Wednesday, 27 April 2016

प्रातःकालीन न्यायालय पर रार :-

***प्रातःकालीन न्यायालय का समय 2003 में जब मैंने वाराणसी कचहरी में वकालत करना शुरू किया था तो तत्समय 06:30 से 12:30 तक हुआ करता था। वर्ष 2014 में हाईकोर्ट ने प्रातःकालीन न्यायालय को समाप्त कर दिया जिसके विरोध में 2014 के माह मई/जून कोई कार्य नहीं हुआ अर्थात दो माह प्रातःकालीन न्यायालय के लिए आंदोलन स्वरुप बनारस व अन्य जिलों के अधिवक्ता संघों ने कार्य से विरत रहने का प्रस्ताव पारित किया।

2014 के आंदोलन का असर रहा कि 2015 में हाईकोर्ट से प्रातःकालीन न्यायालय का समय 8:30 से 2:30 प्रस्तावित किया गया और प्रातःकालीन समय न स्वीकार करने के दशा में न्यायालय की समयावधि 10:00 से 5:00 रहने की बात भी कही गयी थी।

हाईकोर्ट के प्रस्ताव पर सेन्ट्रल बार एसोसिएशन में 2015 में संयुक्त बार की बैठक हुयी, जिसमें निर्णय हुआ कि 8:30 से 2:30 समय अस्वीकार है और विरोध स्वरूप हर माह की 28 तारीख को अधिवक्ता बंधु कार्य से विरत रहेंगे और 10 से 5 कार्य करेगें। यह क्रम सालभर चलता रहा। परन्तु किसी भी पदाधिकारी चाहे वह बार संघ अथवा बार काउंसिल का हो, ने यह विचार नहीं किया कि हाईकोर्ट के इस निर्णय को बुन्देलखण्ड व पूर्वाचंल की गर्मी को दृष्टिगत रखते हुये किसी अन्य न्यायालय में चैलेन्ज किया जायें।

2016 के अप्रैल माह में भीषण गर्मी पड़ने लगी है। यह देखकर मई/जून माह की गर्मी व तपती धूप का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। अप्रैल माह के इस गर्म मौसम में कचहरी के वरिष्ठ अधिवक्ता बंधुओं के द्वारा 10 से 5 की कचहरी में शाम होने की प्रतीक्षा में चौकी पर बैठकर बांस का पंखा झलते हुये एक-एक घूंट पानी पीते व पसीना पोछते समय बिताना देकर कष्ट होता है तथा अभी मई/जून माह का आना बाकी है। इन्हीं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुये मेरे मन में  विचार आया कि यदि हाईकोर्ट के प्रस्ताव 8:30 से 2:30 को स्वीकार कर लिया जाये तो वरिष्ठ अधिवक्ता बंधुओं को कुछ राहत मिल जायेगी और वे कुछ जल्दी घर चले जायेगें, जिससे इस भीषण और प्रचंड गर्मी में उन्हें आराम करने का अवसर मिल जायेगा, वैसे भी हमारी परम्परा रही है वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान व सुरक्षा।

परन्तु बनारस बार एसोसिएशन में प्रस्ताव दिनांक 18.04.2016 देने तथा बैठक दिनांक 19.04.2016 व 22.04.2016 केे बाद राजनीति से प्रेरित होकर या व्यक्तिगत समस्यों को आगे कर कुछ अधिवक्ता बंधुओं ने प्रस्ताव का विरोध करना शुरु कर दिया, यह कहकर की हम तो 6:30 से 12:30 को ही प्रातःकालीन न्यायालय मानेंगे। जबकि यहांं विचार करने योग्य बात यह भी है कि प्रातःकालीन न्यायालय के लिए 2014 के आंदोलन में जो जिले साथ थे वे प्रातःकालीन न्यायालय का समय 8:30 से 2:30 स्वीकार कर चुके हैं अथवा स्वीकार करने का निर्णय कर चुके हैं।

