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वाराणसी की प्रमुख समस्या:-
1) अवैध कालोनी की समस्या 2) पेय जल की समस्या 3) धवस्त यातायात की समस्या 4) सीवर की समस्या 5) खराब सडकों की समस्या 6) दबंग लोगों द्वारा नजूल भूमि अवैध कब्जा 7) गंगा व वरुणा पर पूलों का निर्माण 8) गंगा, वरुणा व अस्सी नदी का निर्मलीकरण 9) आतंकीय हमलों से बचाव की व्यवस्था 10) अतिक्रमण की समस्या 11) अवैध टेपो, टैक्सी व रिक्शों की समस्या 12) लघु उद्योग के कामगारों की समस्या 13) खराब विद्युत आपूर्ति व्यवस्था 14) लचर सफाई व्यवस्था 15) अवैध निर्माण की समस्या 16) मेडिकल सेवाओं में सुधार 17) पटरी व्यवसाय को नियमित रूप देना 18) नये उद्योगो के लिये प्रोत्साहन |
Tuesday, 1 April 2014
VARANASI MP 2014 - सांसद चुनाव 2014 :-
Wednesday, 12 March 2014
Happy Holi ~ 2014 :-
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।

देख बहारें होली की :- नज़ीर अकबराबादी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की
गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।
ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।।
रसिया रस लूटो होली में :-
राम रंग पिचुकारि, भरो सुरति की झोली में
हरि गुन गाओ, ताल बजाओ, खेलो संग हमजोली में
मन को रंग लो रंग रंगिले कोई चित चंचल चोली में
होरी के ई धूमि मची है, सिहरो भक्तन की टोली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में
नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में
है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ है
बने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में
रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में
Thursday, 27 February 2014
Monday, 24 February 2014
हम सब क सब हमार... स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता)
जब-जब सामुहिक हित के ऊपर व्यक्तिगत हित हावी होगा,
तब-तब विचारों एवं भाषा में दोष पैदा होगा॥
"हम सब क सब हमार..."
स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता)
समाजवाद की यह परिभाषा स्व. बाबू सागर सिंह (अधिवक्ता) ने अपनी मृत्यु दिनांक २४-०२-२००८ की पूर्व संध्या पर अपने भतीजे श्री विनोद सिंह (अधिवक्ता) के सम्मुख प्रकट किया था।
समाजवाद की यह लघु परिभाषा आज के सभी समाजवादी शायद भूल चुके है। तभी तो समाजवादी विचार धारा अब प्रासंगिक नहीं है।
Saturday, 22 February 2014
हरिवंशराय जी की महान प्रेरणा दायक रचना...!!!
लहरों से डर कर
नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब
दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर,
सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास
रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना,
गिरकर चढ़ना
न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत
बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में
गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ
लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही
मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह
इसी हैरानी में.....।
मुट्ठी उसकी खाली
हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है,
इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई,
देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो,
नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर
मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही
जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
--हरिवंशराय बच्चन
Wednesday, 12 February 2014
सावधान भारत सावधान...!!! चुनाव सिर पर हैं...!!!
संत कबीर ने इस सत्य को कई सदी पूर्व अपनी एक रचना में कह दिया था, संत कबीर की उस रचना का शीर्षक है "साधो, देखो जग बौराना"।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ।
विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।
स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...
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वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में...
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एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलस...
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Link of Bill:- एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 का प्रारुप विधेयक का प्रावधान :- विधेयक के प्रमुख प्रावधान विधेयक में बार काउंसिल की संरचना...