Wednesday, 22 May 2019

कबीर

कबीर के literature काे भी तत्समय poor की संज्ञा दिया गया था। आज वर्षों बाद कबीर के विचार जीवित हैं परन्तु विरोधियों का ना ताे विचार रहा और ना ही उनका अस्तित्व।
कबीर कहते हैं-
चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस।
ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।।
भावार्थ:-
जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं वे ज्ञान - मोती कैसे चुगेगे ? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं।

Monday, 13 May 2019

ऐ मालिक तेरे बंदे हम - भरत व्यास

ऐ मालिक तेरे बंदे हम

ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ताकि हंसते हुये निकले दम

जब ज़ुलमों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें

ये अंधेरा घना छा रहा
तेरा इनसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चलें

बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमीं
पर तू जो खड़ा
है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने हमें जब जनम
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म
नेकी पर चलें 

Friday, 10 May 2019

मेरे राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं:-

राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं। इस वाक्य से इस पोस्ट की शुरुआत कर रहा हूँ, क्योंकि यह सत्य है। इतिहास गवाह है, जिस किसी ने "राम-नाम" को खण्डित करने का प्रयास किया वह स्वयं खण्डित हो गया।
मैं सिर्फ उस इतिहास की बात करता हूँ जो मैंने अपने 44 साल के जीवन में देखा व सुना है।
***पहली घटना जिसने राम-नाम की राजनीति में ताला खुलवाया, उसका शरीर खण्ड-खण्ड हो गया।
***दूसरी घटना, जिसने राम-नाम पर रथयात्रा निकालकर राजनीति की, उनके प्रधान बनने का सपना तीन बार खण्ड-खण्ड हो गया।
***तीसरी घटना जिसका दायित्व था कि उसे राम-नाम की राजनीति को रोकना है, उसने ऐसा नहीं किया तो उसके ही लोगों ने उसे मरने के बाद राजघाट, दिल्ली के बाहर फेंक दिया।

इसलिए राम-नाम की राजनीति बंद करो और राम का नाम लेकर राम की जनता के लिए काम करो।

Sunday, 21 April 2019

उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदरणीय श्री रंजन गोगोई जी का बयान, "उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

मैं यह नहीं जानता कि, न्यायमूर्ति गोगोई साहब गलत हैं। मैं यह भी नहीं जानता कि, आरोप लगाने वाली महिला सच बोल रही है। लेकिन वकालत जीवन के सोलह साल में मैंने यह अनुभव जरुर किया कि, जिस प्रकार का आरोप गोगोई साहब पर लगाया गया, वह असाधारण आरोप है।
भारतीय न्यायपालिका की सर्वोच्च सत्ता को भी उस सामान्य भारतीय की तरह सड़क पर ला खड़ा कर  दिया जो इस प्रकार के आरोपों से रोजाना दो चार होते रहते हैं। मित्रता सूची में मेरे साथ कई न्यायाधीशगण भी जुड़े हैं और गोगोई साहब पर लगे इस प्रकार के आरोप से हथप्रभ भी हुए होंगे। होना भी लाजिमी है। सवाल उनके शीर्ष अधिकारी के सम्मान का जो है लेकिन जब यही आरोप किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत, किसी जमीनी विवाद के तहत अथवा किसी प्रतिशोध की भावना के तहत एक सामान्य जीवन जीने वाले इंसान पर लगता है तो इसका दर्द वह आरोपी व्यक्ति, उसका परिवार, उससे जुड़े लोग महसूस कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका कत्तई यह मीमांसा करने का जहमत नहीं उठाती कि आरोप में सत्यता कितनी है, आरोपी का सामाजिक स्तर क्या है, आरोपी के परिजनों की मनःस्थिति पर आरोप का क्या असर पडे़गा, उसके बेटे बेटी के भविष्य को कहां तक यह आरोप प्रभावित करेगा।   वकील लाख दलील देता रहे लेकिन कानून की धाराओं का ज्ञान देकर, धारा 164 में झूठे तौर पर किए गए कथनों का हवाला देकर आरोपी का जमानत आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है और एक झूठे मुकदमें में फंसाए गए निर्दोष व्यक्ति का परिवार न्यायालय दर न्यायालय भटकता रहता है। यहां तक कि इस प्रकार के झूठे आरोपों पर मैंने सजा होते भी देखा है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई पर लगे इस आरोप ने हमारी न्याय व्यवस्था को देर से ही सही लेकिन आइना दिखाने का काम किया है। अब समय आ चुका है न्यायपालिका को इस प्रकार के मामलों में अपनी सोच बदलने का। अब समय आ गया है समाज को अपनी आंख से न देखकर सामाजिक व्यवहार विचार और परम्पराओं की दृष्टि से देखने का। अब समय आ गया है आरोपी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने का नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब स्त्री पुरुष के सामाजिक  रिश्तों की हत्या होगी और पुरुष समाज किसी भी स्त्री से सार्वजनिक जीवन में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध या रिश्ता रखने से परहेज करेगा और अन्त में यही कहेगा - जान बची तो लाखों पाये।

