Sunday, 21 April 2019

उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदरणीय श्री रंजन गोगोई जी का बयान, "उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

मैं यह नहीं जानता कि, न्यायमूर्ति गोगोई साहब गलत हैं। मैं यह भी नहीं जानता कि, आरोप लगाने वाली महिला सच बोल रही है। लेकिन वकालत जीवन के सोलह साल में मैंने यह अनुभव जरुर किया कि, जिस प्रकार का आरोप गोगोई साहब पर लगाया गया, वह असाधारण आरोप है।
भारतीय न्यायपालिका की सर्वोच्च सत्ता को भी उस सामान्य भारतीय की तरह सड़क पर ला खड़ा कर  दिया जो इस प्रकार के आरोपों से रोजाना दो चार होते रहते हैं। मित्रता सूची में मेरे साथ कई न्यायाधीशगण भी जुड़े हैं और गोगोई साहब पर लगे इस प्रकार के आरोप से हथप्रभ भी हुए होंगे। होना भी लाजिमी है। सवाल उनके शीर्ष अधिकारी के सम्मान का जो है लेकिन जब यही आरोप किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत, किसी जमीनी विवाद के तहत अथवा किसी प्रतिशोध की भावना के तहत एक सामान्य जीवन जीने वाले इंसान पर लगता है तो इसका दर्द वह आरोपी व्यक्ति, उसका परिवार, उससे जुड़े लोग महसूस कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका कत्तई यह मीमांसा करने का जहमत नहीं उठाती कि आरोप में सत्यता कितनी है, आरोपी का सामाजिक स्तर क्या है, आरोपी के परिजनों की मनःस्थिति पर आरोप का क्या असर पडे़गा, उसके बेटे बेटी के भविष्य को कहां तक यह आरोप प्रभावित करेगा।   वकील लाख दलील देता रहे लेकिन कानून की धाराओं का ज्ञान देकर, धारा 164 में झूठे तौर पर किए गए कथनों का हवाला देकर आरोपी का जमानत आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है और एक झूठे मुकदमें में फंसाए गए निर्दोष व्यक्ति का परिवार न्यायालय दर न्यायालय भटकता रहता है। यहां तक कि इस प्रकार के झूठे आरोपों पर मैंने सजा होते भी देखा है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई पर लगे इस आरोप ने हमारी न्याय व्यवस्था को देर से ही सही लेकिन आइना दिखाने का काम किया है। अब समय आ चुका है न्यायपालिका को इस प्रकार के मामलों में अपनी सोच बदलने का। अब समय आ गया है समाज को अपनी आंख से न देखकर सामाजिक व्यवहार विचार और परम्पराओं की दृष्टि से देखने का। अब समय आ गया है आरोपी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने का नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब स्त्री पुरुष के सामाजिक  रिश्तों की हत्या होगी और पुरुष समाज किसी भी स्त्री से सार्वजनिक जीवन में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध या रिश्ता रखने से परहेज करेगा और अन्त में यही कहेगा - जान बची तो लाखों पाये।

Monday, 18 February 2019

काशी Smart City:-

Social media i.e. facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...???
काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी।
मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था।
आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं।
तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..???
बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुना था 2 साल होने को आये, पर सब जहां था वहीं है। इस आखिरी उम्मीद पर भी लगता है कि चूना लग गया। मजेदार बात यह है कि सारे राजनीतिक दल व सामाजिक संस्थान इन बातों का विरोध सिर्फ रसम अदायगी तक ही करते हैं इस उम्मीद में की शायद हम अगली बार सत्ता में आ गये तो हम भी तो यही करेंगे जो अभी वाले कर रहें हैं। इसलिए विरोध भी भविष्य को देखकर करो।
सही कहा था उस विदेशी ने पूरी काशी भगवान भरोसे चल रही है।
#AdvAnshuman
#भारतमेराधर्म
#smartcity

#JNU राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता:-

राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता, दिल्ली के जाने माने JNU से उत्पन्न हुई है और पूरे चाव से चल व चलायी जा रही है गद्दार ढूंढो की नयी लीला।

सब लगे हैं तलाश में, संयमरहित व त्वरित प्रतिक्रिया वादी हमारा Electronic मीडिया भी लगा है तलाश में, बहुते बड़े-बड़े नेता भी लगे हैं तलाश में और तो और पुलिस व कोर्ट भी और सबके अपने-अपने गद्दार हैं वर्तमान से इतिहास तक। परन्तु मिल नहीं रहा है किसी को, क्या करें वे भी जब जयचन्दों की संख्या सत्ता से लेकर जनता तक बहुसंख्यक हो तो किसी को गद्दार कहने में डर लगना स्वाभाविक है, कहीं कोई अपना न निकल आये?

