Tuesday, 2 December 2014

Happy Advocate's Day :-

3-दिसम्बर
अधिवक्ता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
3rd December
Happy Advocate's Day.


Sunday, 30 November 2014

विधि संदेश 'काशी' ~ तृत्तीय संस्करण

विधि संदेश 'काशी' ~ तृत्तीय संस्करण
💫नयी सोच नया नज़रिया 💫
नवम्बर / दिसम्बर 2014
वाराणसी कचहरी 
वर्ष : 1 - अंक : 3 - कुल पृष्ठ : 8
प्रकाशित प्रतियां :3000 
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http://vidhisandeshkashi.blogspot.in/2014/11/blog-post_29.html
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Sunday, 23 November 2014

कचहरी बम धमाका 23/11 - श्रद्धांजलि

कचहरी बम धमाका 23/11 (२७-११-२००७) की बरसी पर अधिवक्ता बंधुआें ने शहीद अधिवक्ताअाें व अन्य काे श्रद्धांजलि दी। माेमबत्ती जलाई आैर दाे मिनट का माैन रखकर शाेक व्यक्त किया और शहीदों को शत-शत नमन किया। 
कचहरी की सुरक्षा के लिए शासन-प्रशासन व मौके पर उपस्थित जिला जज से विचार करने और कचहरी के दोनों परिसरों की सुरक्षित करने के लिए जरूरी कार्यवाही करने का सविनय निवेदन किया।

























Thursday, 13 November 2014

उनकी भी नसबन्दी करा दाे :-

गरीबी का मज़ाक गरीबाेें की माैत पे,
जितना चाहे बतिया लाे, राजनीति कर लाे,
डाक्टरों काे जेल भेज दाे, दवा कम्पनी काे बन्द कर दाे,
जाे चाहाे वह कर लाे, करवा दाे।
पर बिन मां के बच्चाें का क्या हाेगा यह ताे बता दाे..?
भाई की सूनी कलाई काे दम हाे ताे फिर से सजा दाे,
पत्नी के बिन पति का फिर से विवाह करा दाे...
आैर कुछ ना कर सकाे ताे उनकी भी नसबन्दी करा दाे,
मीडिया काे काफी दिनाें बाद रमन सिंह के खिलाफ 
कुछ मिला है, तनी टी.आर.पी. ताे बड़ा लेने दाे।
गरीबाें का काम ही मरना है,
चाहे दवा से, चाहे भूख से, चाहे बिमारियां से,
लाइन में खडा़ कर गरीबाें काे जलियांवाला बाग बना दाे,
वाह रे तेरी दुनिया, वाह रे तेरे अच्छे दिन।
जय हाे भारत।

Wednesday, 12 November 2014

पांच चीजों को फेसबुक पर कभी पोस्‍ट नहीं करना चाहिए :-

आज के दौर में सोशल नेटवर्किंग के मामले में फेसबुक का कोई सानी नहीं है . अगर आप इस वक्‍त अपना स्‍टेटस अपडेट नहीं कर रहे होंगे तो आप या तो फोटो अपलोड कर रहे होंगे या फेसबुक पर किसी अजीब से क्विज में भाग ले रहे होंगे. जाने-अनजाने हम अपने बारे में ऐसी कई निजी जानकारियां फेसबुक पर साझा करने लगे हैं जिनके बारे में आमतौर पर हम किसी से जिक्र तक करना पसंद नहीं करते. हम सोचते हैं कि अगर हमने अपनी प्राइवेसी सेटिंग्‍स सही से सेट की हैं तो चिंता करने की कोई बात नहीं और खुद को अपने फ्रेंड सर्किल के बीच पूरी तरह महफूज समझने लगते हैं.

