हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था में काम करने वाले जो एडवोकेट मित्र हैं। उनसे और अपने आपसे माफ़ी मांगते हुए आप सबसे ये पूछता हूँ कि - क्या आप जानते हैं, यह काला कोट पहन के अदालत में क्यों जाते हैं? क्या काले को छोड़ के दूसरा रंग नहीं है भारत में? सफ़ेद नहीं है। नीला नहीं है। पीला नहीं है। हरा नहीं है? और कोई रंग ही नहीं है। काला ही कोट पहनना है। वो भी उस देश की न्यायपालिका में जहाँ तापमान 45 डिग्री हो। तो 45 तापमान जिस देश में रहता हो। वहाँ के वकील काला कोट पहन के बहस करें। तो बहस के समय जो पसीना आता है। वो और गर्मी के कारण जो पसीना आता है वो। तरबतर होते जायें। और उनके कोट पर पसीने से सफ़ेद सफ़ेद दाग पड़ जायें। पीछे कालर पर और कोट को उतारते ही इतनी बदबू आये कि कोई तीन मीटर दूर खिसक जाये। लेकिन फिर भी कोट का रंग नही बदलेंगे। क्योंकि ये अंग्रेजों का दिया हुआ है।
आपको मालूम है। अंग्रेजो की अदालत में काला कोट पहन के न्यायपालिका के लोग बैठा करते थे। और उनके यहाँ स्वाभाविक है । क्योंकि उनके यहाँ न्यूनतम -40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होता है। जो भयंकर ठण्ड है। तो इतनी ठण्ड वाली देश में काला कोट ही पहनना पड़ेगा। क्योंकि वो गर्मी देता है। ऊष्मा का अच्छा अवशोषक है। अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता। और बाहर से गर्मी को खींच के अन्दर डालता है। इसीलिए ठण्ड वाले देश के लोग काला कोट पहन के अदालत में बहस करें। तो समझ में आता है। पर हिंदुस्तान के गरम देश के लोग काला कोट पहन के बहस करें। 1947 के पहले होता था। समझ में आता है। पर 1947 के बाद भी चल रहा है? हमारी बार काउन्सिल को इतनी समझ नहीं है क्या? कि इस छोटी सी बात को ठीक कर लें। बदल लें। सुप्रीम कोर्ट की बार एसोसिएशन है। हाईकोर्ट की बार एसोसिएशन है। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की बार एसोसिएशन है। सभी बार एसोसिएशन व बार काउन्सिल अॉफ इंडिया मिल के एक मिनट में फैसला कर सकते हैं कि कल से हम ये काला कोर्ट नहीं पहनेंगे।
हमारे देश पहले अंग्रेज न्यायाधीश हुआ करते थे, तो सर पर टोपा पहन के बैठते थे। जिसमें नकली बाल होते थे। आज़ादी के बाद 40-50 साल तक टोपा लगा कर यहाँ बहुत सारे जज बैठते रहे, देश की अदालत में।
अभी यहाँ क्या विचित्रता है कि काला कोट पहन लिया। ऊपर से काला पेंट पहन लिया। बो लगा लिया। सब एकदम टाइट कर दिया। हवा अन्दर बिलकुल न जाये। फिर मांग करते है कि सभी कोर्ट में एयर कंडीशनर होना चाहिए। ये कोट उतार के फेंक दो न। एयर कंडीशन की जरुरत क्या है? और उसके ऊपर एक गाउन और लाद लेते हैं। वो नीचे तक लहंगा फैलता हुआ। ऐसी विचित्रताएं इस देश में आज़ादी के 70 साल होने को हैं इसके बाद भी वकीलों का काला कोट चल व दिखाई दे रहा है।
अंग्रेजों की गुलामी की एक भी निशानी को आज़ादी के 68 साल में हमने मिटाया नहीं। सबको संभाल के रखा है।
#AdvAnshuman
Friday, 15 July 2016
वकीलों का काला कोट गुलामी का प्रतीक:-
Monday, 11 July 2016
ढ़ाई आखर प्रेम का :: डॉ. जाकिर नायक
विगत दो दिनों में तथाकथित धर्मगुरु डॉ. जाकिर नायक के youtube video देखा, सुना व समझा तो महसूस हुआ कि डॉ. साहब हर चीज़ का reference देते हैं... कुरान का फला पृष्ठ, वेद का फला पृष्ठ, बाइबल का फला पृष्ठ.. आदि आदि।
और तो और सारी तकरीरें/भाषण अंग्रेजी भाषा में... क्या देश का मुसलमान इतना शिक्षित हो चुका है..???