बहुत पुरानी कहावत है कि, "एक उँगली दूसरों पर उठाने वाले की तीन उँगलियाँ अपनी ओर होती हैं।"

कानून हाथ में लेकर किसी को पीटकर यदि हम गर्व से सिर ऊँचा करते हैं तो, क्या भारतीय संविधान का सम्मान न करना गद्दारी नहीं है? जबकि सामने वाला अहिंसक हो। जिस कार्य के लिए वेतन ले रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार करना गद्दारी नहीं है? जिन राष्ट्रवादी सिद्धातों पर राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, उसपर न चलकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का समर्थन व सत्ता पाने के लिए उनका उपयोग क्या गद्दारी नहीं है?

गद्दारी मानव सर्वप्रथम स्वंय यानि ईश्वर से करता है फिर संबंधों से, फिर रिश्तों से, फिर समाज और राष्ट्र से करता है, क्योंकि वस्तुतः वर्तमान में स्वार्थ सिद्धी में मानव हर क्षण कहीं न कहीं गद्दारी अवश्य कर रहा है।

जनाब अन्त में यही समझ में आता है कि हमें अपना काम करने दीजिए और जिस कार्य के लिए आप माननीय लोगों को ससम्मान चुनकर संसद व विधानसभा में भेजा गया है वह करें और जनता के हित के बिलों व योजनाओं को पास करें। कहाँ चले आये आप लोग स्कूल कालेज में...???

न्याय और न्यायालय पर सबका हक है???

धनवान के पास न्याय पाने के अनेकों साधन है, यह कथन सत्य है। इसपर काेई विवाद न था आैर ना ही है।
परन्तु उनका क्या जाे संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं...???
मेरे विचार में अंग्रेजाें के द्वारा बनाये गये कानून सामन्तवाद की साेच से उत्पन्न हुये हैं आैर यह सामन्तवादी साेच आजतक हमारे सिस्टम पर हावी है। तभी ताे जिसकाे भारतीय गणतंत्र में सेवक (नेता व अधिकारी) कहा जाता है, वाे लाल नीली पीली बत्ती वाली गाड़ी में घूमता है आैर जिसकाे मालिक (मतदाता) कहा तथा समझा जाता है वह किस हाल में है... यह बताना आवश्यक नहीं है।
न्याय आैर न्यायालय पर सबका हक है, यह किताबाें में अंकित है। परन्तु भारत की यह विडम्बना है कि यह हकीकत नहीं है।
पर हम भारतीय सदैव कहते रहेंगे कि हमें भारत पर नाज़ है।
जय भारत जय गणतन्त्र।

Sunday, 30 December 2018

क्यों आयी COP की नौबत???

अधिवक्ता अब सिर्फ वही रहेंगे जिनका पेशा सिर्फ वकालत है। रजिस्ट्रेशन कराकर दूसरे पेशों से जुड़े या सरकारी नौकरी कर रहे लोगों को बार बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी में है। इसके लिए बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने वेरीफिकेशन के हथियार को इस्तेमाल किया है। छह साल से अधिक समय से रजिस्ट्रेशन कराने वाले अधिवक्ताओं को यह फॉर्म भरना अनिवार्य होगा। वेरीफिकेशन बार कौंसिल खुद कराएगा।

क्यों लिया गया निर्णय:- बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा इस प्रक्रिया को शुरू करने का उदेश्य उन्हें चिन्हित करना है जो वकालत के अलावा कुछ नहीं करते। दूसरे पेशे से जुड़े होने के बाद भी वकालत को सुरक्षा कवच के तौर पर इस्तेमाल करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाना है ताकि पूरे देश में वकीलों की छवि बेदाग रहे।

फ्रीमें स्कीम का उठाते हैं लाभ:- अधिवक्तओं के हित में उत्तर प्रदेश सरकार और यूपी बार कौंसिल द्वारा कई योजनाएं चलायी जा रही हैं। इनका लाभ हाईकोर्ट में रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं को मिलता है। यूपी प्रदेश सरकार द्वारा अधिवक्ता कल्याण निधि न्यासी समिति का गठन किया गया है। इसके तहत किसी अधिवक्ता की मृत्यु साठ साल के बाद होती है तो उसे सरकार की तरफ से पांच लाख रुपए की धनराशि प्रदान की जाती है। 2008 में वृद्धावस्था योजना भी शुरू कराई थी। इसके तहत 60 से 80 साल की उम्र में किसी अधिवक्ता की मृत्यु होने पर यूपी बार कौंसिल की तरफ से एक लाख रुपए अधिवक्ता के परिजनों को दिए जाते हैं