असल परेशानी इस बात की है कि हमें कभी ये पता ही नहीं चलता है कि फेसबुक पर कौन हमारे बारे में पढ़ रहा है या जानकारी जुटा रहा है. हो सकता है कि हमारा कोई दोस्‍त ऐसी एप्‍लीकेशन डाउनलोड कर लेता है जिससे उसका एकाउंट हैक हो जाए. यह भी हो सकता है कि हमारा दोस्‍त लॉगआउट करना भूल जाए और उसके कोई अंकल या जानकार उसके एकाउंट का इस्‍तेमाल करने लगे. ऐसे में अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए आपको इन पांच चीजों को फेसबुक पर कभी पोस्‍ट नहीं करना चाहिए:

(1) अपने और अपने परिवार की पूरी बर्थडेट: बर्थडे के दिन अपनी फेसबुक वॉल पर "हैप्‍पी बर्थडे" मैसेज पढ़कर हम सबको बेहद खुशी होती है. यही वजह है कि हम में से ज्‍यादातर लोग अपने जन्‍मदिन की तारीख फेसबुक पर जरूर मेंशन करते हैं, लेकिन ऐसा करते वक्‍त हम ये भूल जाते हैं कि हम चोरों को अपने बारे में बेहद निजी जानकरी दे रहे हैं. वैसे हमें बर्थ डेट मेंशन करने से बचना चाहिए, लेकिन फिर भी अगर आप ऐसा करना ही चाहते हैं तो कम से कम से बर्थ ईयर के बारे में कोई जानकारी न दें. वैसे भी जो आपके सच्‍चे और पक्‍के दोस्‍त होंगे उन्‍हें आपके बर्थडे के बारे में मालूम ही होगा.

(2) रिलेशनशिप स्‍टेटस: चाहे आप रिलेशन में हों या न हों, उसे सार्वजनिक रूप से जाहिर न करने में ही अक्‍लमंदी है. अगर आप अपना स्‍टेटस कमिटेड से सिंगल करते हैं तो उन लोगों को मौका मिल जाता है जो काफी समय से आपके पीछे पड़े हुए थे. इससे उन्‍हें यह भी पता चल जाता है कि अब आप ज्‍यादातर समय अकेले रहती हैं. ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि अपने प्रोफाइल में रिलेशनशिप स्‍टेटस को ब्‍लैंक ही छोड़ दिया जाए.

(3) करंट लोकेशन: ऐसे कई लोग हैं जिन्‍हें फेसबुक पर लोकेशन टैग करना बहुत अच्‍छा लगता है ताकि वे बता सकें कि 24 घंटे सातों दिन वे कहां रहते हैं. यानी कि आप खुलेआम इस बात का ऐलान करते फिर रहे हैं कि आप छुट्टियों पर हैं (और आपके घर में कोई नहीं है). इस पर अगर आप ये भी बता दें कि आप कितने दिनों के लिए बाहर गए हैं तो चोरों का काम आसान हो जाता है और वे आसानी से आपके घर पर हाथ साफ करने की साजिश रच लेते हैं. अच्‍छा यह रहेगा कि छुट्टियों से वापिस आने पर आप फोटो अपलोड कर अपने दोस्‍तों को जताएं कि जब वो काम कर रहे थे तब आप घूमने, खाने-पीने और शॉपिंग में बिज़ी थे.

(4) घर पर अकेले हैं तो रखें खास एहतियात: पेरेंट्स को इस बात का खास ध्‍यान रखना चाहिए कि जब उनके बच्‍चे घर पर अकेले हों तब न तो खुद और न ही बच्‍चे इस बारे में अपने-अपने फेसबुक एकाउंट पर कुछ लिखें. वैसे भी जब आप घर पर अकेले होते हैं तब खुद किसी अजनबी के घर जाकर उसे इस बारे में जानकारी नहीं देते हैं तो फेसबुक पर भी ऐसा न करें.

हमें लगता है कि सिर्फ हमारे दोस्‍त ही हमारा स्‍टेटस पढ रहे हैं, लेकिन असल में हमें पता ही नहीं होता है कि कौन-कौन उसे पढ़ रहा है. हो सकता है कि आपके दोस्‍त का एकाउंट हैक हो गया हो या दफ्तर में उसके पीछे खड़े होकर कोई चुपके से आपके स्‍टेटस को पढ़ रहा हो. सबसे अच्‍छा तरीका यही है कि आप फेसबुक पर ऐसा कोई स्‍टेटस अपलोड न करें जिसे आप किसी अजनबी से कभी शेयर नहीं करेंगे.

(5) बच्‍चों की तस्‍वीरें उनके नाम से टैग न करें: हम अपने बच्‍चों से बेहद प्‍यार करते हैं. उन्‍हें महफूज रखने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन ज्‍यादातर लोग अपने बच्‍चों की ढेर सारी फोटो और वीडियो बिना सोचे-समझे टैग कर देते हैं. यही नहीं कई बार तो हम उनकी फोटो को ही अपनी प्रोफाइल पिक्‍चर बना लेते हैं. 10 में से नौ पेरेंट्स ऐसे हैं जो डिलीवरी के बाद अस्‍पताल में रहते हुए ही अपने बच्‍चों का पूरा नाम और डेट तथा टाइम फेसबुक पर पोस्‍ट कर देते हैं.

