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Showing posts from June, 2024

अधिवक्ताओं के बीच जातिवाद:-

जातिवाद एक सामाजिक बुराई है जो समाज के विभिन्न वर्गों के बीच असमानता और भेदभाव को जन्म देती है। यह समस्या विभिन्न पेशों में भी व्याप्त है, और अधिवक्ताओं का पेशा भी इससे अछूता नहीं है। भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ विभिन्न जातियाँ, धर्म, और भाषाएँ सहअस्तित्व में हैं। संविधान में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई प्रावधान हैं, लेकिन व्यवहारिक जीवन में जातिवाद अभी भी मौजूद है। न्यायिक प्रणाली, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों को न्याय दिलाना है, खुद इस सामाजिक समस्या से प्रभावित है। अधिवक्ताओं के पेशे में जातिवाद के कारण 1. सामाजिक संरचना : भारतीय समाज की संरचना जाति आधारित है, और यह संरचना पेशेवर क्षेत्रों में भी प्रतिबिंबित होती है। कई बार अधिवक्ताओं को उनके जाति के आधार पर देखा जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है।    2. शैक्षिक और आर्थिक असमानता : उच्च जाति के लोग आमतौर पर बेहतर शिक्षा और आर्थिक संसाधनों तक पहुँच रखते हैं, जिससे वे अधिवक्ता के रूप में स्थापित होने में सफल होते हैं। निम्न जाति के लोग आर्थिक और शैक्षिक असमानताओं के कारण इस पेशे में कम दिखाई देते हैं।    3. न

जातिवाद: समाज का एक नासूर

जातिवाद भारतीय समाज के लिए एक गहरा और गंभीर मुद्दा है। यह एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने सदियों से हमारे समाज को विभाजित और कमजोर किया है। जातिवाद एक नासूर की तरह है जो समाज के स्वस्थ विकास में बाधा उत्पन्न करता है और न्याय, समानता, और समरसता के मूल्यों को कमजोर करता है। इस आलेख में जातिवाद के विभिन्न पहलुओं, इसके प्रभावों, और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा की जाएगी। जातिवाद के लक्षण 1. सामाजिक विभाजन : जातिवाद समाज को विभिन्न जातियों और उप-जातियों में विभाजित करता है। यह विभाजन सामाजिक संबंधों, विवाह, और सामाजिक सहभागिता को प्रभावित करता है। 2. भेदभाव और अन्याय : जातिवाद के कारण समाज के कमजोर और दलित वर्गों के साथ भेदभाव और अन्याय होता है। उन्हें शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक सम्मान में समान अवसर नहीं मिलते। 3. अस्पृश्यता : जातिवाद के चलते कुछ जातियों के लोगों को अस्पृश्य माना जाता है, जिससे उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है और सामाजिक बहिष्कार होता है। 4. हिंसा और उत्पीड़न : जातिगत भेदभाव के कारण अक्सर जातीय हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं घटित होती हैं, जो समाज में असुरक्षा और तनाव को ब

नफ़रत की राजनीति:-

" नफ़रत की राजनीति " एक ऐसा शब्द है जो उन राजनीतिक रणनीतियों और अभियानों को संदर्भित करता है जो विभाजन, भेदभाव और नकारात्मक भावनाओं पर आधारित होते हैं। इस प्रकार की राजनीति में नेता और राजनीतिक दल उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो समाज में ध्रुवीकरण उत्पन्न करते हैं, जैसे कि जाति, धर्म, नस्ल या राष्ट्रीयता। इस प्रकार की राजनीति के कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:- विभाजनकारी भाषा :-  नेताओं द्वारा भाषणों और बयानों में ऐसे शब्दों और वाक्यांशों का उपयोग करना जो समाज के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य पैदा करते हैं। संवेदनशील मुद्दों का उपयोग :- विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दों को उठाकर जनता की भावनाओं को भड़काना। भय और असुरक्षा का प्रचार :- समाज के एक वर्ग के प्रति डर और असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देना। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना :- अल्पसंख्यक समुदायों को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना और उनके खिलाफ अभियान चलाना। समूह पहचान का उभार :- लोगों को उनकी जातीय, धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान के आधार पर विभाजित करना। इस प्रकार की राजनीति समाज के ताने-बाने को नुकसान पहुंचा