नियम 2015 के तहत वेरीफिकेशन:- राज्य विधिज्ञ परिषद् उत्तर प्रदेश से मिली जानकारी के मुताबिक नियम 2015 के तहत ऐसे अधिवक्ता जो पांच साल से यूपी बार कौंसिल में रजिस्टर्ड हैं को वेरीफिकेशन फॉर्म भरना अनिवार्य है। फार्म सी एप्लीकेशन फार रीसब्मिशन केवल उन्हें भरना है जिनका नाम एडवोकेट रोल से हट गया है और वह फिर से अपना नाम जोड़वाना चाहते हैं। फार्म यूपी बार कौंसिल की साइट से डाउनलोड किया जा सकता है। परिषद के काउंटर पर इसे पांच रुपए देकर प्राप्त किया जा सकता है।

क्यों आई यह नौबत:- यूपी बार कौंसिल में कुल साढ़े तीन लाख अधिवक्ता रजिस्टर्ड। नियमानुसार यदि वह प्रैक्टिस नहीं कर रहे हैं तो उन्हें इसकी सूचना बार कौंसिल को देनी चाहिए। वह किसी अन्य रोजगार में लग गए या सरकारी जॉब पा चुके हैं। ऐसे लोग सरकार और बार कौंसिल की स्कीमों का लाभ ले रहे हैं। यूपी बार कौंसिल पर इससे फंड का अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने पांच साल से अधिक समय से रजिस्टर्ड वकीलों का वेरीफिकेशन कराने का फैसला लिया है। इसके जरिए ऐसे अधिवक्ताओं की छानबीन होगी जिन्होंने रजिस्ट्रेशन तो करा रखा है लेकिन वह किसी अन्य पेशे से जुड़े हैं या सरकार जाब कर रहे हैं। इनका रजिस्ट्रेशन समाप्त किया जाएगा।

Wednesday, 28 November 2018

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् :-

ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह
सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि- = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमारी
प्रचो- दयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)

।।ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।

Monday, 12 November 2018

जानिए, काशी के इतिहास की वो तिथियां जिन्होंने बदल दिया बनारस को:-

800 ई0पू0    राजघाट (वाराणसी) में प्राचीनतम बस्ती और मिट्टी के तटबंध के पुरावशेष
8वीं सदी ई0पू0     तेईसवें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का काशी में जन्म।
7वीं सदी ई0पू0 काशी-एक स्वतंत्र महाजनपद।
625 ई0पू0    काशी सारनाथ में सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने बौद्धधर्म का उपदेश दिया था।
405 ई0पू0    चीनी यात्री फाह्यान का काशी में  आगमन हुआ।
340 ई0पू0    सम्राट अशोक की वाराणसी-यात्रा। सारनाथ में अशोक-स्तंभ और धम्मेख तथा धर्मराजिक स्तूपों की स्थापना।
1 ई0 से 300 ई0   राजघाट के पुरावशेषों के आधार पर वाराणसी के इतिहास में समृद्धि का काल।
सन् 302  मणिकर्णिका घाट का निर्माण हुआ था
816 ई0    आदि जगदगुरू शंकराचार्य का काशी में आगमन हुआ।
सन् 580  पचगंगा घाट का निर्माण हुआ।
12वीं सदी काशी पर गहड़वालों का शासन। गहड़वाल नरेश गोविन्दचंद्र के राजपंडित दामोदर द्वारा तत्कालीन   लोकभाषा (कोसली) में उक्तिव्यक्ति प्रकरण की रचना। गोविंदचंद्र की रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में विहार     बनवाया। गहडवाल युग में काशी के   प्रधान देवता अविमुक्तेश्वर शिव की विश्वेश्वर में तब्दीली।
सन् 1193 काशीराज जयचंद की मृत्यु।
सन् 1194 कुतुबुद्दीन का काशी पर आक्रमण हुआ, जिसने विष्णु-मंदिर को तोड़कर ढाई कंगूरे की मस्जिद बनवा दी।
सन् 1194 व 1197  काशी पर शहाबुद्दीन और कुतुबुद्दीन ऐबक के हमले। काशी की भारीलूट। गहडवालों का अंत।
सन् 1248 दूसरी बार मुहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ।
सन् 1393 माघ शुक्ल पूर्णिमा को काशी में रविदास का जन्म हुआ।
सन् 1516 फरवरी माह में चैतन्य महाप्रभु का काशी में आगमन हुआ, जहाँ पर ठहरे थे वह स्थान चैतन्य वट के नाम से प्रसिद्ध है।