हम अपने बच्‍चों की फोटो पोस्‍ट करने के साथ ही उन्‍हें और उनके दोस्‍तों को अपने भाई-बहनों, कजिन्‍स और दूसरे रिश्‍तेदारों के साथ टैग कर देते हैं. इस जानकारी का इस्‍तेमाल बदमाश आपके बच्‍चे को बहलाने के लिए कर सकते हैं. आपके बच्‍चों का विश्‍वास जीतने के लिए वे उन्‍हें नाम से बुलाने के साथ ही उनके दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों का नाम भी ले सकते हैं ताकि उन्‍हें यकीन हो जाए कि वो अजनबी नहीं हैं. इस तरह वे धीरे-धीरे बच्‍चों के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं और फिर अपने नापाक इरादों को अंजाम देते हैं.

अगर आप अपने बच्‍चों की तस्‍वीरें अपलोड भी कर रहे हैं तो उनका पूरा नाम और डेट ऑफ बर्थ की जानकारी देने से बचें. वैसे ज्‍यादा फोटो अपलोड करने की जरूरत ही क्‍या है.

आखिर में अपने दोस्‍तों या रिश्‍तेदारों के बच्‍चों को टैग करने से पहले दो बार सोचें. हो सकता है कि ऊपर दिए गए कारणों की वजह से वे यह चाहते ही न हो कि आप उनके बच्‍चों की फोटो को टैग करें. बेहतर होगा कि आप उन्‍हें फोटो ईमेल कर दें और अगर उनकी मर्जी होगी तो वो खुद ही उन्‍हें टैग कर देंगे.

Sunday, 9 November 2014

स्वच्छ भारत - 'गांधी' सत्ता की चाेट में

सत्यता ताे यह है कि वैचारिक रूप से अस्वच्छ लाेगाें काे गांधीवादी विचारधारा की स्वच्छता समझ में नहीं आ रही है, माेदी जी की बाताें पर वही सब कुछ हाे रहा है, जाे गांधी जी की बात पर कांग्रेसियों का था।

गांधी जी की विचारधारा पर चलने के लिए अपने "मैं" काे मारना हाेगा। हमारे प्रधानमंत्री माेदी जी ने ताे "मैं" काे मार दिया है, परन्तु शायद अभी अन्य के "मैं" का मारना बचा है। 

गांधी जी की विचारधारा पर अगर भारत चल पडे़ ताे सम्पूर्ण भारत में राम-राम हाे जायेगा। 

'गांधी' नाेट में ताे हैं पर 'गांधी' सत्ता की चाेट में नहीं हैं। जिस दिन माेदी जी की तरह 'गांधी' सत्ता की चाेट में आ जायेंगे उस दिन 'गांधी' व 'माेदी' का लाेकतंत्र भारत में हाेगा।

दिनांक ०७-११-२०१४ को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वच्छ भारत अभियान में अस्सी घाट, वाराणसी पर गंगा की मिट्टी साफ़ करते हुए।

Sunday, 2 November 2014

देह व्यापार को कानूनी बनाने की सिफारिश कर सकता है, महिला आयोग :-

राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख ललिता कुमारमंगलम देश में सेक्स वर्करों की बेहतर जीवन स्थितियां सुनिश्चित करने के लिए इसकी पैरवी कर रही हैं अर्थात राष्ट्रीय महिला आयोग देह व्यापार को कानूनी बनाने की सिफारिश कर सकता है। महिला आयोग इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक पैनल के समक्ष आठ नवंबर २०१४ को अपनी सिफारिशें इस सम्बन्ध में देगा।
ललिता कुमारमंगलम ने कहा, 'देह व्यापार को कानूनी बनाने से सेक्स वर्करों को बेहतर जीवन स्थितियां मुहैया कराने में मदद मिलेगी। लेकिन व्यापार में क्या कानूनी एवं क्या गैर कानूनी है, इसे परिभाषित करने के लिए विभिन्न कारकों पर विचार करना होगा।' उच्चतम न्यायालय ने 24 अगस्त 2011 में एक पैनल गठित किया था। यह पैनल सेक्स वर्करों के पुनर्वास के लिए 2010 में एक जनहित याचिका दायर किये जाने के बाद गठित किया गया। राष्ट्रीय महिला आयोग प्रमुख ने इस मुद्दे पर पूछे जाने पर कहा, 'हम देह व्यापार को कानूनी बनाने के मुद्दे, देह व्यापार (निरोधक) कानून में संभावित संशोधन एवं सेक्स वर्करों की जीवन स्थिति में बेहतरी सुनिश्चित करने के बारे में कुछ कुछ सिफारिशें करेंगे।' उच्चतम न्यायालय ने आयोग को पैनल की बैठक में भाग लेने का निर्देश दिया था।

