Thursday, 29 October 2015

Smart City :: सुव्यवस्थित शहर

Smart City (सुव्यवस्थित शहर) के concept काे मैं कुछ यू परिभाषित करना चाहता हूँ।

SMART शब्द पाँच अक्षराें S.M.A.R.T. से मिलकर बना है। इनकाे कुछ इस तरह समझा जाये....

S = Safty of its people's. अर्थात जनता की सुरक्षा विशेषकर महिला, बुजुर्गों व बच्चाें की।

M = Moveable Traffic. अर्थात सड़कें व पब्लिक यातायात की सुविधायें सुगम व सरल हाे।

A = Approachable basic needs. अर्थात पानी, बिजली, सीवर, संचार, स्कूल, कालेज, इंटरनेट, अस्पताल, रोजमर्रा की जरुरताें के लिए उचित बाजार, आदि की सुविधायें सुगम व सरल हाे।

R = Rights of Citizens. अर्थात हर जाति व धर्म के मानने वाले नागरिकों के माैलिक अधिकार सुरक्षित हाे।

T = Trust on Administration & Police. अर्थात जनता का शासन प्रशासन व पुलिस पर भराेसा हाे।

CITY काे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है, क्याेंकि जिस शहर में उपराेक्त विषय वस्तु की उपस्थित रहेगी, वह स्वयं में Smart city कहलाने लगेगा।

धन्यवाद। 

त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

Tuesday, 27 October 2015

"राम नाम सत्य है"

जब तलक जिस्म में श्वास की आराेह-अवराेह है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जीवन में मां बाप का आशीर्वाद है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जिन्दगी की राहाें में मित्राें का हाथ है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जीवन संगिनी का प्रेम स्वयं में स्वयं से है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तक घट-घट में राम हैं,
तब तक ये दुनिया काम की है,
अन्यथा ऐ "मान" पुनः राम नाम सत्य है,
राम नाम सत्य है।

#भारतमेराधर्म

Monday, 26 October 2015

बचपन काे तू संभाला के चल :-

चन्द रूपयाें के लिए वह अपना ईमान बेचता है,
कुछ पाने की चाह में ईमान त्यागना कहा मना है।
बचपन में जाे संस्कार सीखा वह ताे थाेथा था,
रूपया सच्चा है जिस पर बिका हर बच्चा है।
बचपन की अठनी चवनी घुलक में मिट चुकी है,
जवानी आते आते ईमान मिट व फट चुका है।
गद्दाराें की बारी है
ना आँख में हया
ना मन में राष्ट्र प्रेम है।
हे "मान" तू संभल चल अंदर तेरे अभी कुछ बचा है,
कम से कम उस बचपन काे तू संभाला के चल।

Sunday, 25 October 2015

"मान" तू प्रेम कर :-

नज़राें से जहान भर में माेहब्बत बयान हाेती है,
जुबान से जहान भर की नफरत सरेआम हाेती है।
बेजुबान जानवर नजराें से माेहब्बत बयान करते हैं,
जुबान वाले ताे लफ्जाें से नफ़रत सरेआम करते हैं।
ऐ जुबान वालाें कबीर मीरा रहीम वाला प्रेम कराे,
ताे जुबान के प्रदर्शन की आवश्यकता ना हाेगी।
मेरी काशी कबीर साईं राम बाेले "मान" तू प्रेम कर।।

Saturday, 24 October 2015

कबीर के राम, हमारे राम :-

कबीर के राम 'सगुण' अथवा 'रूप' अथवा 'आकार' के भेद से परे हैं। दरअसल उन्होंने अपने राम को शास्त्र-प्रतिपादित अवतारी, सगुण, वर्चस्वशील, वर्णाश्रम व्यवस्था के संरक्षक राम से अलग करने के लिए ही ‘निर्गुण राम’ शब्द का प्रयोग किया –

 ***निर्गुण राम जपहु रे भाई।***

इस ‘निर्गुण’ शब्द को लेकर भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं। कबीर का आशय इस शब्द से सिर्फ इतना है कि ईश्वर को किसी नाम, रूप, गुण, काल आदि की सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता। जो सारी सीमाओं से परे हैं और फिर भी सर्वत्र हैं, वही कबीर के निर्गुण राम हैं। इसे उन्होंने ‘रमता राम’ नाम दिया है। अपने राम को निर्गुण विशेषण देने के बावजूद कबीर उनके साथ मानवीय प्रेम संबंधों की तरह के रिश्ते की बात करते हैं। कभी वह राम को माधुर्य भाव से अपना प्रेमी या पति मान लेते हैं तो कभी दास्य भाव से स्वामी। कभी-कभी वह राम को वात्सल्य मूर्ति के रूप में माँ मान लेते हैं और खुद को उनका पुत्र।

