बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम तारन हार॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम साचो नाम॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम पालन हार॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम प्यारो नाम॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम तुझसे शुरू॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम तुझपे खत्म॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम जीवन तमाम॥
बाबा राम, बाबा राम,।
बाबा राम बनाये काम॥
बाबा राम, बाबा राम।
बाबा राम महादेव राम॥
बाबा राम, बाबा राम......
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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