उच्च न्यायालय इलाहाबाद को अधिवक्ता बंधुओं की मांग पर कुछ नर्मी के साथ विचार करना चाहिये और वादकारियों व वरिष्ठ अधिवक्ता बंधुओं की सेहत व कार्य के लिए बार संघों को भी विचार कर प्रातः कालीन न्यायालय के प्रस्ताव 8:30 से 2:30 स्वीकार कर लेना चाहिए और 6:30 से 12:30 की समयावधि के लिये आंदोलन को पुनः नये तरीके से चलाना चाहिये अर्थात हाईकोर्ट के द्वारा स्थापित प्रातःकालीन न्यायालय के अवधारणा को स्वीकार कर, पूर्व के भाँति आंदोलन चलाया जाये और जो भी परेशानियाँ सामने आयें, उसको हाईकोर्ट की निगाह में लाकर पुनः 6:30 से 12:30 मांग को रखा जाये।
वैसे यहां यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि संयुक्त बार की साधारण सभा का निर्णय ही अन्तिम होगा। मेरे विचार से सब सहमत हो यह आवश्यक नहीं है पर लोकहित को समझना भी आवश्यक है। आंदोलन की बात करने वाले और प्रातःकालीन न्यायालय को लेकर भावनाओं में बहकर विचार देने वालों को चिन्तन करना चाहिए कि प्रातःकालीन न्यायालय के लिए चलाये जा रहे आंदोलन के लिए विगत दो वर्षों में उन लोगों ने क्या किया है? तथा आंदोलन को सफल बनाने के लिये विगत दो वर्षों में कितने सुझाव अथवा प्रस्ताव बार संघ में दिये हैं..? उत्तर मुझे भी पता है और सबको भी...!!! कुछ लोग यह कह कर डरा रहे हैं कि प्रातःकालीन न्यायालय का समय यदि 8:30 से 2:30 मान लिया गया तो उच्च न्यायालय सायंकालीन न्यायालय लागू कर देगा।

अतः दोनों बार के सम्मानित सदस्यों से निवेदन है कि सोच समझकर अपने विचार व्यक्त करें किसी डर या प्रभाव में आकर निर्णय ना लें। 

स्वयं में मैं 10:00 से 5:00 की समयावधि में भी कार्य को तैयार हूँ तथा 08:30 से 2:30 में भी कार्य करने को तैयार हूँ। अाखिर हम अधिवक्ताओं को अपने अन्नदाताओं (client) का कार्य तो करना है, चाहे न्यायालय उपरोक्त में से किसी भी समय बैठकर कार्य करें। वैसे भी हम वकीलों के पास न्यायालयों के अतिरिक्त और भी कार्य होते हैं। जिसमें समयावधि का कोई मतलब नहीं रहता तो फिर सिर्फ न्यायालय की समयावधि को लेकर इतना रार क्यों..??? कहीं इसके पीछे बार संघों के नेताओं की आपसी गुटबाजी व प्रतिस्पर्धा तो नहीं है..??? जिसमें आम अधिवक्ता व वादीकारी पिस रहें हैं।***
#AdvAnshuman

Thursday, 18 February 2016

Kashi Smart City :: काशी स्मार्ट सिटी:-

काशी smart city::: facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...???

काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी।

मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था।

आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं।

तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..???

बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुना था 2 साल होने को आये, पर सब जहां था वहीं है। इस आखिरी उम्मीद पर भी लगता है कि चूना लग गया। मजेदार बात यह है कि सारे राजनीतिक दल व सामाजिक संस्थान इन बातों का विरोध सिर्फ रसम अदायगी तक ही करते हैं इस उम्मीद में की शायद हम अगली बार सत्ता में आ गये तो हम भी तो यही करेंगे जो अभी वाले कर रहें हैं। इसलिए विरोध भी भविष्य को देखकर करो। सही कहा था उस विदेशी ने कि, "पूरी काशी भगवान भरोसे चल रही है।"

#AdvAnshuman  #भारतमेराधर्म

Tuesday, 16 February 2016

#JNU राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता:-

राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता, दिल्ली के जाने माने JNU से उत्पन्न हुई है और पूरे चाव से चल व चलायी जा रही है गद्दार ढूंढो की नयी लीला।

सब लगे हैं तलाश में, संयमरहित व त्वरित प्रतिक्रिया वादी हमारा Electronic मीडिया भी लगा है तलाश में, बहुते बड़े-बड़े नेता भी लगे हैं तलाश में और तो और पुलिस व कोर्ट भी और सबके अपने-अपने गद्दार हैं वर्तमान से इतिहास तक। परन्तु मिल नहीं रहा है किसी को, क्या करें वे भी जब जयचन्दों की संख्या सत्ता से लेकर जनता तक बहुसंख्यक हो तो किसी को गद्दार कहने में डर लगना स्वाभाविक है, कहीं कोई अपना न निकल आये?

