Sunday, 24 August 2014

साइबर अपराध और साइबर कानून :-

17 अक्टूबर, 2000 को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (सूचना तकनीक क़ानून, 2000) अस्तित्व में आया. 27 अक्टूबर, 2009 को एक घोषणा द्वारा इसे संशोधित किया गया. संशोधित क़ानून में परिभाषाएं निम्नवत हैं :

(ए) यहां क़ानून से तात्पर्य सूचना तकनीक क़ानून, 2000 से है.

(बी) संवाद (कम्युनिकेशन) का मतलब किसी भी तरह की जानकारी या संकेत के प्रचार, प्रसार या उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना है. यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी तरह का हो सकता है.

(सी) संवाद सूत्र (कम्युनिकेशन लिंक) का अर्थ कंप्यूटरों को आपस में एक-दूसरे से जोड़ने के लिए प्रयुक्त होने वाले सैटेलाइट, माइक्रोवेव, रेडियो, ज़मीन के अंदर स्थित कोई माध्यम, तार, बेतार या संचार का कोई अन्य साधन हो सकता है.

सूचना तकनीक क़ानून 9 जनवरी, 2000 को पेश किया गया था. 30 जनवरी, 1997 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली में प्रस्ताव संख्या 51/162 द्वारा सूचना तकनीक की आदर्श नियमावली (जिसे यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के नाम से जाना जाता है) पेश किए जाने के बाद सूचना तकनीक क़ानून, 2000 को पेश करना अनिवार्य हो गया था. संयुक्त राष्ट्र की इस नियमावली में संवाद के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक या काग़ज़ के इस्तेमाल को एक समान महत्व दिया गया है और सभी देशों से इसे मानने की अपील की गई है. सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की प्रस्तावना में ही हर ऐसे लेनदेन को क़ानूनी मान्यता देने की बात उल्लिखित है, जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के दायरे में आता है और जिसमें सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक का इस्तेमाल हुआ हो. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल करता है. इससे सरकारी संस्थानों में भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दस्तावेज़ों का आदान-प्रदान संभव हो सकता है और इंडियन पेनल कोड, इंडियन एविडेंस एक्ट 1872, बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट 1891 और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 अथवा इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े किसी भी क़ानून में संशोधन में भी इन दस्तावेज़ों का उपयोग हो सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली ने 30 जनवरी, 1997 को प्रस्ताव संख्या ए/आरइएस/51/162 के तहत यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ द्वारा अनुमोदित मॉडल लॉ ऑन इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित आदर्श कानून) को अपनी मान्यता दे दी. इस क़ानून में सभी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा रहीं तकनीकों से संबंधित कोई भी क़ानून बनाने या उसे संशोधित करते समय वे इसके प्रावधानों का ध्यान रखेंगे, ताकि सभी देशों के क़ानूनों में एकरूपता बनी रहे. सूचना तकनीक क़ानून 2000 17 अक्टूबर, 2000 को अस्तित्व में आया. इसमें 13 अध्यायों में विभक्त कुल 94 धाराएं हैं. 27 अक्टूबर, 2009 को इस क़ानून को एक घोषणा द्वारा संशोधित किया गया. इसे 5 फरवरी, 2009 को फिर से संशोधित किया गया, जिसके तहत अध्याय 2 की धारा 3 में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की जगह डिजिटल हस्ताक्षर को जगह दी गई. इसके लिए धारा 2 में उपखंड (एच) के साथ उपखंड (एचए) को जोड़ा गया, जो सूचना के माध्यम की व्याख्या करता है. इसके अनुसार, सूचना के माध्यम से तात्पर्य मोबाइल फोन, किसी भी तरह का व्यक्तिगत डिजिटल माध्यम या फिर दोनों हो सकते हैं, जिनके माध्यम से किसी भी तरह की लिखित सामग्री, वीडियो, ऑडियो या तस्वीरों को प्रचारित, प्रसारित या एक से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है.

आधुनिक क़ानून की शब्दावली में साइबर क़ानून का संबंध कंप्यूटर और इंटरनेट से है. विस्तृत संदर्भ में कहा जाए तो यह कंप्यूटर आधारित सभी तकनीकों से संबद्ध है. साइबर आतंकवाद के मामलों में दंड विधान के लिए सूचना तकनीक क़ानून, 2000 में धारा 66-एफ को जगह दी गई है.