निर्गुण-निराकार ब्रह्म के साथ भी इस तरह का सरस, सहज, मानवीय प्रेम कबीर की भक्ति की विलक्षणता है। यह दुविधा और समस्या दूसरों को भले हो सकती है कि जिस राम के साथ कबीर इतने अनन्य, मानवीय संबंधपरक प्रेम करते हों, वह भला निर्गुण कैसे हो सकते हैं, पर खुद कबीर के लिए यह समस्या नहीं है।

कबीर राम की किसी खास रूपाकृति की कल्पना नहीं करते, क्योंकि रूपाकृति की कल्पना करते ही राम किसी खास ढाँचे अथवा आकृति में बँध जाते, जो कबीर को किसी भी हालत में मंजूर नहीं। कबीर राम की अवधारणा को एक भिन्न और व्यापक स्वरूप देना चाहते थे। इसके बावजूद कबीर राम के साथ एक व्यक्तिगत पारिवारिक किस्म का संबंध जरूर स्थापित करते हैं। राम के साथ उनका प्रेम उनकी अलौकिक और महिमाशाली सत्ता को एक क्षण भी भुलाए बगैर सहज प्रेमपरक मानवीय संबंधों के धरातल पर प्रतिष्ठित है व रहेगा।

अतएव यह तथ्य सत्य है राम से बड़ा राम का नाम।

कुत्ता समाज खफ़ा:-

कुत्ता समाज इंसानी नेताओं से बेहद खफा है। ये इंसानी नेता बात-बात में हमारे बच्चों (पिल्लाें) काे और हम कुत्तों काे अपनी लड़ाई में क्याें घसीटते हैं।
जबकि सदियाें से लेकर आज तक लाेग, हमारी वफादारी की मिसाल देते हैं और देते चले आ रहे हैं।
इंसानी नेताओं से विनम्र निवेदन कि, कृपया हम कुत्तों काे अपने विवादाें में ना घसीटें। हम कुत्ते आज भी अपने मालिकाें के प्रति वफादार हैं और बाबा के आशीर्वाद से सदैव रहेंगे क्याेंकि हम कुत्ते हैं इंसान या नेता नहीं।
कृत-
बाबा कालभैरव की सवारी *श्वान*

Friday, 23 October 2015

एम सी छागला - पितामह

एम सी छागला : महोम्मेदाली करीम चागला (एम.सी.छागला) (30 सितंबर 1900-9 फ़रवरी 1981) एक प्रसिद्ध भारतीय न्यायधीश, राजनयिक तथा कैबिनेट मंत्री थे, जिन्होनें 1948 से 1958 तक बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की थी।

30 सितंबर 1900 को बंबई में एक धनी शिया मुस्लिम व्यापारी परिवार में जन्मे छागला ने 1905 में अपनी मां की मौत के कारण एकाकी बचपन व्यतीत किया। उन्होनें बंबई के सेंट जेवियर्स हाई स्कूल और कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की, जिसके बाद 1919 से 1922 तक वह अध्ययन करने के लिए लिंकन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। इसके बाद उन्हें बंबई उच्च न्यायालय के बार में दाखिला मिल गया जहां उन्होनें सर जमसेतजी कांगा और मोहम्मद अली जिन्ना, जो बाद में पाकिस्तान के संस्थापक बन गए, जैसे दिग्गजों के साथ काम किया।

छागला ने जिन्ना को अपना आदर्श माना और मुस्लिम लीग के सदस्य बन गए, किन्तु बाद में उनके (जिन्ना) द्वारा पृथक मुस्लिम राज्य की मांग उठाने के बाद उन्होनें जिन्ना से सभी संबंध समाप्त कर लिए. उसके बाद उन्होंने अन्य लोगों के मिल कर बंबई में मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की जो एक ऐसी पार्टी थी जिसे स्वंत्रता संग्राम के दौरान अनदेखा किया गया और हाशिए में धकेल दिया गया। 1927 में उन्हें बंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में विधि प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त किया गया, जहां उन्होनें डॉ॰ बी आर अम्बेडकर के साथ काम किया। 1941 में उन्हें बंबई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया, 1948 में वे मुख्य न्यायधीश बने और 1958 तक इस पद पर सेवा करते रहे.

