चन्द रूपयाें के लिए वह अपना ईमान बेचता है,
कुछ पाने की चाह में ईमान त्यागना कहा मना है।
बचपन में जाे संस्कार सीखा वह ताे थाेथा था,
रूपया सच्चा है जिस पर बिका हर बच्चा है।
बचपन की अठनी चवनी घुलक में मिट चुकी है,
जवानी आते आते ईमान मिट व फट चुका है।
गद्दाराें की बारी है
ना आँख में हया
ना मन में राष्ट्र प्रेम है।
हे "मान" तू संभल चल अंदर तेरे अभी कुछ बचा है,
कम से कम उस बचपन काे तू संभाला के चल।
Monday, 26 October 2015
बचपन काे तू संभाला के चल :-
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