Tuesday, 30 June 2020

अधिवक्ता, वाराणसी कचहरी और #कोरोना:-

#लाॅकडाउन #आत्मनिर्भरता #दानदाता #राशनपैकट #आर्थिकसहायता #अनलॉक और रोज़ रोज़ बदलते नियम कानून के फेर में 22 मार्च 2020 से 30 जून 2020 का 101 दिन #लाॅकडाउन और #अनलाॅक में बीत गये, यानि कि 2020 का 1/3 समय व्यर्थ चला गया।
और इन 101 दिनों में वकीलों पर उधार बहुत हो गया होगा..?? 

कठोरतम संघर्ष की स्थिति आ रही है। सरकारों ने अधिवक्ता समाज को #आत्मनिर्भर मान लिया है अतः #कोरोनाकाल में किसी प्रकार की सहायता नहीं दी और न ही देने की इच्छा शक्ति दिख रही है।

स्थानीय स्तर पर दानदाताओं की मदद से बार एसोसिएशन ने मात्र 1000-1000 रुपये की आर्थिक सहायता की और एक सम्मानित नेता के प्रयास से राशन का पैकेट कुल 10000+ वकीलों के बीच में 1000+ बार संघ के जरिए बंटा।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश यह दो सर्वोच्च संस्थाओं ने #कोरोनाकाल में अपने आपको पूर्णतया सफेद हाथी साबित कर दिया, किया कुछ नहीं, रोज़ सदस्यों के आपसी विवाद में उलझाकर वकीलों की आर्थिक सहायता के मुद्दे को जानबूझकर भुला दिया। 

कुछ संघर्षशील अधिवक्ता साथियों ने उच्च न्यायालय में #PIL दाखिल कर विपरीत परिस्थितियों में अधिवक्ताओं की सहायता का प्रयास किया पर वहां भी बात हलफनामा, उत्तर - प्रतिउत्तर, तारीख, आदि में उलझकर रह गया।

बिना समुचित सुरक्षा व्यवस्था के #अनलाॅक में कचहरी खुल गई और अपनी मजबूरियों का मारा अधिवक्ता पहुंच गया जेल, तलाशने लगा अन्नदाता मुवक्किल को। जिनका नाम है, वे तो वादा करोबार करके मस्त हैं। पर शेष का क्या? वो तो तलाश में लगे हैं। लेकिन अभियुक्त का पैरोकार बेरोजगारी और धनाभाव के कारण पैरवी नहीं कर पा रहा है और ऐसे में वकीलों का काम प्रतीक्षा में चला जा रहा है।

स्थितियां कठोरतम संघर्ष की मांग कर रही है। इन परिस्थितियों में संगठित रहकर संघर्ष करना होगा, व्यक्तिगत स्तर पर परिवार को संगठित रखना होगा और सामाजिक व व्यवसायिक स्तर पर कम ही सही पर सबका सहयोग करके संगठित रहकर विपरीत परिस्थितियों को हराकर आगे की स्थितियों को‌ प्लानिंग के साथ सुधारना होगा।

सादर धन्यवाद, बाबा कृपा
अंशुमान दुबे अधिवक्ता

#श्रद्धाॐसबुरी

Wednesday, 15 April 2020

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण:-

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण, जो दर्शाता है कि, हम अधिवक्ता सरकार को किस प्रकार से सहयोग करते है। अत: हम अधिवक्ताओं की मांगों को पूरा करना सरकार का मुख्य दायित्व होना चाहिये। 
नीचे दी गयी 8 image यह स्पष्ट करती हैं कि जिलावार अधिवक्ताओं के सहयोग से उतर प्रदेश सरकार को 2004-05 से 2009-10 (6 साल) में क्या आय हुई है? उक्त जानकारी जनसूचना के माध्यम से 2010 में एकत्रित की गयी थी और उक्त जानकारी बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और तत्कालीन प्रदेश सरकार को भी दी गयी और निवेदन किया गया था कि, अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु अधिवक्ता पेंशन योजना और युवा अधिवक्ताओं के लिए स्टापेंड दिया जाये। पर न बार काउंसिल ने सुना और न ही प्रदेश सरकार ने। बस समय-समय पर आश्वासन जरुर दिया।
ऐसी है, हमारी बार काउंसिल जो वर्तमान में #कोरोना महामारी के समय फिर से अधिवक्ता टिकट की बातकर, सबको फिर आश्वासनों के फेर में डालना चाह रही है। उम्मीद है शायद इस बार कुछ हो जाये, शायद मरें हुये ज़मीर जाग जायें और अधिवक्ताओं का कुछ कल्याण हो जाये।

