Friday, 8 November 2019

एक वकील का दर्द, वकील की जुबानी:-

मै एक वकील हूँ, मै डबल ग्रेजवेट कहलाता हूँ।
मै एक वकील हूँ मैं ऑफिसर ऑफ़ द कोर्ट कहलाता हूँ।
मै एक वकील हूँ पैरवी करता हूँ आपने क्लाइंट के। लिये फिर चाहे वो खुनी हो या कातिल।
मेरे काम में बड़ा है रिस्क एक जीत जाये तो दूसरा दुश्मन, दूसरा जीत जाये तो पहला दुश्मन।
फिर भी मुझे ना तो कोई प्रोटेक्सन नहीं मिलता एडवोकेट प्रोटेक्सन बिल पास नहीं होता
मैं सबसे बड़े संघ का सदस्य हूँ परंतु मुझे सामूहिक बीमा नहीं मिलता
मैं बीमार होता हूँ संघ की आस तकता हूँ मुझे मेडिकल बीमा नहीं मिलता
मुझे किराये पर कोई मकान नहीं देता मुझे संघ की तरफ से अधिवक्ता आवास नहीं मिलता ।
मै जिनके लिये पैरवी करता हूँ उनके पोर्टेक्सन के लिये ढेरों नियम और कानून हैं परंतु मेरे प्रोटेक्सन के लिये कोई कानून नहीं
मुझे लोन देने मैं बैंकों के द्वारा आना कानी किया जाता है।
मै हमेशा दूसरों की सोचता हूँ पर मेरी कोई नहीं सोचता
क्योकी मै एक वकील हूँ
मुझे ईश्वर ने मौका दिया है पीड़ित और शरणागत के रक्षा की।
मैं अपने काम के प्रति सजग हूँ तभी तो पक्षकार के साथ न्यायलय के कार्य निरंतर होते हैं ।
मुझको फीस देने मे लोगो को तकलीफ होती है जबकि सबकी तकलीफ कम करता हूँ ।
मुझे आम जन के सेवा का अवसर मिला है और सेवा के बदले कई मर्तबा अपशब्दों से भी गुजरना पड़ता है ।
मेरे दर्द को कोई समझे न समझे पर मैं सभी के दर्द को जानता समझता हूँ
क्यों के मैं एक वकील हूँ ।

Thursday, 7 November 2019

वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

वाह रे मीडिया?
वकीलों को सिर्फ गुण्डा कहने से काम नहीं चलेगा। 
कुछ ऐसा करिश्मा पैदा करो ताकि, वकीलों को आतंकवादी घोषित किया जा सके और कचहरी को आतंक का अड्डा तब जाकर, सरकार में बैठे तुम लोगों के अब्बा लोगों को सुकून मिलेगा। 

इतनी नफ़रत, किस काम की? 
रिव्यू पिटीशन के लिए भी किसी न किसी वकील का ही सहयोग लेना पड़ा, फिर भी इतनी नफ़रत, समझ से परे है।

क्या पुलिस को तानाशाही पसंद है, हम जिसको चाहे मार दे, उठा ले, हत्या कर दे पर हम पुलिस वालों से कोई प्रश्न न किया जाए? ऐसा अधिकार चाहिए तो फिर गुण्डा और आतंकी कौन हुआ, यह बताना आवश्यक नहीं रह गया है।

क्षमा के साथ निवेदन है, ईमानदारी से एक माह नौकरी करके देखो, 32वें दिन त्यागपत्र लेकर उसी मुख्यालय के सामने खड़े मिलोगे, जहां 10 घण्टे दलाल मीडिया के साथ धरना प्रदर्शन कर रहे थे।

एक आप लोग सभ्य, संस्कारी और मर्यादित हो और दूसरा आपका हुक्मरान बाकी जनता, जज, वकील, आदि सब बेईमान, भ्रष्ट और अमर्यादित है?

