बाबा साहब भीमराव अंबेडकर 19वीं सदी के वे तपस्वी थे जिन्होंने शिक्षा का अलख जगा कर भारत के पिछड़े दलित गरीब असहाय समाज को शिक्षा का महत्व समझाया और बताया की शिक्षा शेरनी के उस दूध की तरह है जिसको पीने वाला दहाड़ता है, दहाड़ता है, दहाड़ता है।
मैं बाबा साहब को एक संत के रूप में मानता हूं जिसने हम सबको यह सिखाया है कि "संगठित रहो और संघर्ष करो"!
*बाबा साहब द्वारा दो मूल मंत्र हम सब भारत वासियों को दिया गया है....*
पहला यह शिक्षा से प्रेम करो, अच्छी से अच्छी शिक्षा लो, किन्हीं भी परिस्थितियों में रहो शिक्षा से दूर मत भागो, शिक्षा ही हमको संभल देगी, शक्ति देगी और अपने अधिकारों से को प्राप्त करने के लिए हमारा मार्ग प्रशस्त करेगी।
दूसरा बाबा साहब ने कहा संगठित रह कर हमको संघर्ष करना है अपने लिए अपने समाज के लिए अपने शहर के लिए अपने प्रदेश के लिए अपने देश के लिए।
अगर हम संगठित नहीं रहेंगे तो दुराचारी अत्याचारी और सत्ताधीश लोग हमारा लगातार दोहन करते रहेंगे और हमारे ऊपर अत्याचार करते रहेंगे। इसलिए संगठित रहकर, संघर्ष करना है।
शिक्षा की अलख जगाए रखना है।
बाबा साहब को शत् शत् नमन है।
बाबा साहब की वजह से आज भारतीय संविधान इतना मजबूत है कि तमाम विरोधी ताकतें उसके संशोधन के संदर्भ में सैकड़ों बार सोच रहे हैं पर कर नहीं
धन्यवाद बाबा साहब को नमन करता हूं और प्रयास करूंगा कि उनकी कुछ भी उनकी कुछ भी उनकी कुछ भी छोटी सी बात अगर मैं अपने जीवन में आत्मसात कर सकूं तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा इन्हीं शब्दों के साथ अपनी वाणी को विराम दे रहा हूं और आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
इसी प्रकार संगठित रह कर संघर्ष करते रहिए और अपने अधिकारों को प्राप्त करते रहिए।
धन्यवाद आभार
अंशुमान दुबे एडवोकेट
पूर्व उपाध्यक्ष, दी बनारस बार एसोसिएशन वाराणसी
सदस्य प्रत्याशी बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश
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