हमारे लाखों गरीब मुसलमान भाइयों का क्या...??? पहले वे अंग्रेजी सीखे तब ना, डॉ. साहब समझ में आयेंगें।
इन सब पर मेरे प्यारे फकीर "कबीर" ने बहुत पहले कह दिया था, जो डॉ. जाकिर नायक को श्रद्धा पूर्वक स्वरुप समर्पित है...
"पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय॥"
#AdvAnshuman
#भारतमेराधर्म
Monday, 27 June 2016
अधिवक्ता पेंशन व युवा अधिवक्ता भत्ता... आंदोलन एक यात्रा:-
अधिवक्ता पेंशन योजना व युवा अधिवक्ता भत्ता योजना की हमारी मांग को बार काउंसिल अॉफ इंडिया ने अपने नये नियम BCI Certificate and Place of Practice (Verification) Rules, 2015 में भी अंकित कर अन्तिम रुप दे दिया है।
#AdvAnshuman
Monday, 20 June 2016
BCI Verification Rules ~Vs.~ BCUP
निम्न स्तर की व्यवस्था में बिना सही नियोजन के उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने 10.06.2016 तक 70000+ अधिवक्ता बंधुओं के वेरिफिकेशन फार्म जमा करा लिये हैं।
अब देखना यह होगा कि इन फार्मों की जांच के उपरांत कब तक Certificate of Practice (COP) तथा वैधता तिथि के साथ वाला Identity Card कब तक मिलता है...???
यहां यह भी देखने योग्य होगा कि जिन अधिवक्ता बंधुओं ने वेरिफिकेशन फार्म नहीं भरा है, उनका क्या होता है...???
वेरिफिकेशन फार्म भरकर अधिवक्ता बंधुओं ने गेंद अब बार काउंसिल अॉफ इंडिया तथा बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश के पाले में डाल दी हैं, अब देखना है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले अब क्या-क्या करते हैं...???
वैसे यह कहने में कोई कष्ट नहीं है कि जिस तरीके से वेरिफिकेशन फार्म भरें व भरवायें गये हैं वह कहीं से भी स्तरीय नहीं था और यह खेद का विषय है।
बार काउंसिल का अधिवक्ताओं प्रति रवैया सही नहीं था। अॉनलाइन के युग में बाबा आदम के जमाने का तरीका, जहां एक पृष्ट के अॉनलाइन फार्म से काम चल सकता था वहां बिना बात के 11 पृष्ठ का फार्म manually भरवाया गया।
#AdvAnshuman
Monday, 6 June 2016
न्यायपालिका:-
पूरी न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर हमारा उच्चतम न्यायालय है। हर राज्य या कुछ राज्यों के समूह पर उच्च न्यायालय है। उनके अंतर्गत निचली अदालतों का एक समूचा तंत्र है। कुछ राज्यों में पंचायत न्यायालय अलग-अलग नामों से काम करते हैं, जैसे न्याय पंचायत, पंचायत अदालत, ग्राम कचहरी इत्यादि। इनका काम छोटे और मामूली प्रकार के स्थानीय दीवानी और आपराधिक मामलों का निर्णय करना है। राज्य के अलग-अलग कानून इन अदालतों का कार्यक्षेत्र निर्धारित करते हैं।
प्रत्येक राज्य न्यायिक जिलों में विभाजित है। इनका प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश होता है। जिला एवं सत्र न्यायालय उस क्षेत्र की सबसे बड़ी अदालत होती है और सभी मामलों की सुनवाई करने में सक्षम होती है, उन मामलों में भी जिनमें मौत की सजा तक सुनाई जा सकती है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश जिले का सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है। उसके तहत दीवानी क्षेत्र की अदालतें होती हैं जिन्हें अलग-अलग राज्यों में मुंसिफ, उप न्यायाधीश, दीवानी न्यायाधीश आदि नाम दिए जाते हैं। इसी तरह आपराधिक प्रकृति के मामलों के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट आदि होते हैं।
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कानूनी व्यवसाय:-