मीडिया की बात ही निराली है, जब चाहे किसी को सिर पर बैठा ले और जब चाहे किसी को पैरों तले कुचल दे। इस प्रकरण में एक बात ध्यान देने योग्य है, कि मीडिया और पुलिस विवाद में वकीलों की मदद की आवश्यकता दोनों को ही पड़़ती है अपना-अपना पक्ष रखने के लिए, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

जनता को जब पुलिस, जानवरों की तरह पीटती है तो उस लुटी-पिटी जनता को न्याय वकीलों के माध्यम से ही मिलता है, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

जब पुलिस वाला रेप पीड़िता या किस अन्य प्रकरण की FIR नहीं लिखता है, तो फिर उस बहन या भाई को न्याय वकीलों के माध्यम से ही मिलता है, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

यहां यह कहना आवश्यक है कि जिस किसी ने भी गलत किया है, चाहे वह वकील हो या पुलिस सभी को भारतीय संविधान और कानून के अन्तर्गत उतना ही दण्ड मिलना चाहिए जितना अपराध उसने किया है। 

Thursday, 31 October 2019

तीन लोकों में न्यारी काशी में देवाधिदेव महादेव तो बसते ही हैं, इस नगरी को 11वें रुद्रावतार हनुमान का भी धाम बनाने का श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। संकटमोचन के रूप में उन्होंने तुलसीदास जी को यहीं दर्शन दिए:-

वाराणसी : मन मंदिर में भगवान श्रीराम को बसाए गोस्वामी तुलसीदास को हनुमत प्रभु का बाल रूप सदा ही भाया। मानस की रचना के दौरान सनातन समाज को सबल और जागृत बनाने में भी उन्हें प्रभु का यही रूप अधिक याद आया। उन्होंने मंदिरों के साथ अखाड़ों को जोड़कर समाज के शौर्य प्रकटीकरण का जतन किया। काशी के टोले-मोहल्लों में शौर्य नायक हनुमान के 12 मंदिरों का उन्होंने निर्माण कराया, जिनमें सात को बालरूप हनुमान से ही सजाया।

कागजी प्रमाणों का अभाव है, लेकिन इन मंदिरों के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा का भाव है। गंगा तट पर जहां यायावर तुलसी को स्थायी ठौर मिला, वहां उन्होंने दक्षिणमुखी हनुमत प्रतिमा स्थापित की। जीवन पर्यत वे यहीं उनके चरणों में बैठकर ध्यान लगाया।

तब नगर के वन क्षेत्र कर्णघंटा में भी तुलसीदास ने दक्षिणमुखी बाल रूप हनुमान की मूर्ति सजाई। पक्के महाल के राजमंदिर क्षेत्र में बूंदी राजघराने के परकोटा भवन पर गोस्वामीजी ने हनुमान मंदिर की जो स्थापित की, वह भी बालरूप, दक्षिणमुखी व एक विशाल वृक्ष के नीचे है।

दारानगर क्षेत्र के महामृत्युंजय मंदिर में गोस्वामीजी ने दो प्रतिमाओं की स्थापना की। एक मुख्य प्रांगण में दक्षिणमुखी बालरूप है। ग्रहादि दोषों से निवृत्ति के लिए मंदिर के पूरब पीपल के नीचे भी उन्होंने एक और प्रतिमा स्थापित की।

महामारी से भयाक्रांतों में आत्मबल जगाने के ध्येय से तुलसीदास ने प्रह्लादघाट में दक्षिणमुखी हनुमान की स्थापना की। यहां उनका अखाड़ा भी था। यह मंदिर मनसापूरण हनुमान के नाम से पूजित है। हनुमान फाटक क्षेत्र में युवकों को जागृत करने के उद्देश्य से गोस्वामीजी ने एक फीट के लघु हनुमान की प्रतिमा स्थापित की। नीचीबाग क्षेत्र में गोस्वामीजी ने वीरभाव में बालरूप हनुमान का मंदिर सजाया और मुद्रा अभयदाता की दी। मूर्ति के पैरों तले नरकासुर की प्रतिमा है।

धर्म परिवर्तन के आतंक के दौर में गोस्वामी जी ने कबीरचौरा में भी हनुमान की वीर भाव मुद्रा वाली प्रतिमा स्थापित की। अस्सी घाट पर प्रवास के दौरान दुर्गा मंदिर परिक्षेत्र में बनकटी मंदिर की स्थापना की। यहां की ख्याति सेनापति हनुमान के रूप में है। गोस्वामी जी द्वारा स्थापित बारहवीं प्रतिमा को लेकर मतभेद हैं। इसका अस्तित्व गोपाल मंदिर या मीरघाट माना जाता है।

तुलसीघाट पर चहुंदिश हनुमान:- तुलसीघाट का पूरा क्षेत्र चहुंदिश हनुमतमय है। अपने आवास प्रांगण में तुलसी ने हनुमत प्रभु की दक्षिणाभिमुख मूर्ति सजाई। बाद में अखाड़ा तुलसीदास के महंतों ने पूर्वाभिमुख, पश्चिमाभिमुख व उत्तराभिमुख हनुमान की मूर्तियां स्थापित कीं। माना जाता है कि बजरंगबली यहां से चारों दिशाओं पर नजर रखते हैं।

