Tuesday, 17 November 2020

ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से...

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Sunday, 30 August 2020

Anshuman's Thoughts inspired with the blessings of Shri Shirdi Sai Baba

Herd Immunity (झुंड उन्मुक्ति)

हाल ही में ब्रिटिश सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने ब्रिटेन में तेज़ी से फैल रही COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) के विकल्प को अपनाने के संकेत दिये हैं। 

क्या है हर्ड इम्युनिटी? 

(Herd Immunity = झुंड उन्मुक्ति)

  • हर्ड इम्युनिटी से आशय- “किसी समाज या समूह के कुछ प्रतिशत लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के माध्यम से किसी संक्रामक रोग के प्रसार को रोकना है।”  
  • इस प्रक्रिया को अपनाने के पीछे अवधारणा यह है कि यदि पर्याप्त लोग प्रतिरक्षित (Immune) हों तो किसी समाज या समूह में रोग के फैलने की शृंखला को तोड़ा जा सकता है और इस प्रकार रोग को उन लोगों तक पहुँचाने से रोका जा सकता है, जिन्हें इससे सबसे अधिक खतरा हो या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।

हर्ड इम्युनिटी कैसे काम करती है?

  • किसी संक्रामक बीमारी के प्रसार और उसके लिये आवश्यक प्रतिरक्षा सीमा का अनुमान लगाने के लिए महामारी वैज्ञानिक (Epidemiologists) एक मानक का उपयोग करते हैं जिसे ‘मूल प्रजनन क्षमता’ (Basic Reproductive Number-R0) कहा जाता है।
  • यह बताता है कि किसी एक मामले या रोगी के संपर्क में आने पर कितने अन्य लोग उस रोग से संक्रमित हो सकते हैं।
  • 1 से अधिक R0 होने का मतलब है कि एक व्यक्ति कई अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
  • वैज्ञानिक प्रमाण के अनुसार, खसरे (Measles) से पीड़ित एक व्यक्ति 12-18 अन्य व्यक्तियों जबकि इन्फ्लूएंजा (Influenza) से पीड़ित व्यक्ति लगभग 1-4 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
  • वर्तमान में चीन से उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि COVID-19 का R0 2 से 3 के बीच हो सकता है।
  • कोई भी संक्रमण किसी समाज/समूह में तीन प्रकार से फैल सकता है:
    1. पहली स्थिति में जहाँ समूह में किसी भी व्यक्ति का टीकाकरण न हुआ हो ऐसे समूह में यदि 1 गुणांक वाले R0 के दो मामले आते हैं तो ऐसे में वह पूरा समुदाय संक्रमित हो सकता है।
    2. दूसरी स्थिति में यदि किसी समूह के कुछ ही लोगों का टीकाकरण हुआ हो तो उन लोगों को छोड़कर समूह के अन्य लोग संक्रमित हो सकते हैं।
    3. परंतु यदि किसी समूह में पर्याप्त लोग प्रतिरक्षित हों तो ऐसी स्थिति में समूह के वही लोग संक्रमित होंगे जो बहुत ही कमज़ोर होंगे या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत ना हो।   

हर्ड इम्युनिटी कैसे प्राप्त की जा सकती है?

  • विशेषज्ञों के अनुसार हर्ड इम्युनिटी की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे-संक्रमण के बचाव के लिये दिये जाने वाले टीके का प्रभाव, संक्रमण और टीके के प्रभाव की अवधि और समूह का वह भाग जो संक्रमण के प्रसार के लिये उत्तरदाई हो आदि। 
  • गणितीय रूप में इसे एक निश्चित संख्या से निर्धारित किया जाता है, जिसे ‘समूह प्रतिरक्षा सीमा’ (Herd Immunity Threshold) कहा जाता है। यह उन लोगों की संख्या को दर्शाता है जिन पर संक्रमण का प्रभाव और संचार नहीं हो सकता। 
  • पोलियो के लिये यह सीमा 80-85% जबकि खसरे के लिये 95% है। वर्तमान में उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर COVID-19 के लिये यह सीमा लगभग 60%है अर्थात किसी समूह में COVID-19 के प्रति हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने हेतु समूह के 60% लोगों का प्रतिरक्षित होना आवश्यक है।

COVID-19 से निपटने में हर्ड इम्युनिटी की चुनौतियाँ:

  • विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में अधिक जानकारी के अभाव में प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिये समाज के अधिक लोगों को COVID-19 से संक्रमित होने देना जोखिम भरा कदम होगा।
  • इतनी बड़ी मात्रा में लोगों में COVID-19 के प्रति प्रतिरक्षा के विकास में बहुत समय लग सकता है, जिससे कई खतरे हो सकते हैं, विशेषकर जब हमें पता यह है कि हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी सह-रुग्णता (Co-morbidities) वाले लोग इस संक्रमण से सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
  • इस प्रक्रिया में उन्ही लोगों में प्रतिरक्षा का विकास हो सकता है जो एक बार संक्रमित होकर संक्रमण से मुक्त हो सके। परंतु COVID-19 के संदर्भ में इस प्रक्रिया की सफलता के कोई प्रमाण नहीं हैं और न ही यह सुनिश्चित किया जा सका है कि एक बार ठीक होने के बाद कोई व्यक्ति पुनः इस रोग से संक्रमित नहीं होगा।   
  • इस प्रक्रिया में पहले से ही दबाव में कार्य कर रहे स्वास्थ्य केंद्रों पर बोझ और बढ़ जाएगा जो इस आपदा के समय में सही निर्णय नहीं होगा। 

स्रोत:  द इंडियन एक्प्रेस


Tuesday, 30 June 2020

अधिवक्ता, वाराणसी कचहरी और #कोरोना:-

#लाॅकडाउन #आत्मनिर्भरता #दानदाता #राशनपैकट #आर्थिकसहायता #अनलॉक और रोज़ रोज़ बदलते नियम कानून के फेर में 22 मार्च 2020 से 30 जून 2020 का 101 दिन #लाॅकडाउन और #अनलाॅक में बीत गये, यानि कि 2020 का 1/3 समय व्यर्थ चला गया।
और इन 101 दिनों में वकीलों पर उधार बहुत हो गया होगा..?? 

कठोरतम संघर्ष की स्थिति आ रही है। सरकारों ने अधिवक्ता समाज को #आत्मनिर्भर मान लिया है अतः #कोरोनाकाल में किसी प्रकार की सहायता नहीं दी और न ही देने की इच्छा शक्ति दिख रही है।

स्थानीय स्तर पर दानदाताओं की मदद से बार एसोसिएशन ने मात्र 1000-1000 रुपये की आर्थिक सहायता की और एक सम्मानित नेता के प्रयास से राशन का पैकेट कुल 10000+ वकीलों के बीच में 1000+ बार संघ के जरिए बंटा।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश यह दो सर्वोच्च संस्थाओं ने #कोरोनाकाल में अपने आपको पूर्णतया सफेद हाथी साबित कर दिया, किया कुछ नहीं, रोज़ सदस्यों के आपसी विवाद में उलझाकर वकीलों की आर्थिक सहायता के मुद्दे को जानबूझकर भुला दिया। 

कुछ संघर्षशील अधिवक्ता साथियों ने उच्च न्यायालय में #PIL दाखिल कर विपरीत परिस्थितियों में अधिवक्ताओं की सहायता का प्रयास किया पर वहां भी बात हलफनामा, उत्तर - प्रतिउत्तर, तारीख, आदि में उलझकर रह गया।

बिना समुचित सुरक्षा व्यवस्था के #अनलाॅक में कचहरी खुल गई और अपनी मजबूरियों का मारा अधिवक्ता पहुंच गया जेल, तलाशने लगा अन्नदाता मुवक्किल को। जिनका नाम है, वे तो वादा करोबार करके मस्त हैं। पर शेष का क्या? वो तो तलाश में लगे हैं। लेकिन अभियुक्त का पैरोकार बेरोजगारी और धनाभाव के कारण पैरवी नहीं कर पा रहा है और ऐसे में वकीलों का काम प्रतीक्षा में चला जा रहा है।

स्थितियां कठोरतम संघर्ष की मांग कर रही है। इन परिस्थितियों में संगठित रहकर संघर्ष करना होगा, व्यक्तिगत स्तर पर परिवार को संगठित रखना होगा और सामाजिक व व्यवसायिक स्तर पर कम ही सही पर सबका सहयोग करके संगठित रहकर विपरीत परिस्थितियों को हराकर आगे की स्थितियों को‌ प्लानिंग के साथ सुधारना होगा।

सादर धन्यवाद, बाबा कृपा
अंशुमान दुबे अधिवक्ता

#श्रद्धाॐसबुरी

Wednesday, 15 April 2020

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण:-

अधिवक्ताओं के सहयोग से प्रदेश सरकार को होने वाली आय का विवरण, जो दर्शाता है कि, हम अधिवक्ता सरकार को किस प्रकार से सहयोग करते है। अत: हम अधिवक्ताओं की मांगों को पूरा करना सरकार का मुख्य दायित्व होना चाहिये। 
नीचे दी गयी 8 image यह स्पष्ट करती हैं कि जिलावार अधिवक्ताओं के सहयोग से उतर प्रदेश सरकार को 2004-05 से 2009-10 (6 साल) में क्या आय हुई है? उक्त जानकारी जनसूचना के माध्यम से 2010 में एकत्रित की गयी थी और उक्त जानकारी बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और तत्कालीन प्रदेश सरकार को भी दी गयी और निवेदन किया गया था कि, अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु अधिवक्ता पेंशन योजना और युवा अधिवक्ताओं के लिए स्टापेंड दिया जाये। पर न बार काउंसिल ने सुना और न ही प्रदेश सरकार ने। बस समय-समय पर आश्वासन जरुर दिया।
ऐसी है, हमारी बार काउंसिल जो वर्तमान में #कोरोना महामारी के समय फिर से अधिवक्ता टिकट की बातकर, सबको फिर आश्वासनों के फेर में डालना चाह रही है। उम्मीद है शायद इस बार कुछ हो जाये, शायद मरें हुये ज़मीर जाग जायें और अधिवक्ताओं का कुछ कल्याण हो जाये।