Monday, 18 February 2019

काशी Smart City:-

Social media i.e. facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...???
काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी।
मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था।
आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं।
तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..???
बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुना था 2 साल होने को आये, पर सब जहां था वहीं है। इस आखिरी उम्मीद पर भी लगता है कि चूना लग गया। मजेदार बात यह है कि सारे राजनीतिक दल व सामाजिक संस्थान इन बातों का विरोध सिर्फ रसम अदायगी तक ही करते हैं इस उम्मीद में की शायद हम अगली बार सत्ता में आ गये तो हम भी तो यही करेंगे जो अभी वाले कर रहें हैं। इसलिए विरोध भी भविष्य को देखकर करो।
सही कहा था उस विदेशी ने पूरी काशी भगवान भरोसे चल रही है।
#AdvAnshuman
#भारतमेराधर्म
#smartcity

#JNU राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता:-

राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता, दिल्ली के जाने माने JNU से उत्पन्न हुई है और पूरे चाव से चल व चलायी जा रही है गद्दार ढूंढो की नयी लीला।

सब लगे हैं तलाश में, संयमरहित व त्वरित प्रतिक्रिया वादी हमारा Electronic मीडिया भी लगा है तलाश में, बहुते बड़े-बड़े नेता भी लगे हैं तलाश में और तो और पुलिस व कोर्ट भी और सबके अपने-अपने गद्दार हैं वर्तमान से इतिहास तक। परन्तु मिल नहीं रहा है किसी को, क्या करें वे भी जब जयचन्दों की संख्या सत्ता से लेकर जनता तक बहुसंख्यक हो तो किसी को गद्दार कहने में डर लगना स्वाभाविक है, कहीं कोई अपना न निकल आये?

बहुत पुरानी कहावत है कि, "एक उँगली दूसरों पर उठाने वाले की तीन उँगलियाँ अपनी ओर होती हैं।"

कानून हाथ में लेकर किसी को पीटकर यदि हम गर्व से सिर ऊँचा करते हैं तो, क्या भारतीय संविधान का सम्मान न करना गद्दारी नहीं है? जबकि सामने वाला अहिंसक हो। जिस कार्य के लिए वेतन ले रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार करना गद्दारी नहीं है? जिन राष्ट्रवादी सिद्धातों पर राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, उसपर न चलकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का समर्थन व सत्ता पाने के लिए उनका उपयोग क्या गद्दारी नहीं है?

गद्दारी मानव सर्वप्रथम स्वंय यानि ईश्वर से करता है फिर संबंधों से, फिर रिश्तों से, फिर समाज और राष्ट्र से करता है, क्योंकि वस्तुतः वर्तमान में स्वार्थ सिद्धी में मानव हर क्षण कहीं न कहीं गद्दारी अवश्य कर रहा है।

जनाब अन्त में यही समझ में आता है कि हमें अपना काम करने दीजिए और जिस कार्य के लिए आप माननीय लोगों को ससम्मान चुनकर संसद व विधानसभा में भेजा गया है वह करें और जनता के हित के बिलों व योजनाओं को पास करें। कहाँ चले आये आप लोग स्कूल कालेज में...???

न्याय और न्यायालय पर सबका हक है???

धनवान के पास न्याय पाने के अनेकों साधन है, यह कथन सत्य है। इसपर काेई विवाद न था आैर ना ही है।
परन्तु उनका क्या जाे संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं...???
मेरे विचार में अंग्रेजाें के द्वारा बनाये गये कानून सामन्तवाद की साेच से उत्पन्न हुये हैं आैर यह सामन्तवादी साेच आजतक हमारे सिस्टम पर हावी है। तभी ताे जिसकाे भारतीय गणतंत्र में सेवक (नेता व अधिकारी) कहा जाता है, वाे लाल नीली पीली बत्ती वाली गाड़ी में घूमता है आैर जिसकाे मालिक (मतदाता) कहा तथा समझा जाता है वह किस हाल में है... यह बताना आवश्यक नहीं है।
न्याय आैर न्यायालय पर सबका हक है, यह किताबाें में अंकित है। परन्तु भारत की यह विडम्बना है कि यह हकीकत नहीं है।
पर हम भारतीय सदैव कहते रहेंगे कि हमें भारत पर नाज़ है।
जय भारत जय गणतन्त्र।

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...