Thursday, 18 February 2016

Kashi Smart City :: काशी स्मार्ट सिटी:-

काशी smart city::: facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...???

काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी।

मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था।

आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं।

तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..???

बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुना था 2 साल होने को आये, पर सब जहां था वहीं है। इस आखिरी उम्मीद पर भी लगता है कि चूना लग गया। मजेदार बात यह है कि सारे राजनीतिक दल व सामाजिक संस्थान इन बातों का विरोध सिर्फ रसम अदायगी तक ही करते हैं इस उम्मीद में की शायद हम अगली बार सत्ता में आ गये तो हम भी तो यही करेंगे जो अभी वाले कर रहें हैं। इसलिए विरोध भी भविष्य को देखकर करो। सही कहा था उस विदेशी ने कि, "पूरी काशी भगवान भरोसे चल रही है।"

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Tuesday, 16 February 2016

#JNU राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता:-

राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता, दिल्ली के जाने माने JNU से उत्पन्न हुई है और पूरे चाव से चल व चलायी जा रही है गद्दार ढूंढो की नयी लीला।

सब लगे हैं तलाश में, संयमरहित व त्वरित प्रतिक्रिया वादी हमारा Electronic मीडिया भी लगा है तलाश में, बहुते बड़े-बड़े नेता भी लगे हैं तलाश में और तो और पुलिस व कोर्ट भी और सबके अपने-अपने गद्दार हैं वर्तमान से इतिहास तक। परन्तु मिल नहीं रहा है किसी को, क्या करें वे भी जब जयचन्दों की संख्या सत्ता से लेकर जनता तक बहुसंख्यक हो तो किसी को गद्दार कहने में डर लगना स्वाभाविक है, कहीं कोई अपना न निकल आये?

बहुत पुरानी कहावत है कि, "एक उँगली दूसरों पर उठाने वाले की तीन उँगलियाँ अपनी ओर होती हैं।"

कानून हाथ में लेकर किसी को पीटकर यदि हम गर्व से सिर ऊँचा करते हैं तो, क्या भारतीय संविधान का सम्मान न करना गद्दारी नहीं है? जबकि सामने वाला अहिंसक हो। जिस कार्य के लिए वेतन ले रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार करना गद्दारी नहीं है? जिन राष्ट्रवादी सिद्धातों पर राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, उसपर न चलकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का समर्थन व सत्ता पाने के लिए उनका उपयोग क्या गद्दारी नहीं है?

गद्दारी मानव सर्वप्रथम स्वंय यानि ईश्वर से करता है फिर संबंधों से, फिर रिश्तों से, फिर समाज और राष्ट्र से करता है, क्योंकि वस्तुतः वर्तमान में स्वार्थ सिद्धी में मानव हर क्षण कहीं न कहीं गद्दारी अवश्य कर रहा है।

जनाब अन्त में यही समझ में आता है कि हमें अपना काम करने दीजिए और जिस कार्य के लिए आप माननीय लोगों को ससम्मान चुनकर संसद व विधानसभा में भेजा गया है वह करें और जनता के हित के बिलों व योजनाओं को पास करें। कहाँ चले आये आप लोग स्कूल कालेज में...???

****** लेखक :- अंशुमान दुबे 'मान'
#भारतमेराधर्म
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Tuesday, 9 February 2016

श्रद्धांजलि :: निदा फ़ाज़ली साहब

श्रद्धांजलि अर्पित:- मेरे प्रिय शायर निदा फ़ाज़ली साहब अब नहीं रहे। पर उनकी लेखनी कयामत तक रहेगी। निदा साहब कभी-कभी 'कबीर' की याद ताज़ा कर देते हैं।
अपने प्रिय शायर की कुछ रचनाएँ, उन्हें ही समर्पित है...
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तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना
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वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
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किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या
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मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
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सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान
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यक़ीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख।

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख।

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख।

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख।

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख।
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#भारतमेराधर्म

Monday, 8 February 2016

समर्थन और विरोध:-

"समर्थन और विरोध केवल विचारों का होना चाहिये, किसी व्यक्ति का नहीं। क्योंकि अच्छा व्यक्ति भी गलत विचार रख सकता है और किसी बुरे व्यक्ति का भी, कोई विचार सही हो सकता है। अत: मत भेद कभी भी मन भेद नहीं बनने चाहिए...!!!"
आपका - अंशुमान दुबे