1946 में, छागला संयुक्त राष्ट्र में भाग लेने वाले पहले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। 4 अक्टूबर से 10 दिसम्बर 1956 तक छागला तत्कालीन बंबई राज्य के राज्यपाल रहे जो बाद में गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्यों में विभक्त हो गया। मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के बाद, वह उस एकल सदस्यीय आयोग का हिस्सा बने जिसने विवादित हरिदास मूंदड़ा एल.आई.सी. बीमा घोटाले के लिए भारत के वित्तमंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी की जांच की, जिसके कारन टी.टी. कृष्णमाचारी को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. कृष्णमाचारी नेहरू के काफी निकट थे और इसलिए नेहरू टीटीके के बारे में छागला द्वारा किए गए खुलासे से काफी नाराज़ थे, हालांकि बाद में उन्होनें छागला को माफ़ कर दिया. सितंबर 1957 से 1959 तक छागला ने हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

सेवानिवृत्ति के बाद 1958 से 1961 तक उन्होनें संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। इसके बाद छागला ने अप्रैल 1962 से सितम्बर 1963 तक ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया। वापिस लौटने के तुरंत बाद, उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद ग्रहण करने की पेशकश की गई जो उन्होनें स्वीकार कर ली, तथा 1963 से 1966 तक उन्होनें शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया, इसके बाद नवंबर 1966 से सितम्बर 1967 तक विदेश मामलों के मंत्री के रूप कार्य किया, जिसके बाद उन्होनें सरकारी नौकरी का परित्याग कर दिया. उसके बाद सत्तर वर्ष की उम्र में अपने जीवन के बचे हुए वर्षों में वह सक्रिय रूप से वकालत करते रहे.

जवाहरलाल नेहरू के अधीन शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य करते समय छागला सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को ले कर बहुत परेशान थे:

हमारे संविधान निर्माताओं का इरादा यह नहीं था कि हम सिर्फ झोंपड़ी खड़ी करें, वहां बच्चों को भरें, उन्हें अप्रशिक्षित शिक्षक दें, उन्हें फटी हुई किताबें दें, खेल का कोई मैदान न हो और फिर यह कहें कि हमने अनुच्छेद 45 का पालन किया है और प्राथमिक शिक्षा का विस्तार हो रहा है।.. उनकी इच्छा थी कि 6 से 14 वर्ष की उम्र के बीच हमारे बच्चों को वास्तविक शिक्षा दी जानी चाहिए।

दुर्भाग्य से, यह टिप्पणी आज भी भारतीय शिक्षा के लिए उतनी ही सत्य है।

Vakil/Advocate in India :: भारत में वकील/एडवोकेट

Excellent secular court systems existed under the Mauryas (321-185 BCE) and the Mughals (16th – 19th centuries) with the latter giving way to the current common law system.

During the shift from Mughal legal system, the advocates under that regimen, “Vakil”, too followed suit, though they mostly continued their earlier role as client representatives.

During British rules the indian lawyers i.e. "Vakil" (वकील) are under the Legal Practitioners Act of 1846 which opened up the profession regardless of nationality or religion.

In Republic of India, the law relating to the Advocates is the "Advocates Act, 1961" introduced and thought up by Shri Ashok Kumar Sen, the then law minister of India, which is a law passed by the Parliament and is administered and enforced by the Bar Council of India.

Wednesday, 21 October 2015

अब मेरा दिल कोई मज़हब न मसीहा माँगे :-

अब मेरा दिल कोई मज़हब न मसीहा माँगे
ये तो बस प्यार से जीने का सलीका माँगे

ऐसी फ़सलों को उगाने की ज़रूरत क्या है
जो पनपने के लिए ख़ून का दरिया माँगें

सिर्फ़ ख़ुशियों में ही शामिल है ज़माना सारा
कौन है वो जो मेरे दर्द का हिस्सा माँगे

ज़ुल्म है, ज़हर है, नफ़रत है, जुनूँ है हर सू
ज़िन्दगी मुझसे कोई प्यार का रिश्ता माँगे

ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र
लोग हर जश्न पे मेहमान से पैसा माँगें

कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे

********* इस सुंदर रचना के लिए जनाब अज़ीज़ आज़ाद जी काे काेटिशः धन्यवाद।

न्यायिक अधिकारियों के कितने पद खाली हैं, भारत में (as on 20.03.2025) by #Grok

भारत में न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है, क्योंकि यह नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति, और स्वीकृत पदों की संख्य...