66-एफ : साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान

1. यदि कोई-

(ए) भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को भंग करने या इसके निवासियों को आतंकित करने के लिए-

क. किसी अधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के इस्तेमाल से रोकता है या रोकने का कारण बनता है.

ख. बिना अधिकार के या अपने अधिकार का अतिक्रमण कर जबरन किसी कंप्यूटर के इस्तेमाल की कोशिश करता है.

ग. कंप्यूटर में वायरस जैसी कोई ऐसी चीज डालता है या डालने की कोशिश करता है, जिससे लोगों की जान को खतरा पैदा होने की आशंका हो या संपत्ति के नुक़सान का ख़तरा हो या जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं में जानबूझ कर खलल डालने की कोशिश करता हो या धारा 70 के तहत संवेदनशील जानकारियों पर बुरा असर पड़ने की आशंका हो या-

(बी) अनाधिकार या अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए जानबूझ कर किसी कंप्यूटर से ऐसी सूचनाएं हासिल करने में कामयाब होता है, जो देश की सुरक्षा या अन्य देशों के साथ उसके संबंधों के नज़रिए से संवेदनशील हैं या कोई भी गोपनीय सूचना इस इरादे के साथ हासिल करता है, जिससे भारत की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं संप्रभुता, अन्य देशों के साथ इसके संबंध, सार्वजनिक जीवन या नैतिकता पर बुरा असर पड़ता हो या ऐसा होने की आशंका हो, देश की अदालतों की अवमानना अथवा मानहानि होती हो या ऐसा होने की आशंका हो, किसी अपराध को बढ़ावा मिलता हो या इसकी आशंका हो, किसी विदेशी राष्ट्र अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा किसी अन्य को ऐसी सूचना से फायदा पहुंचता हो, तो उसे साइबर आतंकवाद का आरोपी माना जा सकता है.

2. यदि कोई व्यक्ति साइबर आतंकवाद फैलाता है या ऐसा करने की किसी साजिश में शामिल होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है.

2005 में प्रकाशित एडवांस्ड लॉ लेक्सिकॉन के तीसरे संस्करण में साइबरस्पेस शब्द को भी इसी तर्ज पर परिभाषित किया गया है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में फ्लोटिंग शब्द पर खासा जोर दिया गया है, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से से इस तक पहुंच बनाई जा सकती है. लेखक ने आगे इसमें साइबर थेफ्ट (साइबर चोरी) शब्द को ऑनलाइन कंप्यूटर सेवाओं के इस्तेमाल के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया है. इस शब्दकोष में साइबर क़ानून की इस तरह व्याख्या की है, क़ानून का वह क्षेत्र, जो कंप्यूटर और इंटरनेट से संबंधित है और उसके दायरे में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्‌स, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचनाओं तक निर्बाध पहुंच आदि आते हैं.

सूचना तकनीक क़ानून में कुछ और चीज़ों को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, कंप्यूटर से तात्पर्य किसी भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल या तेज़ गति से डाटा का आदान-प्रदान करने वाले किसी भी ऐसे यंत्र से है, जो विभिन्न तकनीकों की मदद से गणितीय, तार्किक या संग्रहणीय कार्य करने में सक्षम है. इसमें किसी कंप्यूटर तंत्र से जुड़ा या संबंधित हर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर शामिल है.

सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की धारा 1 (2) के अनुसार, उल्लिखित अपवादों को छोड़कर इस क़ानून के प्रावधान पूरे देश में प्रभावी हैं. साथ ही उपरोक्त उल्लिखित प्रावधानों के अंतर्गत देश की सीमा से बाहर किए गए किसी अपराध की हालत में भी उक्त प्रावधान प्रभावी होंगे.

सूचना तकनीक क़ानून, 2000 के अंतर्गत साइबरस्पेस में क्षेत्राधिकार संबंधी प्रावधान

मानव समाज के विकास के नज़रिए से सूचना और संचार तकनीकों की खोज को बीसवीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार माना जा सकता है. सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों, ख़ासकर न्यायिक प्रक्रिया में इसके इस्तेमाल की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि इसकी तेज़ गति, कई छोटी-मोटी द़िक्क़तों से छुटकारा, मानवीय ग़लतियों की कमी, कम ख़र्चीला होना जैसे गुणों के चलते यह न्यायिक प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है. इतना ही नहीं, ऐसे मामलों के निष्पादन में, जहां सभी संबद्ध पक्षों की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य न हो, यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प सिद्ध हो सकता है. सूचना तकनीक क़ानून के अंतर्गत उल्लिखित आरोपों की सूची निम्नवत हैः