सन् 1526    बाबर ने इब्राहीम लोदी को पराजित   करने के बाद काशी पर भी आक्रमण किया।
सन् 1531 बनारस व सारनाथ में हुमायूं का डेरा।
सन् 1538 बनारस पर शेरशाह की चढ़ाई।
सन् 1553 सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु श्री गुरूनानक देव जी का काशी आगमन हुआ और  काशी में कई वर्ष़ों तक        ठहरे थे। यह स्थान आज गुरुबाग के नाम से प्रसिद्ध है।
सन् 1565 काशी पर बादशाह अकबर का कब्जा।
सन् 1583-91  प्रथम अंग्रेज यात्री रॉल्फ फिच की वाराणसी-यात्रा।
सन् 1584 काशी में ज्ञानवापी स्थित प्राचीन विश्वेश्वर मन्दिर का निर्माण दिल्ली सम्राट अकबर के दरबारी राजा       टोडरमल के द्वारा हुआ।
सन् 1585 राजा टोडरमल और नारायण भट्ट की मदद से विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण।
सन् 1600 राजा मान सिंह द्वारा काशी में मानमंदिर और घाट का निर्माण।
सन् 1623 सोमवंशी राजा वासुदेव के मंत्री नरेणु रावत के पुत्र श्री नारायण दास के दान से काशी में मणिकर्णिका घाट    स्थित चक्रपुष्करणी तीर्थ का निर्माण हुआ।
सन् 1642 विंदुमाधव मन्दिर ( प्रथम ) का निर्माण जयपुर के राजा जयसिंह द्वारा हुआ।
सन् 1656     दारा शिकोह की बनारस यात्रा।
सन् 1666   औरंगजेब की आगरा-कैद से भागकर छत्रपति शिवाजी कुछ दिन काशी में ठहरे।
सन् 1669   औरंगजेब के आदेश से विश्वनाथ मंदिर गिरा कर उसके स्थान पर ज्ञानवापी की मस्ज़िद उठा दी गई।   बिंदुमाधव का मन्दिर भी गिराकर वहां मस्जिद बनाई गई।
सन् 1669 औरंगजेब के शासन काल में उसकी आज्ञा से ज्ञानवापी का विश्वेश्वर मन्दिर तोड़ा गया।
सन् 1669 छत्रपति शिवाजी आगरे के किले से औरंगजेब को चकमा देकर कैद से निकल कर सीधे काशी आये। यहाँ    आकर पंचगंगा घाट पर स्नान किया।
सन् 1673 काशी में औरंगजेब द्वारा बेनी माधव का मन्दिर तोड़ा गया।
सन् 1699 आमेर के महाराज सवाई जयसिंह के द्वारा काशी में पंचगंगा घाट पर राम मन्दिर बनवाया था।
सन् 1714 गंगापुर ग्राम में कार्त्तिक कृष्ण पक्ष में काशीराज महाराज बलवन्त सिंह का जन्म हुआ।
सन् 1725 काशी राज्य की स्थापना।
सन् 1734 नारायण दीक्षित पाटणकर का वाराणसी आगमन; उन्होंने यहां कई घाट बनवाए।
सन् 1737 महाराजा जयसिंह नें मानमन्दिर वेधशाला का निर्माण कराया।
सन् 1740 बलवन्त सिंह के पिता श्री मनसाराम का देहावसान हो गया।
सन् 1741-42  गंगापुर में तत्कालीन काशीराज द्वारा दुर्ग का निर्माण कराया गया।
सन् 1737 सवाई जयसिंह द्वारा मानमंदिर- वेधशाला की स्थापना।
सन् 1747 महाराज बलवन्त सिंह ने चन्देल वंशी राजा को पराजित कर विजयगढ़ पर अधिकार किया।
सन् 1752 काशीराज बलवंत सिंह द्वारा रामनगर किले का निर्माण।
सन् 1754 महाराज बलवन्त सिंह ने पलिता दुर्ग पर विजय पाया।
सन् 1755 बंगाल, नागौर राज्य की रानी भवानी के द्वारा पंचक्रोशी स्थित कर्दमेश्वर महादेव के सरोवर का निर्माण हुआ।
सन् 1756 रानी भवानी ने भीमचण्डी के सरोवर का निर्माण करवाया।
सन् 1770 21 अगस्त का महाराज बलवन्त सिंह का स्वर्गवास हुआ।
सन् 1770 से 1781 तक काशी पर महाराज चेतसिंह का शासन था।
सन् 1777 महारानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर का नवनिर्माण कराया।