Tuesday, 7 April 2020

लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ:-

वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि,
"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।"

इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि,
"भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। 
जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं।
मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।"
@KashiSai

Monday, 6 April 2020

'बनारस' एक ऐसा शहर जहां मृत्यु भी उत्सव है:-

बनारस। मृत्यु और काशी का अपने आप में अनोखा रिश्ता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले कहीं भी रहते हो, मगर जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त करने की चाह में वो भोलेनाथ की नगरी "काशी" ही आना चाहते हैं। सफेद चादर में लिपटा शरीर उस राम नामी चादर, लोगों की भीड़ और उसी भीड़ से आती "राम नाम सत्य है'’ की आवाज, ऐसा दृश्य आपको कहीं मिले तो समझ जाइएगा आप बनारस के मणिकर्णिका घाट अथवा हरीशचंद्र घाट पर हैं।

देखा जाए तो मृत्यु के बाद पीने-पिलाने, खाने-खिलाने, नाचने-गाने और बकायदा जश्न मनाने का चलन कई जातियों में है। नगाड़े की जोशीली संगीत पर थिरकते बूढ़े-बच्चे और नौजवान। किसी चेहरे पर शोक की कोई रेखा नहीं, हर होंठ पर मुस्कान। मद्य के सुरूर में मदमस्त लोगों का हर्ष मिश्रित शोर। जुलूस चाहे जहां से भी निकाला हो, मगर झूमता-घूमता शमशान घाट की ओर बढ़ता चला जाता है।

जुलूस भी आम सामान्य नहीं। इसका जोश देखकर ऐसा भ्रम होता है, मानो कोई वरयात्रा द्वाराचार के लिए वधू पक्ष के द्वार की ओर बढ़ रहा हो। मगर अचानक ही यह भ्रम उस वक़्त टूट जाता है, जब ‘यात्रा’ के नजदीक पहुंचने पर बाजे-गाजों के शोर के बीच ही ‘राम नाम सत्य है’ के स्वर कानों से टकराने लगते हैं, उसी क्षण यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, वह वरयात्रा नहीं बल्कि शवयात्रा है।

सदियों से काशी का मणिकर्णिका घाट व हरीशचंद्र घाट लोगों के शवदाह का गवाह बनता आया है। गंगा के तट पर बसा बनारस (वाराणसी) एक मात्र ऐसा शहर है जहां मरने के बाद मृत्यु का उत्सव मनाया जाता है, मरने की खुशी मनाई जाती है। खुशी, सांसारिक सुख त्यागने कि, खुशी, मोक्ष प्राप्त करने की और इसी खुशी को देखने और भारतीय संस्कृति के इस पौराणिक मान्यता से रूबरू होने प्रत्येक वर्ष दुनिया भर से ढेरों पर्यटक काशी का रुख करते हैं। काशी में हर तरह की अनुभूति प्रपट करते हुए सभी घाटों के बीच मन की शांति के साथ उन्हें जीवन-मरण के सुख का भी ज्ञान हो जाता है।

आखिर क्यों, इस तरह का जोश, हर्ष उल्लास वो भी किसी अपने की मृत्यु पर बार-बार यही सवाल मन में आता होगा?

शवयात्रा में शामिल लोगों से पूछा जायेगा तो ज्ञात होगा कि, मृतक ‘'एक सौ दुई साल तक जियलन, मन लगा के आपन करम कइलन, जिम्मेदारी पूरा कइलन। नाती-पोता, पड़पोता खेला के बिदा लेहलन त गम कइसन। मरे के त आखिर सबही के हौ एक दिन, फिर काहे के रोना-धोना। मटिये क सरीर मटिये बनल बिछौना।’'

उपरोक्त बातों को बताने वाले व्यक्ति को शायद खुद भी नहीं मालूम कि उनकी जुबान से खुद 'कबीर' बोल रहे हैं, जो ‘निरगुनिया’ गाते बोल गए हैं कि, "माटी बिछौना माटी ओढ़ना माटी में मिल जाना होगा।"

जाने अनजाने में ही कितनी बड़ी बात बोल गया यह इंसान जो यकीनन हर किसी के जीवन का सबसे बड़ा सत्य है और शायद इसीलिए काशी का अपना ही महत्व है और इतनी खास हमारी "काशी" है।

@KashiSai

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...