Sunday, 21 April 2019

उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदरणीय श्री रंजन गोगोई जी का बयान, "उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

मैं यह नहीं जानता कि, न्यायमूर्ति गोगोई साहब गलत हैं। मैं यह भी नहीं जानता कि, आरोप लगाने वाली महिला सच बोल रही है। लेकिन वकालत जीवन के सोलह साल में मैंने यह अनुभव जरुर किया कि, जिस प्रकार का आरोप गोगोई साहब पर लगाया गया, वह असाधारण आरोप है।
भारतीय न्यायपालिका की सर्वोच्च सत्ता को भी उस सामान्य भारतीय की तरह सड़क पर ला खड़ा कर  दिया जो इस प्रकार के आरोपों से रोजाना दो चार होते रहते हैं। मित्रता सूची में मेरे साथ कई न्यायाधीशगण भी जुड़े हैं और गोगोई साहब पर लगे इस प्रकार के आरोप से हथप्रभ भी हुए होंगे। होना भी लाजिमी है। सवाल उनके शीर्ष अधिकारी के सम्मान का जो है लेकिन जब यही आरोप किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत, किसी जमीनी विवाद के तहत अथवा किसी प्रतिशोध की भावना के तहत एक सामान्य जीवन जीने वाले इंसान पर लगता है तो इसका दर्द वह आरोपी व्यक्ति, उसका परिवार, उससे जुड़े लोग महसूस कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका कत्तई यह मीमांसा करने का जहमत नहीं उठाती कि आरोप में सत्यता कितनी है, आरोपी का सामाजिक स्तर क्या है, आरोपी के परिजनों की मनःस्थिति पर आरोप का क्या असर पडे़गा, उसके बेटे बेटी के भविष्य को कहां तक यह आरोप प्रभावित करेगा।   वकील लाख दलील देता रहे लेकिन कानून की धाराओं का ज्ञान देकर, धारा 164 में झूठे तौर पर किए गए कथनों का हवाला देकर आरोपी का जमानत आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है और एक झूठे मुकदमें में फंसाए गए निर्दोष व्यक्ति का परिवार न्यायालय दर न्यायालय भटकता रहता है। यहां तक कि इस प्रकार के झूठे आरोपों पर मैंने सजा होते भी देखा है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई पर लगे इस आरोप ने हमारी न्याय व्यवस्था को देर से ही सही लेकिन आइना दिखाने का काम किया है। अब समय आ चुका है न्यायपालिका को इस प्रकार के मामलों में अपनी सोच बदलने का। अब समय आ गया है समाज को अपनी आंख से न देखकर सामाजिक व्यवहार विचार और परम्पराओं की दृष्टि से देखने का। अब समय आ गया है आरोपी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने का नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब स्त्री पुरुष के सामाजिक  रिश्तों की हत्या होगी और पुरुष समाज किसी भी स्त्री से सार्वजनिक जीवन में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध या रिश्ता रखने से परहेज करेगा और अन्त में यही कहेगा - जान बची तो लाखों पाये।

एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 40: आदेश पर रोक (Stay of Order)

एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 40: आदेश पर रोक (Stay of Order) यह प्रावधान एक अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनात्मक समिति (Disciplinary Committee) ...