सन् 1781 16 अगस्त को काशी में शिवाला घाट पर अंग्रेजी सेना से राजा चेतसिंह के सिपाहियों का संघर्ष हुआ। यह विद्रोह राजभक्त नागरिकों द्वारा मारे गये। 19 अगस्त, 1781 को काशी की देश भक्त जनता की क्रांति से भयभीत होकर वारनेहेस्टिंग्स जनाने वेश में नौका द्वारा चुनार भाग गया। दिसम्बर, सन् 1781 से 1794 तक काशी राज्य पर   महाराज महीप नारायण का राज्य था।
सन् 1785 काशी में महारानी अहिल्या बाई द्वारा विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण हुआ। सन् 1787-1795    जोनाथन डंकन बनारस के रेजिडेंट।
सन ~ 1787   काशी में प्रथम बार भूमि का बन्दोबस्त    मिस्टर डंकन साहब के द्वारा हुआ जो डंकन बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है।
सन् 1791 वाराणसी में संस्कृत पाठशाला (अब संस्कृत विश्व विद्यालय) का प्रस्ताव जोनाथन डंकन ने रखा था।
सन् 1794 काशी राजकीय संस्कृत विद्यालय (क्वींस कालेज) की स्थापना।
सन् 1802 बनारस की पहली पक्की एवं मुख्य सड़क दालमण्डी, राजादरवाजा, काशीपुरा, औसानगंज होते हुये जी.टी. रोड तक बनाई गई।
सन् 1814 बनारस में लार्ड हेस्टिंग्स का आगमन और दरबार।
सन् 1816 पश्चिम बंगाल के राजा जयनारायण द्वारा रेवड़ी तालाब मुहल्ले में अंग्रेजी भाषा के प्रथम विद्यालय ’जयनारायण हाईस्कूल’ (वर्तमान में यह इण्टर कालेज) की स्थापना।
सन् 1818 काशी के अस्सी मुहल्ले में रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।
सन् 1820 वर्तमान न्यायालय भवन (कलेक्ट्री कचहरी) का निर्माण हुआ।
सन् 1822 जेम्स प्रिंसेप ने बनारस का सर्वेक्षण किया।सन् 1825 बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कालभैरव मन्दिर का निर्माण कराया।
सन् 1827 फारसी शायर मिर्जा गालिब का काशी में आगमन, जो वर्तमान घुघरानी गली में ठहरे थे।
सन् 1828 ज्ञानवापी के खंडित सरोवर की रक्षा हेतु ग्वालियर की रानी बैजबाई ने एक कूप बनवाया।
सन् 1828-29  जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनारस की जनगणना; कुल आबादी-1,80,000
सन् 1830 विश्वेश्वरगंज स्थित गल्ला मण्डी (अनाज की सट्टी) का निर्माण हुआ।
सन् 1835 काशीराज महाराज ईश्वरी नारायण सिंह राज्य पर बैठे तथा 1889 में उनका स्वर्गवास हुआ।
सन् 1839 पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के   द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के कलश पर स्वर्ण-पत्र-चढ़ाया गया।
सन् 1845 बनारस का पहला सप्ताहिक समाचार पत्र ’बनारस’ प्रकाशित हुआ।
सन् 1853 वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन का निर्माण पूरा हुआ।
सन् 1866 काशी म्यूनिसिपल बोर्ड (नगर पालिका) की स्थापना हुई।
सन् 1867 काशी में प्रथम बार चुंगी (कर) लगी।
सन् 1869 22 अक्टूबर को काशी में स्वामी दयानन्द सरस्वती का आगमन हुआ। 17 नवम्बर सन् 1869 को दुर्गा कुण्ड पर राजा माधव सिंह बाग में विद्वानों से शाóार्थ हुआ।
सन् 1872 कमिश्नर सी.पी. कारमाइकल के नाम पर ज्ञानवापी में कारमाइकल लाइब्रेरी की स्थापना।
सन् 1875 कुमार विजयनगरम् श्री गजपति सिंह के द्वारा टाउनहाल का निर्माण हुआ।  जिसका उद्घाटन सन् 1876 में प्रिस ऑफ वेल्स के द्वारा हुआ।
सन् 1880-87  राजघाट पुल का निर्माण हुआ।
सन् 1882 नागरी प्रचारिणी सभा पुस्तकालय एवं बंग साहित्य पुस्तकालय की स्थापना।
सन् 1882 काशी में गंगा की अधिक बाढ़ हुई थी। कोदई-चौकी तक नावें चली थीं।