1. कंप्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ की कोशिश-धारा 65

2. कंप्यूटर में संग्रहित डाटा के साथ छेड़छाड़ कर उसे हैक करने की कोशिश-धारा 66

3. संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 ए

4. कंप्यूटर या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से चोरी की गई सूचनाओं को ग़लत तरीक़े से हासिल करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 बी

5. किसी की पहचान चोरी करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 सी

6. अपनी पहचान छुपाकर कंप्यूटर की मदद से किसी के व्यक्तिगत डाटा तक पहुंच बनाने के लिए दंड का प्रावधान- धारा 66 डी

7. किसी की निजता भंग करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 इ

8. साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 एफ

9. आपत्तिजनक सूचनाओं के प्रकाशन से जुड़े प्रावधान-धारा 67

10. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सेक्स या अश्लील सूचनाओं को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 ए

11. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से ऐसी आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण, जिसमें बच्चों को अश्लील अवस्था में दिखाया गया हो-धारा 67 बी

12. मध्यस्थों द्वारा सूचनाओं को बाधित करने या रोकने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 सी

13. सुरक्षित कंप्यूटर तक अनाधिकार पहुंच बनाने से संबंधित प्रावधान-धारा 70

14. डाटा या आंकड़ों को ग़लत तरीक़े से पेश करना-धारा 71

15. आपसी विश्वास और निजता को भंग करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए

16. कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का उल्लंघन कर सूचनाओं को सार्वजनिक करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए

17. फर्ज़ी डिजिटल हस्ताक्षर का प्रकाशन-धारा 73

सूचना तकनीक क़ानून की धारा 78 में इंस्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी को इन मामलों में जांच का अधिकार हासिल है.

इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में साइबर अपराधों से संबंधित प्रावधान

1. ईमेल के माध्यम से धमकी भरे संदेश भेजना-आईपीसी की धारा 503

2. ईमेल के माध्यम से ऐसे संदेश भेजना, जिससे मानहानि होती हो-आईपीसी की धारा 499

3. फर्ज़ी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉड्‌र्स का इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 463

4. फर्ज़ी वेबसाइट्‌स या साइबर फ्रॉड-आईपीसी की धारा 420

5. चोरी-छुपे किसी के ईमेल पर नज़र रखना-आईपीसी की धारा 463

6. वेब जैकिंग-आईपीसी की धारा 383

7. ईमेल का ग़लत इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 500

8. दवाओं को ऑनलाइन बेचना-एनडीपीएस एक्ट

9. हथियारों की ऑनलाइन ख़रीद-बिक्री-आर्म्स एक्ट

Tuesday, 19 August 2014

पुलिस व्यवहार और महिलाएं (मानवाधिकार) कानून :-

क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार .....???

पूछताछ के दौरान अधिकार :-
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के अंतर्गत किसी भी महिला को पूछताछ के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया जाएगा।
उनके बयान उनके घर पर ही परिवार के जिम्मेदार सदस्यों के सामने ही लिए जाएंगे।
रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए। बहुत जरुरी हो तो परिवार के सदस्यों या 5 पड़ोसियों के सामने उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।

गिरफ्तारी के दौरान अधिकार :-
महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2) के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
यदि रात में महिला अपराधी के भागने का खतरा हो तो सुबह तक उसे उसके घर में ही नजरबंद करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर महिला को मजिस्टे्रट के समक्ष पेश करना होगा।
गिरफ्तारी के समय महिला के किसी रिश्तेदार या मित्र को उसके साथ थाने आने दिया जाएगा।

थाने में महिला अधिकार :-
गिरफ्तारी के बाद महिला को केवल महिलाओं के लिए बने लॉकअप में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला द्वारा मजिस्टे्रट से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
सी.आर.पी.सी. की धारा-51 के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली जाएगी।

तलाशी के दौरान अधिकार :-
धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी के दौरान स्त्री के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।