Tuesday, 7 April 2020

लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ:-

वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि,
"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।"

इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि,
"भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। 
जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं।
मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।"
@KashiSai

Monday, 6 April 2020

'बनारस' एक ऐसा शहर जहां मृत्यु भी उत्सव है:-

बनारस। मृत्यु और काशी का अपने आप में अनोखा रिश्ता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले कहीं भी रहते हो, मगर जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त करने की चाह में वो भोलेनाथ की नगरी "काशी" ही आना चाहते हैं। सफेद चादर में लिपटा शरीर उस राम नामी चादर, लोगों की भीड़ और उसी भीड़ से आती "राम नाम सत्य है'’ की आवाज, ऐसा दृश्य आपको कहीं मिले तो समझ जाइएगा आप बनारस के मणिकर्णिका घाट अथवा हरीशचंद्र घाट पर हैं।

देखा जाए तो मृत्यु के बाद पीने-पिलाने, खाने-खिलाने, नाचने-गाने और बकायदा जश्न मनाने का चलन कई जातियों में है। नगाड़े की जोशीली संगीत पर थिरकते बूढ़े-बच्चे और नौजवान। किसी चेहरे पर शोक की कोई रेखा नहीं, हर होंठ पर मुस्कान। मद्य के सुरूर में मदमस्त लोगों का हर्ष मिश्रित शोर। जुलूस चाहे जहां से भी निकाला हो, मगर झूमता-घूमता शमशान घाट की ओर बढ़ता चला जाता है।

जुलूस भी आम सामान्य नहीं। इसका जोश देखकर ऐसा भ्रम होता है, मानो कोई वरयात्रा द्वाराचार के लिए वधू पक्ष के द्वार की ओर बढ़ रहा हो। मगर अचानक ही यह भ्रम उस वक़्त टूट जाता है, जब ‘यात्रा’ के नजदीक पहुंचने पर बाजे-गाजों के शोर के बीच ही ‘राम नाम सत्य है’ के स्वर कानों से टकराने लगते हैं, उसी क्षण यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, वह वरयात्रा नहीं बल्कि शवयात्रा है।

सदियों से काशी का मणिकर्णिका घाट व हरीशचंद्र घाट लोगों के शवदाह का गवाह बनता आया है। गंगा के तट पर बसा बनारस (वाराणसी) एक मात्र ऐसा शहर है जहां मरने के बाद मृत्यु का उत्सव मनाया जाता है, मरने की खुशी मनाई जाती है। खुशी, सांसारिक सुख त्यागने कि, खुशी, मोक्ष प्राप्त करने की और इसी खुशी को देखने और भारतीय संस्कृति के इस पौराणिक मान्यता से रूबरू होने प्रत्येक वर्ष दुनिया भर से ढेरों पर्यटक काशी का रुख करते हैं। काशी में हर तरह की अनुभूति प्रपट करते हुए सभी घाटों के बीच मन की शांति के साथ उन्हें जीवन-मरण के सुख का भी ज्ञान हो जाता है।

आखिर क्यों, इस तरह का जोश, हर्ष उल्लास वो भी किसी अपने की मृत्यु पर बार-बार यही सवाल मन में आता होगा?

