भारत में बाल यौन शोषण कानून को बाल संरक्षण नीतियों के भाग के रूप में अधिनियमित किया गया है। भारत की संसद ने 22 मई 2012 को "लैंगिक अपराध से बालकों का संरक्षक अधिनियम, 2011" (Protection of Children Against Sexual Offences Bill, 2011) पारित कर दिया, जिसे लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराध से बालकों का संरक्षण करने और ऐसे अपराधों का विचारण करन के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना तथा उनसे सम्बंधित या आनुषंगिक विषयों के लिए उपबंध करने के लिए अधिनियम बनाया गया है । कानून के अनुसार सरकार द्वारा तैयार नियम भी 14 नवंबर, 2012 को अधिसूचित किया गया है और कानून लागू करने के लिए तैयार हो गया है। भारत के 53 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण का किसी ना किसी रूप में सामना करते हैं। इन हालत में कड़े कानून की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी।
यौन अपराधों के कानून से बच्चों का संरक्षण: -
नए कानून के तहत बाल अपराधों की कई किस्म प्रदान की गयी है जिसके माध्यम से आरोपी को हर हाल में दंडित किया जा सकता है। नए कानून के माध्यम से बाल अपराधों को विस्तारित किया गया है अब यौन उत्पीड़न ही नही बल्कि बच्चों के खिलाफ बेशर्मी द्वारा किये सभी कृत्य हर हाल में अपराध माना जायेगा। इस क़ानून में अश्लील साहित्य या अश्लील सामग्री का संग्रह कर अथवा संग्रह में बच्चों को किसी भी रूप में शामिल करना अथवा अश्लील साहित्य या अश्लील सामग्री देखना भी अपराध माना गया है। परन्तु अभी भी कानूनी प्रक्रिया और परीक्षण थकाऊ प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया बाल यौन शोषण से ग्रसित बच्चे को समय पूर्व ही एक वयस्क बना देती है। बच्चों के विरुद्ध हो रहे अपराध में अभी और सुधारों की आवशयकता है। .
कानून 2012 विधान से पहले पारित किया गया था : -
बाल यौन शोषण भारतीय दंड संहिता की निम्नलिखित धाराओं के तहत मुकदमा चलाया गया था :-
- I.P.C. (1860 ) 375- बलात्कार
- I.P.C. (1860 ) 354- महिला का लज्जा भंग करना
- I.P.C. (1860 ) 377- अप्राकृतिक अपराध
- I.P.C. (1860 ) 511- प्रयास
भारतीय दंड संहिता में विभिन्न खामियों के कारण बच्चो की रक्षा अपराधिक कृत्यों से प्रभावी ढंग से नहीं हो पा रही थी।
- आईपीसी 375 में योनि संभोग के अलावा अन्य प्रवेश के यौन कृत्यों से पुरुष पीड़ितों या किसी अन्य की भी रक्षा नहीं करता।
- आईपीसी 354 में 'लज्जा' की परिभाषा का अभाव है। कमजोर जुर्माना किया जाता है। यह नर बच्चे की 'लज्जा' की रक्षा नहीं करता।
- आईपीसी 377 में शब्द 'अप्राकृतिक अपराधों' परिभाषित नहीं है। यह केवल उनके हमलावर सेक्स कार्य से प्रवेश पर लागू होता है। बच्चों के यौन शोषण का अपराधीकरण नहीं बनाया गया है।
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