जांच के दौरान अधिकार :-
सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2) के अंतर्गत यदि महिला की डॉक्टरी जांच करानी पड़े तो वह जांच केवल महिला डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
जांच रिपोर्ट के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला के साथ होना जरुरी है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार :-
पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करे।
रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले जाए।
रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने के बाद ही महिला उस पर हस्ताक्षर करें।
उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला वरिष्ठस्न् पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर सकती है।
धारा-437 के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं के प्रति नरम रुख अपनाते हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
किसी महिला की विवाह के बाद सात वर्ष के भीतर संदिग्ध अवस्था में मृत्यु होने पर धारा-174(3) के अंतर्गत उसका पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा की जानी अनिवार्य है।
धारा-416 के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्यु दंड से छूट दी गई है।

Thursday, 14 August 2014

स्वतंत्रता दिवस - 2014 की हार्दिक शुभकामनाएं

सभी सम्मानित भारत वंशियो को और इस ब्लॉग के सुधी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस - 2014 की हार्दिक शुभकामनाएं
कृपया हमारे भारत की सबसे बड़ी बीमारी "भ्रष्टाचार" को खत्म करने का प्रयास करे, ताकि भारत दुनिया का सबसे अच्छा मुल्क बन सके।

!! जय भारत प्रेम !!

Monday, 28 July 2014

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005

घरेलू हिंसा की परिभाषा :-

इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ घरेलू हिंसा शब्द का व्यापक अर्थ लिया गया है। इसमें प्रत्यर्थी का कोई भी ऐसा कार्य, लोप या आचरण घरेलू हिंसा कहलाएगा, यदि वह व्यथित व्यक्ति (पीडि़त) के स्वास्थ्य की सुरक्षा, जीवन, उसके शारीरिक अंगों या उसके कल्याण को नुकसान पहुंचाता है या क्षतिग्रस्त करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है। इसमें व्यथित व्यक्ति का शारीरिक दुरुपयोग, शाब्दिक या भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग शामिल है। (धारा 3-क) राज्य सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत सभी उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग एवं समस्त बाल विकास परियोजना अधिकारियों एवं समस्त प्रचेताओं को कुल 574 अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त संरक्षण अधिकारी संविदा के आधार पर स्वीकृत किये गये हैं। राज्य में अभी तक 87 गैर-शासकीय संस्थाओं को सेवाप्रदाता के रूप में पंजीकृत किया गया है तथा 13 संस्थाओं को आश्रयगृह के रूप में अधिसूचित किया गया है।

राज्य में सरकार के अधीन संचालित सभी जिला अस्पतालों, सेटेलाइट अस्पतालों, उपजिला अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को चिकित्सा सुविधा के रूप में अधिसूचित किया गया है। मजिस्ट्रेट द्वारा किसी प्रकरण में परामर्शदाता नियुक्त करने हेतु जिलों में परामर्शदाताओं की सूची उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग (जिला संरक्षण अधिकारी) द्वारा तैयार की जाती है। व्यथित महिलाओं को तुरंत राहत पहुंचाने आदि के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रावधान किया गया है। प्रत्येक जिले में आवश्यकतानुसार राशि आवंटित की गई है। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की उपयुक्त क्रियान्वति एवं प्रबोधन की दृष्टि से जिला महिला सहायता समिति को शीर्ष संस्था बनाया गया है।
व्यथित महिला किससे सम्पर्क करे-

संरक्षण अधिकारी से सम्पर्क कर सकती है। (सम्बन्धित उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास, बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं प्रचेता) सेवा प्रदाता संस्था से सम्पर्क कर सकती है। पुलिस स्टेशन से सम्पर्क कर सकती है। किसी भी सहयोगी के माध्यम से अथवा स्वयं सीधे न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकती है।
व्यथित महिला को राहत-

इस अधिनियम के अन्तर्गत व्यथित महिला को मजिस्ट्रेट उसके संतान या संतानों को अस्थाई अभिरक्षा, घरेलू हिंसा के कारण हुई किसी क्षति के लिए प्रतिकार आदेश एवं आर्थिक सहायता के लिए आदेश दे सकते हैं। साथ ही आवश्यकता पडऩे पर 'साझा घरÓ में निवास के आदेश भी दिए जा सकते हैं। अधिनियम की धारा 33 के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा पारित संरक्षण आदेश की अनुपालना नहीं करने पर प्रत्यर्थी को एक वर्ष तक का दंड एवं बीस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों का दंड दिया जा सकता है।

