क्षमा के साथ कहना पड़ रहा है कि, सेन्ट्रल बार के गांधी सभागार में स्थापित **महात्मा गांधी की प्रतिमा* जिस किसी को भी जयपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एन.एम.रांका जी (प्रतिमा दानदाता संस्था के प्रमुख) के पिता सी लगती है, वे अपने श्री-नेत्रों का किसी नेत्र चिकित्सक के पास जाकर इलाज कराने का कष्ट करें, क्योंकि बापू की जो प्रतिमा दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन 'बनारस' वाराणसी के सभागार में स्थापित है वह "ध्यानयोग मुद्रा" में है! इसे समझने के लिए अपने अंदर क्षमता उत्पन्न करनी होगी, जिसका प्रयास मैं भी निरंतर कर रहा हूँ!
***मेरी उपरोक्त बातों से यदि किसी को कष्ट हुआ हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ! मेरी उक्त बातें किसी को छोटा साबित करने के लिए नहीं हैं! उक्त बातों को लिखने के उपरांत मैं किसी भी प्रकार के दण्ड को तत्पर हूँ तथा आप दण्ड देने को स्वतंत्र हैं!***
#AdvAnshuman
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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