शवयात्रा में शामिल लोगों से पूछा जायेगा तो ज्ञात होगा कि, मृतक ‘'एक सौ दुई साल तक जियलन, मन लगा के आपन करम कइलन, जिम्मेदारी पूरा कइलन। नाती-पोता, पड़पोता खेला के बिदा लेहलन त गम कइसन। मरे के त आखिर सबही के हौ एक दिन, फिर काहे के रोना-धोना। मटिये क सरीर मटिये बनल बिछौना।’'

उपरोक्त बातों को बताने वाले व्यक्ति को शायद खुद भी नहीं मालूम कि उनकी जुबान से खुद 'कबीर' बोल रहे हैं, जो ‘निरगुनिया’ गाते बोल गए हैं कि, "माटी बिछौना माटी ओढ़ना माटी में मिल जाना होगा।"

जाने अनजाने में ही कितनी बड़ी बात बोल गया यह इंसान जो यकीनन हर किसी के जीवन का सबसे बड़ा सत्य है और शायद इसीलिए काशी का अपना ही महत्व है और इतनी खास हमारी "काशी" है।

@KashiSai

Thursday, 19 March 2020

CoP, Roll of Advocates & सुरक्षा:-

 अधिवक्ता बहनों व भाइयों,
मैंने पहले ही कह दिया था, सभी को वकीलों का NRC फार्म (Advocates on Roll Form - Issued by DJ under  PIL) जमा करना जरूरी और आवश्यक है।‌ अब यही निर्णय संयुक्त बार एसोसिएशन के सदन ने भी ले लिया।
हम वाराणसी के अधिवक्ताओं को 23-11-2007 कचहरी परिसर बम ब्लास्ट को नहीं भूलना चाहिए और सुरक्षा व्यवस्था में सहयोग के लिए DJ Advocates on Roll Form जरुर भरना चाहिए। 
यह स्थानीय मुद्दा है, हमसब की सुरक्षा से जुड़ा है, इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। 
पर कुछ तथाकथित विशेष प्रजाति के प्रादेशिक नेता अपनी राजनीति में लगे हैं, यह खेदजनक व निंदनीय है। आप राजनीति करिये अच्छा है, यह लोकतंत्र के लिए जरूरी है, पर सुरक्षा के विषय पर राजनीति कदापि उचित नहीं है।
जहां तक 100/- रुपए शुल्क की बात है, वह देने में कोई हर्ज नहीं है। बार एसोसिएशन व काउंसिल भी परिचय पत्र का शुल्क लेता है, फ्री में ID Card नहीं देता है। तो शुल्क पर आपत्ति बेमानी है।
Advocate on Roll की पूरी कवायद सुरक्षा से जुड़ी है इसलिए सहयोग जरूरी है, यह मुफ्त किताब वितरण का after effect नहीं है, अतः विरोध न करें, सहयोग करें।
विशेष:- CoP अलग व्यवस्था है और Advocates on Roll अलग व्यवस्था है। 2018 जारी CoP 5 साल के लिए है और 5साल पूरा होने के पूर्व फिर से पांच वकालतनामा अथवा अन्य लगाकर CoP का पुनः renewal कराना होगा। अतः कोई यह भ्रम न पाले कि Advocates ón Roll हो गया तो CoP खत्म।

आपका हित, आपकी सुरक्षा, आपके हाथ!
शेष सभी अधिवक्ता बहन और भाई समझदार और विद्वान हैं।
सादर आभार व धन्यवाद।
भारत माता की जय।
अधिवक्ता एकता जिंदाबाद।
वंदेमातरम्