Sunday, 13 July 2014

भारतीय पुलिस अधिनियम (Act) 1861

आखिर ये पुलिस बनी कब ?
10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई और भारतवासियों ने पूरे देश में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला। उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे, तांतिया टोपे, नाना साहब पेशवा आदि।

लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें और दुबारा अंग्रेजो को भगाने के लिये 1857 से लेकर 1947 तक पुरे 90 साल लग गये। इसके लिये भगत सिहं, उधम सिहं, चंद्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिसमिल जैसे 7 लाख 32 हजार क्रंतिवीरो को अपनी जान देनी पड़ी।

जब अंग्रेज दुबारा आये तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को सीधे मारे पीटें गये नहीं। अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे। उनको डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये। तब अंग्रेजो ने INDIAN POLICE ACT बनाया, नाम मे Indian लिखा है, लेकिन Indian कुछ नहीं इसमे और पुलिस बनायी। उसमे एक धारा बनाई गई Right to offense| मतलब पुलिस वाला आप पर जितनी मर्जी लठिया मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप मर मुकद्दमा चलेगा।

इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लठिया बरसाया करती थी । फ़िर ऐसी धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके।

ऐसी ही कुछ और खतरनाक कानुन बनाने के लिये साईमन कमीशन भारत आने वाला था। क्रंतिकारी लाला लाजपत राय जी ने उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे। अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांड्र्स ने उन लाठिया बरसानी शुरु कर दी। एक लाठी मारी ,दो मारी ,तीन ,चार ,पांच करते करते 14 लाठिया मारी। नतीजा ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा उनको अस्तपताल लेकर गये वहां उनकी मौत हो गई।

अब सांड्र्स को सज़ा मिलनी चाहिए इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने आदलत में मुकद्दमा कर दिया, सुनवाई हुई। अदालत ने फैसला दिया कि लाला पर जी जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है। नतीजा सांड्र्स को बाईजत बरी किया जाता है।

तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हथियारे को बाईज्जत बरी कर दिया। उसको सज़ा मैं दुंगा। और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी पहुँचाया है। और जैसा आप जानते फ़िर भगत सिंह ने सांड्र्स को गोली से उड़ा दिया। और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई।

जिंदगी के अंतिम दिनो जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे। और भगत सिंह से पुछा उनकी कोई आखिरी इच्छा और देश के युवाओ के लिये कोई संदेश ?

शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा कि मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ। कि जिस Indian Police Act के कारण लाला जी जान गई। जिस Indian Police Act के आधार मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ। मै आशा करता हुं इस देश के नौजवान आजादी मिलने से पहले पहले इस Indian Police Act खत्म करवां देगें। ये मेरी भावना है, यही मेरे दिल की इच्छा है। लेकिन ये बहुत शर्म की बात है अजादी मिलने के बाद जिन लोगो ने देश कि सत्ता संभाली। उन्होने अंग्रेजो का भारत को बरबाद करने के लिये बनाये गये कानुनो में से एक भी कानुन नही बदला। बहुत शर्म की बात है, आजादी के 64 साल आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये।

आज भी आप देखो Indian Police Act के आधार पर पुलिस देश वासियो पर कितना जूल्म करती है। कभी अंदोलन करने वाले किसनो को डंडे मारती है। कभी औरत को डंडे मारती है। सरकार के खिलाफ़ किसी भी तरह का अंदोलन किया जाता है। तो पुलिस आकर निर्दोश लोगो को डंडे मारने शुरु कर देती है।

आज तक किसी भी राजा ने पुलिस नही बनाई सबकी सेना हुआ करती थी।

अंग्रेजो ने पुलिस और Indian Police Act क्रंतिकारियो को लाठियो से पीटने और अपना बचाव करने के लिय़े बनाया था ।

आजादी के 64 साल बाद भी ये पुलिस सरकार में बैठे काले अंग्रेजो की रक्षा करती है। और सरकार के खिलाफ़ अंदोलनकरने वालो को वैसे ही पीटती है। जैसे अंग्रेजो कि पुलिस पीटा करती थी ।

आज हर साल 23 मार्च को हम भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं। लाला लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं। किस मुँह से हम उनको श्रधांजलि आर्पित करे, कि लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये, कि मुँह से हम भगत सिंह को श्रधंजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून के आधार पर आपको फ़ासी की सज़ा हुई। आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर पर ढो रहे हैं। आज आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस अंदोलन करने वाले भारत वासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो कैसे की हम आजाद हैं।

