
मन में विचार आया,
"दिनभर के बाद भाेजन भी सुकून से नहीं कर सकता, पापा पानी।"
परन्तु दूसरे ही क्षण विचार आया,
"बीमारी में ही सही दिनभर के बाद निवाला ग्रहण करने के पूर्व अन्नपूर्णा रूपी मां व गणेश रूपी पुत्र काे जल पात्र देकर अन्न ग्रहण करने का अवसर परम पिता परमेश्वर ने दिया यह मेरा साैभाग्य है तथा यह घटना कही ना कही दायित्व का बोध भी करा गयी।"
बाबा कृपा सब पर बनी रहे। त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी।
Thursday, 16 July 2015
साेच का ढंग:-
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
संबंधों में विश्वास की भूमिका!
संबंधों में विश्वास आधारशिला की तरह है, जो रिश्तों को मजबूत और स्थायी बनाता है। इसकी भूमिका निम्नलिखित बिंदुओं से समझी जा सकती है: 1. **आपसी...
-
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में...
-
एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलस...
-
Link of Bill:- एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 का प्रारुप विधेयक का प्रावधान :- विधेयक के प्रमुख प्रावधान विधेयक में बार काउंसिल की संरचना...
No comments:
Post a Comment