Friday, 8 November 2019

एक वकील का दर्द, वकील की जुबानी:-

मै एक वकील हूँ, मै डबल ग्रेजवेट कहलाता हूँ।
मै एक वकील हूँ मैं ऑफिसर ऑफ़ द कोर्ट कहलाता हूँ।
मै एक वकील हूँ पैरवी करता हूँ आपने क्लाइंट के। लिये फिर चाहे वो खुनी हो या कातिल।
मेरे काम में बड़ा है रिस्क एक जीत जाये तो दूसरा दुश्मन, दूसरा जीत जाये तो पहला दुश्मन।
फिर भी मुझे ना तो कोई प्रोटेक्सन नहीं मिलता एडवोकेट प्रोटेक्सन बिल पास नहीं होता
मैं सबसे बड़े संघ का सदस्य हूँ परंतु मुझे सामूहिक बीमा नहीं मिलता
मैं बीमार होता हूँ संघ की आस तकता हूँ मुझे मेडिकल बीमा नहीं मिलता
मुझे किराये पर कोई मकान नहीं देता मुझे संघ की तरफ से अधिवक्ता आवास नहीं मिलता ।
मै जिनके लिये पैरवी करता हूँ उनके पोर्टेक्सन के लिये ढेरों नियम और कानून हैं परंतु मेरे प्रोटेक्सन के लिये कोई कानून नहीं
मुझे लोन देने मैं बैंकों के द्वारा आना कानी किया जाता है।
मै हमेशा दूसरों की सोचता हूँ पर मेरी कोई नहीं सोचता
क्योकी मै एक वकील हूँ
मुझे ईश्वर ने मौका दिया है पीड़ित और शरणागत के रक्षा की।
मैं अपने काम के प्रति सजग हूँ तभी तो पक्षकार के साथ न्यायलय के कार्य निरंतर होते हैं ।
मुझको फीस देने मे लोगो को तकलीफ होती है जबकि सबकी तकलीफ कम करता हूँ ।
मुझे आम जन के सेवा का अवसर मिला है और सेवा के बदले कई मर्तबा अपशब्दों से भी गुजरना पड़ता है ।
मेरे दर्द को कोई समझे न समझे पर मैं सभी के दर्द को जानता समझता हूँ
क्यों के मैं एक वकील हूँ ।

Thursday, 7 November 2019

वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

वाह रे मीडिया?
वकीलों को सिर्फ गुण्डा कहने से काम नहीं चलेगा। 
कुछ ऐसा करिश्मा पैदा करो ताकि, वकीलों को आतंकवादी घोषित किया जा सके और कचहरी को आतंक का अड्डा तब जाकर, सरकार में बैठे तुम लोगों के अब्बा लोगों को सुकून मिलेगा। 

इतनी नफ़रत, किस काम की? 
रिव्यू पिटीशन के लिए भी किसी न किसी वकील का ही सहयोग लेना पड़ा, फिर भी इतनी नफ़रत, समझ से परे है।

क्या पुलिस को तानाशाही पसंद है, हम जिसको चाहे मार दे, उठा ले, हत्या कर दे पर हम पुलिस वालों से कोई प्रश्न न किया जाए? ऐसा अधिकार चाहिए तो फिर गुण्डा और आतंकी कौन हुआ, यह बताना आवश्यक नहीं रह गया है।

क्षमा के साथ निवेदन है, ईमानदारी से एक माह नौकरी करके देखो, 32वें दिन त्यागपत्र लेकर उसी मुख्यालय के सामने खड़े मिलोगे, जहां 10 घण्टे दलाल मीडिया के साथ धरना प्रदर्शन कर रहे थे।

एक आप लोग सभ्य, संस्कारी और मर्यादित हो और दूसरा आपका हुक्मरान बाकी जनता, जज, वकील, आदि सब बेईमान, भ्रष्ट और अमर्यादित है?

मीडिया की बात ही निराली है, जब चाहे किसी को सिर पर बैठा ले और जब चाहे किसी को पैरों तले कुचल दे। इस प्रकरण में एक बात ध्यान देने योग्य है, कि मीडिया और पुलिस विवाद में वकीलों की मदद की आवश्यकता दोनों को ही पड़़ती है अपना-अपना पक्ष रखने के लिए, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

जनता को जब पुलिस, जानवरों की तरह पीटती है तो उस लुटी-पिटी जनता को न्याय वकीलों के माध्यम से ही मिलता है, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

जब पुलिस वाला रेप पीड़िता या किस अन्य प्रकरण की FIR नहीं लिखता है, तो फिर उस बहन या भाई को न्याय वकीलों के माध्यम से ही मिलता है, फिर भी वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

यहां यह कहना आवश्यक है कि जिस किसी ने भी गलत किया है, चाहे वह वकील हो या पुलिस सभी को भारतीय संविधान और कानून के अन्तर्गत उतना ही दण्ड मिलना चाहिए जितना अपराध उसने किया है। 

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...