गरीबी का मज़ाक गरीबाेें की माैत पे,
जितना चाहे बतिया लाे, राजनीति कर लाे,
डाक्टरों काे जेल भेज दाे, दवा कम्पनी काे बन्द कर दाे,
जाे चाहाे वह कर लाे, करवा दाे।
पर बिन मां के बच्चाें का क्या हाेगा यह ताे बता दाे..?
भाई की सूनी कलाई काे दम हाे ताे फिर से सजा दाे,
पत्नी के बिन पति का फिर से विवाह करा दाे...
आैर कुछ ना कर सकाे ताे उनकी भी नसबन्दी करा दाे,
मीडिया काे काफी दिनाें बाद रमन सिंह के खिलाफकुछ मिला है, तनी टी.आर.पी. ताे बड़ा लेने दाे।
गरीबाें का काम ही मरना है,
चाहे दवा से, चाहे भूख से, चाहे बिमारियां से,
लाइन में खडा़ कर गरीबाें काे जलियांवाला बाग बना दाे,
वाह रे तेरी दुनिया, वाह रे तेरे अच्छे दिन।
जय हाे भारत।
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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