सन् 1885 काशी में कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई। इसकी प्रथम बैठक रामकली चौधरी के बाग में हुई थी। जिसके    सदस्य डॉ0 छन्नू लाल, बसीउद्दीन मुख्तार, मु0 माधोलाल, उपेन्द्रनाथ, वृन्दावन वकील थे।
सन् 1887 राजघाट स्थित गंगा पर रेल-सड़क पुल का उद्घाटन।
सन् 1888 काशी यात्रा के लिये स्वामी विवेकानन्द का आगमन हुआ।
सन् 1889 से 1931 तक काशी राज्य पर महाराज प्रभुनारायण सिंह का राज्य था
सन् 1890 भेलुपुर स्थित जल संस्थान का महारानी विक्टोरिया के पौत्र प्रिंस एलबर्ट विक्टर द्वारा शिलान्यास।
सन् 1891 सारनाथ में अनागारिक धर्मपाल द्वारा महाबोधि संस्था स्थापित हुई।
सन् 1892 14 नवम्बर को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर द्वारा भेलुपुर जल संस्थान का उद्घाटन।
सन् 1893 ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना।
सन् 1897 पादरी जानसन के द्वारा काशी में गिरजाघरों का निर्माण हुआ। प्रथम-सिगरा, दूसरा-गोदौलिया का।
सन् 1898 आर्यभाषा पुस्तकालय की स्थापना।
सन्  1904  तत्कालीन काशी नरेश की अध्यक्षता में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना के लिये पहली बैठक हुई।
सन् 1910 काशी में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।
सन् 1910 सारनाथ संग्रहालय का निर्माण कराया गया।
सन् 1916 पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना।
सन् 1918 काशी में प्रथम सिनेमा घर का निर्माण बैजनाथ दास शाहपुरी द्वारा बांसफाटक पर मदन थियेटर के नाम से हुआ।
सन् 1920 काशी विद्यापीठ की स्थापना।
सन् 1920 महात्मा गांधी काशी में आये और तीन दिनों तक ठहरे।
सन् 1921 10 फरवरी को गांधी जी का पुनः काशी    आगमन हुआ। तीसरी बार 1921 में उन्होंने विद्यापीठ का शिलान्यास किया।
सन् 1925 26 दिसम्बर को काकोरी षडयन्त्र के सम्बन्ध में वाराणसी में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसमें काशी के राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी दी गयी।
सन् 1928 वाराणसी मे बिजलीकरण।
सन् 1931 जून मे प्रथम बार नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का आगमन हुआ। दशाश्वमेध स्थित चितरंजन दास पार्क में अभिमन्यु दल द्वारा मानपत्र दिया गया। टाउनहाल के मैदान में नव जवान भारत सभा की ओर से एक सभा हुई।
सन् 1933-34  रिक्षे की सवारी की शुरुआत ‘दी रेस्टोंरेंट’ के मालिक बद्री बाबू नें की।
सन् 1934 13 जनवरी को काशी में भूकम्प आया।
सन् 1934 28 दिसम्बर को राजा बलदेव दास बिड़ला के दान से सारनाथ में एक धर्मशाला का निर्माण हुआ।
सन् 1937 ‘भारतमाता मन्दिर’ का महात्मा गांधी द्वारा उद्घाटन।
सन् 1939 काशी राज्य में प्रजा की माँग पर काशी नरेश श्री महाराज आदित्य नारायण सिंह ने प्रजा परिषद की घोषणा की।
सन् 1940 राजघाट (वाराणसी) के उत्खनन की शुरूआत।
सन् 1948 15 अक्टूबर को बनारस राज्य का भारतीय संघ में विलय हुआ।
सन् 1956 बुद्ध-पूर्णिमा के दिन ‘बनारस’ को अधिकृत रूप से पुराना ‘वाराणसी’ नाम दिया गया।
सन् 1964 तुलसी मानस मन्दिर (दुर्गाकुण्ड के    पास) का निर्माण हुआ।
सन् 1986 काशी में हरिश्चन्द्र घाट पर प्रथम शवदाह गृह स्थापित किया गया।(copy/paste )

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...