श्रद्धांजलि अर्पित:- मेरे प्रिय शायर निदा फ़ाज़ली साहब अब नहीं रहे। पर उनकी लेखनी कयामत तक रहेगी। निदा साहब कभी-कभी 'कबीर' की याद ताज़ा कर देते हैं।
अपने प्रिय शायर की कुछ रचनाएँ, उन्हें ही समर्पित है...
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तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना
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वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
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किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या
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मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
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सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम
सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग
मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान
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यक़ीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख।
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख।
ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख।
घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख।
पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख।
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#AdvAnshuman
#भारतमेराधर्म
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