Wednesday, 15 April 2020

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण:-

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण, जो दर्शाता है कि, हम अधिवक्ता सरकार को किस प्रकार से सहयोग करते है। अत: हम अधिवक्ताओं की मांगों को पूरा करना सरकार का मुख्य दायित्व होना चाहिये। 
नीचे दी गयी 8 image यह स्पष्ट करती हैं कि जिलावार अधिवक्ताओं के सहयोग से उतर प्रदेश सरकार को 2004-05 से 2009-10 (6 साल) में क्या आय हुई है? उक्त जानकारी जनसूचना के माध्यम से 2010 में एकत्रित की गयी थी और उक्त जानकारी बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और तत्कालीन प्रदेश सरकार को भी दी गयी और निवेदन किया गया था कि, अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु अधिवक्ता पेंशन योजना और युवा अधिवक्ताओं के लिए स्टापेंड दिया जाये। पर न बार काउंसिल ने सुना और न ही प्रदेश सरकार ने। बस समय-समय पर आश्वासन जरुर दिया।
ऐसी है, हमारी बार काउंसिल जो वर्तमान में #कोरोना महामारी के समय फिर से अधिवक्ता टिकट की बातकर, सबको फिर आश्वासनों के फेर में डालना चाह रही है। उम्मीद है शायद इस बार कुछ हो जाये, शायद मरें हुये ज़मीर जाग जायें और अधिवक्ताओं का कुछ कल्याण हो जाये।

Tuesday, 7 April 2020

लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ:-

वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि,
"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।"

इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि,
"भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। 
जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं।
मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।"
@KashiSai

Monday, 6 April 2020

'बनारस' एक ऐसा शहर जहां मृत्यु भी उत्सव है:-

बनारस। मृत्यु और काशी का अपने आप में अनोखा रिश्ता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले कहीं भी रहते हो, मगर जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त करने की चाह में वो भोलेनाथ की नगरी "काशी" ही आना चाहते हैं। सफेद चादर में लिपटा शरीर उस राम नामी चादर, लोगों की भीड़ और उसी भीड़ से आती "राम नाम सत्य है'’ की आवाज, ऐसा दृश्य आपको कहीं मिले तो समझ जाइएगा आप बनारस के मणिकर्णिका घाट अथवा हरीशचंद्र घाट पर हैं।

देखा जाए तो मृत्यु के बाद पीने-पिलाने, खाने-खिलाने, नाचने-गाने और बकायदा जश्न मनाने का चलन कई जातियों में है। नगाड़े की जोशीली संगीत पर थिरकते बूढ़े-बच्चे और नौजवान। किसी चेहरे पर शोक की कोई रेखा नहीं, हर होंठ पर मुस्कान। मद्य के सुरूर में मदमस्त लोगों का हर्ष मिश्रित शोर। जुलूस चाहे जहां से भी निकाला हो, मगर झूमता-घूमता शमशान घाट की ओर बढ़ता चला जाता है।

जुलूस भी आम सामान्य नहीं। इसका जोश देखकर ऐसा भ्रम होता है, मानो कोई वरयात्रा द्वाराचार के लिए वधू पक्ष के द्वार की ओर बढ़ रहा हो। मगर अचानक ही यह भ्रम उस वक़्त टूट जाता है, जब ‘यात्रा’ के नजदीक पहुंचने पर बाजे-गाजों के शोर के बीच ही ‘राम नाम सत्य है’ के स्वर कानों से टकराने लगते हैं, उसी क्षण यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, वह वरयात्रा नहीं बल्कि शवयात्रा है।

सदियों से काशी का मणिकर्णिका घाट व हरीशचंद्र घाट लोगों के शवदाह का गवाह बनता आया है। गंगा के तट पर बसा बनारस (वाराणसी) एक मात्र ऐसा शहर है जहां मरने के बाद मृत्यु का उत्सव मनाया जाता है, मरने की खुशी मनाई जाती है। खुशी, सांसारिक सुख त्यागने कि, खुशी, मोक्ष प्राप्त करने की और इसी खुशी को देखने और भारतीय संस्कृति के इस पौराणिक मान्यता से रूबरू होने प्रत्येक वर्ष दुनिया भर से ढेरों पर्यटक काशी का रुख करते हैं। काशी में हर तरह की अनुभूति प्रपट करते हुए सभी घाटों के बीच मन की शांति के साथ उन्हें जीवन-मरण के सुख का भी ज्ञान हो जाता है।

आखिर क्यों, इस तरह का जोश, हर्ष उल्लास वो भी किसी अपने की मृत्यु पर बार-बार यही सवाल मन में आता होगा?

शवयात्रा में शामिल लोगों से पूछा जायेगा तो ज्ञात होगा कि, मृतक ‘'एक सौ दुई साल तक जियलन, मन लगा के आपन करम कइलन, जिम्मेदारी पूरा कइलन। नाती-पोता, पड़पोता खेला के बिदा लेहलन त गम कइसन। मरे के त आखिर सबही के हौ एक दिन, फिर काहे के रोना-धोना। मटिये क सरीर मटिये बनल बिछौना।’'

उपरोक्त बातों को बताने वाले व्यक्ति को शायद खुद भी नहीं मालूम कि उनकी जुबान से खुद 'कबीर' बोल रहे हैं, जो ‘निरगुनिया’ गाते बोल गए हैं कि, "माटी बिछौना माटी ओढ़ना माटी में मिल जाना होगा।"

जाने अनजाने में ही कितनी बड़ी बात बोल गया यह इंसान जो यकीनन हर किसी के जीवन का सबसे बड़ा सत्य है और शायद इसीलिए काशी का अपना ही महत्व है और इतनी खास हमारी "काशी" है।

@KashiSai

न्यायिक अधिकारियों के कितने पद खाली हैं, भारत में (as on 20.03.2025) by #Grok

भारत में न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है, क्योंकि यह नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति, और स्वीकृत पदों की संख्य...