काशी में तुलसी का विरोध व सम्मान:- जनश्रुतियों और ग्रंथों से पता चलता है कि तुलसीदास को काशी के कुछ अनुदार पंडितों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था। रामचरितमानस की पाडुलिपि को नष्ट करने के भी प्रयास हुए। भगवान विश्वनाथ जी के मंदिर में पाडुलिपि रखी गई और मानस को विश्वनाथजी का समर्थन मिला। तब, विरोधी तुलसी के सामने नतमस्तक हुए।

Wednesday, 24 July 2019

महिला कार्यस्थल कानून, 2012 में किन शिकायतों का है प्रावधान:-

कार्यस्थल कानून, 2012 में बताया गया है कि किन परिस्थितियों में एक महिला कार्यस्थल पर किन स्थितियों के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है, यह स्थितियां निम्न प्रकार की हो सकती हैं: 

* यदि किसी महिला पर शारीरिक सम्पर्क के लिए दबाव डाला जाता है या फिर अन्य तरीकों से उस पर ऐसा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है या बनाया जाता है। 

* यदि किसी भी सहकर्मी, वरिष्ठ या किसी भी स्तर के कार्मिक द्वारा उससे यौन संबंध बनाने के लिए अनुरोध किया जाता है या फिर उस पर ऐसा करने के लिए दबाव डाला जाता है। 

* किसी भी महिला की शारीरिक बनावट, उसके वस्त्रों आदि को लेकर भद्दी, अशालीन टिप्पणियां की जाती हैं तो यह भी एक कामकाजी महिला के अधिकारों का हनन है। 

* किसी भी महिला को किसी भी तरह से अश्लील और कामुक साहित्य दिखाया जाता है या ऐसा कुछ करने की कोशिश की जाती है। 

* किसी भी तरह से मौखिक या अमौखिक तरीके से यौन प्रकृति का अशालीन व्यवहार किया जाता है। 

कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिए वर्कप्लेस बिल, 2012 भी लाया गया जिसमें लिंग समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर कड़े कानून बनाए गए हैं। यह कानून कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा दिलाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इन कानूनों के तहत यह रेखांकित किया गया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं, युवतियों के सम्मान को बनाए रखने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं। अगर किसी महिला के साथ कुछ भी अप्रिय होता है तो उसे कहां और कैसे अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए? अगर किसी भी कार्यस्थल पर इस तरह की व्यवस्था नहीं है तो वह अपने वरिष्ठों के सामने इस स्थिति को विचार के लिए रख सकती है या फिर समुचित कानूनी कार्रवाई कर सकती है। 


Thursday, 18 July 2019

देवी देवताओं की आरती के बाद, क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र

हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा समपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोला जाता है ।

कर्पूरगौरं मंत्र:-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

- इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।

अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।

आखिर आरती के बाद यही मंत्र क्यों

- किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं । भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है । ये माना जाता है कि भगवान शिव जी शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी प्रवत्ति वाला है । लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य और सुंदर है । भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति । ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें ।

Friday, 14 June 2019

ब्राह्मण समाज के तथाकथित ठेकेदार फिल्म Article 15 का विरोध कर रहे हैं:-

अरे स्वयंभू विद्वानों यह बेटियों के ऊपर हुये अत्याचार पर बनी फिल्म है, जहाँ तक मेरी जानकारी है।

आप सबसे सादर सविनय निवेदन है कि, विरोध करके अभिव्यक्ति की आजादी का हनन न करे। आप लोगों के इन कृत्यों से हर सामान्य ब्राह्मण का अपमान होता है। "भारतीय संविधान का Article 15 क्या कहता है, वह आप सबके लिए उपलब्ध है:-
भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 (Article 15 in Hindi) - धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध:-
विवरण
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर--
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
[(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।]
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संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया।

Monday, 10 June 2019

संविधान में दिये गये मूल कर्तव्य समस्त भारतीयों पर लागू होते हैं, चाहे वह जनता हो अथवा प्रधान सेवक:-

भारतीय संविधान अनुच्छेद 51A :: मूल कर्तव्य:- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-

(क) संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उन का पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले;
(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...