देश के कानूनी व्यवसाय से संबंधित कानून अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और देश की बार काउंसिल द्वारा निर्धारित नियमों के आधार पर संचालित होता है। कानून के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिए यह स्वनिर्धारित कानूनी संहिता है जिसके तहत देश और राज्यों की बार काउंसिल का गठन होता है। अधिवक्ता कानून, 1961 के तहत पंजीकृत किसी भी वकील को देश भर में कानूनी व्यवसाय करने का अधिकार है। किसी राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत कोई वकील किसी दूसरे राज्य की बार काउंसिल में अपने नाम के तबादले के लिए निर्धारित नियमों के अनुसार आवेदन कर सकता है। कोई भी वकील एक या ज्यादा राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत नहीं हो सकता है। अधिवक्ताओं की दो श्रेणियां हैं जिनमें से एक को वरिष्ठ अधिवक्ता और शेष को अधिवक्ता कहा जाता है। यदि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय का यह मत है कि कोई अधिवक्ता अपनी योग्यता अदालत में अपनी स्थिति, विशेष जानकारी या कानूनी अनुभव के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता बनने का अधिकारी है तो उसे उसकी सहमति से वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता किसी अन्य अधिवक्ता के बगैर उच्चतम न्यायालय में पेश नहीं हो सकता। दूसरे अधिवक्ता का नाम रिकॉर्ड में होना चाहिए। इसी तरह अन्य अदालतों और न्यायाधिकरणों में पेश होने के लिए सहयोगी अधिवक्ता का नाम राज्य सूची में दर्ज होना चाहिए। अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण के लिए शिक्षा का स्तर निर्धारित है। व्यावसायिक आचरण और व्यवहार पर नियंत्रण के साथ-साथ अन्य मामलों के लिए नियम बनाए गए हैं। राज्य की बार काउंसिलों के पास अपने यहां पंजीकृत वकीलों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही का अधिकार होता है। इस कार्यवाही के विरुद्ध देश की बार काउंसिल में अपील की जा सकती है और उच्चतम न्यायालय में भी जाने का अधिकार मिला हुआ है।
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वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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