देश के कानूनी व्यवसाय से संबंधित कानून अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और देश की बार काउंसिल द्वारा निर्धारित नियमों के आधार पर संचालित होता है। कानून के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिए यह स्वनिर्धारित कानूनी संहिता है जिसके तहत देश और राज्यों की बार काउंसिल का गठन होता है। अधिवक्ता कानून, 1961 के तहत पंजीकृत किसी भी वकील को देश भर में कानूनी व्यवसाय करने का अधिकार है। किसी राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत कोई वकील किसी दूसरे राज्य की बार काउंसिल में अपने नाम के तबादले के लिए निर्धारित नियमों के अनुसार आवेदन कर सकता है। कोई भी वकील एक या ज्यादा राज्य की बार काउंसिल में पंजीकृत नहीं हो सकता है। अधिवक्ताओं की दो श्रेणियां हैं जिनमें से एक को वरिष्ठ अधिवक्ता और शेष को अधिवक्ता कहा जाता है। यदि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय का यह मत है कि कोई अधिवक्ता अपनी योग्यता अदालत में अपनी स्थिति, विशेष जानकारी या कानूनी अनुभव के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता बनने का अधिकारी है तो उसे उसकी सहमति से वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता किसी अन्य अधिवक्ता के बगैर उच्चतम न्यायालय में पेश नहीं हो सकता। दूसरे अधिवक्ता का नाम रिकॉर्ड में होना चाहिए। इसी तरह अन्य अदालतों और न्यायाधिकरणों में पेश होने के लिए सहयोगी अधिवक्ता का नाम राज्य सूची में दर्ज होना चाहिए। अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण के लिए शिक्षा का स्तर निर्धारित है। व्यावसायिक आचरण और व्यवहार पर नियंत्रण के साथ-साथ अन्य मामलों के लिए नियम बनाए गए हैं। राज्य की बार काउंसिलों के पास अपने यहां पंजीकृत वकीलों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही का अधिकार होता है। इस कार्यवाही के विरुद्ध देश की बार काउंसिल में अपील की जा सकती है और उच्चतम न्यायालय में भी जाने का अधिकार मिला हुआ है।
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अधिवक्ता कल्याण कोष:-
कनिष्ठ वकीलों को वित्तीय सहायता मुहैया कराकर उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना और दरिद्र एवं विकलांग वकीलों के लिए कल्याण कार्यक्रम चलाना कानूनी बिरादरी के लिए सदैव महत्वपूर्ण रहा है। कई राज्यों ने इस विषय पर अपने अलग विधान बनाए हैं। संसद में ‘अधिवक्ता कल्याण कोष कानून, 2001’ पारित किया है। यह कानून उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के लिए मान्य् है जहां इस विषय पर कोई कानून नहीं बना है। इस कानून का उद्देश्य है कि संबंधित सरकार ‘अधिवक्ता कल्याण कोष’ का गठन करे। इस कानून में यह अनिवार्य है कि हर वकील किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण और प्राधिकार में वकालतनामा दाखिल करने के लिए निश्चित मूल्य के टिकट लगाए। ‘अधिवक्ता कल्याण कोष टिकट’ से जुटाई गई राशि अधिवक्ता कल्याण कोष का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
सभी वकील आवेदन राशि और वार्षिक चंदा देकर अधिवक्ता कल्याण कोष के सदस्य बन जाते हैं। इस कोष का संचालन संबद्ध सरकार द्वारा गठित ट्रस्टी करती है। सदस्य को गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने पर इस कोष से अनुदान राशि दी जाती है या वकील की प्रैक्टिस बंद हो जाने पर एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। वकील की मौत हो जाने पर उसके कानूनी उत्तराधिकारी को भी राशि देने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त सदस्यों और उसके आश्रितों को चिकित्सा और शैक्षणिक सुविधा मुहैय्या कराने और वकीलों को पुस्तक खरीदने तथा समान सुविधाएं प्रदान करने के लिए भी राशि देने का प्रावधान है।
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विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।
स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...
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वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में...
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एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलस...
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Link of Bill:- एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 का प्रारुप विधेयक का प्रावधान :- विधेयक के प्रमुख प्रावधान विधेयक में बार काउंसिल की संरचना...