Sunday, 7 February 2016

गांधी: एक नाम नहीं बल्कि आदर्श:-

अगर व्यापक स्तर पर देखा जाए तो महात्मा गांधी एक शख्स का नाम नहीं बल्कि एक संस्कृति एक विरासत है महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के जीवन से मनुष्य को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि उनकी विचारधारा को कुछ घंटों में समझना मुश्किल है इसके लिए पर्याप्त अध्ययन की जरूरत है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा हैउनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत थादुनिया के महान लोगों की प्रेरणा के रूप में गांधी जी आज भी जिंदा हैं

जो चीज गांधी जी को एक आदर्श शख्सियत और पाठशाला बनाती है वह हैं उनके प्रयोग और सिद्धांत उनके हर सिद्धांत के साथ कई प्रयोग और कई अनुभव जुड़े हैंचाहे वह अहिंसा का सिद्धांत हो या उनके ब्रह्मचर्य का प्रयोग, सभी में आप गांधी जी प्रयोगात्मक सोच को पाएंगे

यहां एक तथ्य यह भी है कि निंदा करने वालाें के कारण गांधी व गांधी के विचार आज और भविष्य में भी जीवित रहेंगे। निदंक समाप्त हाे जायेगा परन्तु गांधी के विचार ताे अब प्रकृति के साथ ही समाप्त होगें।

Sunday, 31 January 2016

क्षमा चाहूंगा बापू:-

क्षमा चाहूंगा बापू से (सेन्ट्रल बार के सभागार में स्थापित महात्मा गांधी की जीवन्त प्रतिमा व उसके सम्मान से) और सभी अधिवक्ता बहनाें व भाइयों तथा समस्त गांधीवादियाें से कि, मैं दिनांक 30 जनवरी 2016 काे बनारस बार के शहीद/बलिदान दिवस कार्यक्रम की तैयारियों महामंत्री श्री नित्यानन्द राय व अन्य के साथ तथा वकालत के कामाें में वयस्त रहा। जिस कारण से आज के दिवस 30/1 काे मैं सेन्ट्रल बार के सभागार में नहीं पहुंच पाया और वास्तविकता यह भी है कि, मुझे याद भी नहीं था की सेन्ट्रल बार में बापू की प्रतिमा के सम्मुख श्रद्धांजलि अर्पित करना है। यही वजह रही कि, मैं बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण अथवा बापू की प्रतिमा के सम्मुख श्रद्धांजलि समर्पित/अर्पित नहीं कर पाया और ना ही मुझे दीे सेन्ट्रल बार एसोसिएशन 'बनारस' वाराणसी में किसी श्रद्धांजलि सभा अथवा कार्यक्रम की सूचना थी। जहां तक मुझे जानकारी है, सेन्ट्रल बार में काेई कार्यक्रम था भी नहीं।

यह मेरी त्रुटि व भूल है और मैं स्वयं अपने आपकाे इस गलती के लिए दाेषी मानता हूँ और मेरा यह कृत्य क्षमा के याेग्य नहीं है, यह मेरा विचार है।

यदि मेरे प्रिय अधिवक्ता बहनाें व भाइयों तथा समस्त भारतवंशियाें व गांधीवादियाें के द्वारा इस कृत्य के लिए मुझे क्षमा दी जाती है, ताे यह उनकी श्रेष्ठता तथा प्रेम व आशीर्वाद हाेगा।
पुनः क्षमा के साथ आपका निंदनीय...
अंशुमान दुबे (एडवोकेट)
पूर्व उपाध्यक्ष
दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी
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बहुत भरोसा था हमें कोमल शब्दों पर
और सदियों के आंसुओं से तुम्हारी आंख़ें गीली थीं
यकीन था भावनाओं पर
पर तुम्हारे स्वत्व पर लोहे की जिन सलाखों के निशान थे
उसका कोई काट न था इन भावनाओं के पास
शब्द थे ढेर सारे
निरर्थक नहीं थे सब
पर तुमको संबोधित होकर भी कितने गैर थे तुम्हारे लिये

क्षमा करना, इन्हीं शब्दों के बीहड़ वन में
बदहवास भटकते बीत गया है कितना वक्त……
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#भारतमेराधर्म
#AdvAnshuman

विवेकानंद प्रवास स्थल - गोपाल विला, अर्दली बाजार, वाराणसी :: बने राष्ट्रीय स्मारक।

स्वामी विवेकानंद का वाराणसी से गहरा संबंध था। उन्होंने वाराणसी में कई बार प्रवास किया, जिनमें 1888 में पहली बार आगमन और 1902 में अंतिम प्रवा...