बहुत पुरानी कहावत है कि, "एक उँगली दूसरों पर उठाने वाले की तीन उँगलियाँ अपनी ओर होती हैं।"

कानून हाथ में लेकर किसी को पीटकर यदि हम गर्व से सिर ऊँचा करते हैं तो, क्या भारतीय संविधान का सम्मान न करना गद्दारी नहीं है? जबकि सामने वाला अहिंसक हो। जिस कार्य के लिए वेतन ले रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार करना गद्दारी नहीं है? जिन राष्ट्रवादी सिद्धातों पर राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, उसपर न चलकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का समर्थन व सत्ता पाने के लिए उनका उपयोग क्या गद्दारी नहीं है?

गद्दारी मानव सर्वप्रथम स्वंय यानि ईश्वर से करता है फिर संबंधों से, फिर रिश्तों से, फिर समाज और राष्ट्र से करता है, क्योंकि वस्तुतः वर्तमान में स्वार्थ सिद्धी में मानव हर क्षण कहीं न कहीं गद्दारी अवश्य कर रहा है।

जनाब अन्त में यही समझ में आता है कि हमें अपना काम करने दीजिए और जिस कार्य के लिए आप माननीय लोगों को ससम्मान चुनकर संसद व विधानसभा में भेजा गया है वह करें और जनता के हित के बिलों व योजनाओं को पास करें। कहाँ चले आये आप लोग स्कूल कालेज में...???

****** लेखक :- अंशुमान दुबे 'मान'
#भारतमेराधर्म
#AdvAnshuman

Tuesday, 9 February 2016

श्रद्धांजलि :: निदा फ़ाज़ली साहब

श्रद्धांजलि अर्पित:- मेरे प्रिय शायर निदा फ़ाज़ली साहब अब नहीं रहे। पर उनकी लेखनी कयामत तक रहेगी। निदा साहब कभी-कभी 'कबीर' की याद ताज़ा कर देते हैं।
अपने प्रिय शायर की कुछ रचनाएँ, उन्हें ही समर्पित है...
************************
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना
************************
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
************************
किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या
************************
मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
************************
सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान
************************
यक़ीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख।

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख।

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख।

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख।

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख।
************************
#AdvAnshuman
#भारतमेराधर्म

Monday, 8 February 2016

समर्थन और विरोध:-

"समर्थन और विरोध केवल विचारों का होना चाहिये, किसी व्यक्ति का नहीं। क्योंकि अच्छा व्यक्ति भी गलत विचार रख सकता है और किसी बुरे व्यक्ति का भी, कोई विचार सही हो सकता है। अत: मत भेद कभी भी मन भेद नहीं बनने चाहिए...!!!"
आपका - अंशुमान दुबे

Sunday, 7 February 2016

गांधी: एक नाम नहीं बल्कि आदर्श:-

अगर व्यापक स्तर पर देखा जाए तो महात्मा गांधी एक शख्स का नाम नहीं बल्कि एक संस्कृति एक विरासत है महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के जीवन से मनुष्य को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि उनकी विचारधारा को कुछ घंटों में समझना मुश्किल है इसके लिए पर्याप्त अध्ययन की जरूरत है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा हैउनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत थादुनिया के महान लोगों की प्रेरणा के रूप में गांधी जी आज भी जिंदा हैं

जो चीज गांधी जी को एक आदर्श शख्सियत और पाठशाला बनाती है वह हैं उनके प्रयोग और सिद्धांत उनके हर सिद्धांत के साथ कई प्रयोग और कई अनुभव जुड़े हैंचाहे वह अहिंसा का सिद्धांत हो या उनके ब्रह्मचर्य का प्रयोग, सभी में आप गांधी जी प्रयोगात्मक सोच को पाएंगे

यहां एक तथ्य यह भी है कि निंदा करने वालाें के कारण गांधी व गांधी के विचार आज और भविष्य में भी जीवित रहेंगे। निदंक समाप्त हाे जायेगा परन्तु गांधी के विचार ताे अब प्रकृति के साथ ही समाप्त होगें।

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...