Wednesday, 18 June 2014

Spread the Legal Knowledge :-

Know why basic Legal Knowledge is necessary for everyone.
It has been generally believed among different sections and groups of the society that legal education is only for the law students, lawyers etc. But have you ever thought that how important role can basic legal education plays in our daily life. It is very necessary for every person to have certain knowledge of Law; otherwise it would become very difficult for him to tackle several problems, from consumer protection to fundamental rights. When a person hears the word " Legal Education", a picture which is framed in his mind of lawyer or a law student or court or similar to all these. We keep ourselves away from all these things, by convincing ourself saying that all these stuff is not our cup of tea. But, have you ever thought that this ideology sometimes become the problem when someone takes away your right, and you would not be in a position to stop him from doing so. Is not because you do not know such person is taking away your rights, but because you do not know how to enforce and stop that person. Does not it become necessary in these kinds of situations to have certain legal knowledge, so that you might be able to stop that person from violating your right? Moreover, even if you are aware of your Rights, have you ever thought of a person who is not aware of all this would it take much time to stop a person from not violating rights of another person? Would it take much time to tell a person where to go and how to enforce his rights? These are the questions which are to be resolved.

Why Basic Legal Education is Necessary?
There are certain laws and regulation, basic knowledge of which is very necessary for a person, even if doesn't belong to a group which is related to legal field. If you don't belong to legal field, then have you ever thought “What would you do if someone stops you from going somewhere? ", “What would you do if someone stops you from entering a public place? ", “What would you do if someone denies you an opportunity without any valid reason? ". If I am not wrong, your answer would be “Yes, I have a right to do that thing, and the person who is stopping me from doing such an act is infringing my right".

But, the question is “Which Rights? ", “How to enforce it?", “Am I interested in enforcing those right? ", or “Even after knowing those rights I couldn't enforce it, because I do not know how to enforce it". Indeed, it is true that even after having the knowledge of infringement of Rights, usually a person would ignore it as he doesn't know the means to enforce it. And it encourages such persons, who are infringing the rights of several persons without any reason. Moreover, this is the reason why certain basic knowledge of legal education is necessary.  Our Constitution has provided certain Fundamental Rights for every citizen and certain Fundamental Rights for every person (May not be a citizen), but if you are not related to legal field, then are you aware of these fundamental rights? It would not be wrong to say that there are several people, who are not aware of their Fundamental Rights, and due to which they do not even become aware when their Fundamental Rights get violated without any cause.

Take an example of a person who is caught by a police constable in the street without any reason, and has been dragged by him to the Police Station. Generally, a normal person would only plead not to arrest him, because he has not done something which is wrong. This is due to the lack of certain legal knowledge, he is not aware of the fact that “No Police Constable/ officer can arrest him without a warrant (except some serious issues) ". Lack of knowledge is the main reason that certain rights of a person get violated so easily. It has been said that “Knowledge is the Power", and indeed it is not wrong. An educated person would be well aware of his rights which no one can take away from him, but what about those persons who do not have any such knowledge and are exploited easily?

How to know whether Your Right has been Violated:-
The main reason why a normal person do not take the violation of his rights seriously, because he lives under a belief that he would have to pay certain amount to the concerned lawyer. Moreover, he is scared of the legal process and the judicial system of the Country. And, indeed he is not wrong. But there is another way which can be used by you to know how your rights can be protected from getting violated.

There are around 952 Law Universities/ Colleges in India, which have been recognized Bar Council of India. There is a provision in these colleges to have a department of "Legal Aid Society/ Legal Aid Clinic ".  This is the place where you can go to. If you are in a state of doubt as to whether your Right has been violated or not, run to this place in the law college near you, and they would provide you the information which you are seeking. There are various law colleges who are not actively participating in these activities, and if you go around and ask them the reason why your rights have been taken away by someone, they would also become active.

Moreover, a poor person who is not able to bear the expenses of the court proceeding and the lawyers can run around to the Legal Aid Officer who is available in every District at the District Court. They why to wait, is it not your responsibility to make a common man aware of his rights and how these rights can be saved. It would be better if you could spread this word, not is a casual way but in a forceful way.

Monday, 12 May 2014

Proud Voters of Varanasi :-



Proud Voters of Varanasi in the Loksabha Election 2014.
Thanks to all Voters of India for using their "Right of Vote".
We Indians proud to be Voter of our Parliamentary System.

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...