महिला कमीशन की पहल पर कुछ प्रश्न :- क्या महिला कमीशन की इस पहल में 'वैश्या' शब्द में शालीनता लाएगी। क्या एक महिला खुलेआम यह कह पायेगी की वह इस वह देह व्यापार में है। अगर नहीं तो एक नारी का अपमान करने का वीमेन कमीशन को कोई अधिकार नहीं।

सुझाव :- इससे अच्छा ताे यह है की सख्त से सख्त कानून बनाया जाये ताकि दलालों को कड़ी सजा मिल सके तथा इस दलदल में फँसी हुए लड़कियों को समाज के मुख्य धारा में शामिल होने के लिए आर्थिक और पुनर्वास में मदद दी जाये।

Monday, 27 October 2014

विधि सन्देश 'काशी' - द्वितीय संस्करण

विधि सन्देश 'काशी' - द्वितीय संस्करण
साेमवार - 27 अक्टूबर 2014 - वाराणसी कचहरी 
वर्ष : 1 - अंक : 2 - कुल पृष्ठ :8 - प्रतियां : 3000
Web link:-
http://vidhisandeshkashi.blogspot.in/2014/10/blog-post_26.html/
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Thursday, 23 October 2014

पिता द्वारा दीपावली भेंट :-

श्री काली प्रसाद दुबे और एड. अंशुमान दुबे
दिया ऐसे जलाआे, कि राेशन हाे हर दिल,
अंधेरा मिट जाये, मिले इंसान से इंसान,
जैसे सब सगे हाे अपने।
राेशन कराे इस तरह अपने काे,
लक्ष्मी संग वीणा वादनी भी आवे,  
हर जीवन का अंधेरा मिटे,  
राेशन हाे आँगन से सारा जहां।।
  ......... श्री काली प्रसाद दुबे। 

Sunday, 28 September 2014

भारत में बाल यौन शोषण कानून :-

भारत में बाल यौन शोषण कानून को बाल संरक्षण नीतियों के भाग के रूप में अधिनियमित किया गया है। भारत की संसद ने 22 मई 2012 को "लैंगिक अपराध से बालकों का संरक्षक अधिनियम, 2011" (Protection of Children Against Sexual Offences Bill, 2011) पारित कर दिया, जिसे लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराध से बालकों का संरक्षण करने और ऐसे अपराधों का विचारण करन के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना तथा उनसे सम्बंधित या आनुषंगिक विषयों के लिए उपबंध करने के लिए अधिनियम बनाया गया है । कानून के अनुसार सरकार द्वारा तैयार नियम भी 14 नवंबर, 2012 को अधिसूचित किया गया है और कानून लागू करने के लिए तैयार हो गया है। भारत के 53 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण का किसी ना किसी रूप में सामना करते हैं। इन हालत में कड़े कानून की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। 
यौन अपराधों के कानून से बच्चों का संरक्षण: -  
नए कानून के तहत बाल अपराधों की कई किस्म प्रदान की गयी है जिसके माध्यम से आरोपी को हर हाल में दंडित किया जा सकता है। नए कानून के माध्यम से बाल अपराधों को विस्तारित किया गया है अब यौन उत्पीड़न ही नही बल्कि बच्चों के खिलाफ बेशर्मी द्वारा किये सभी कृत्य हर हाल में अपराध माना जायेगा। इस क़ानून में अश्लील साहित्य या अश्लील सामग्री का संग्रह कर अथवा संग्रह में बच्चों को किसी भी रूप में शामिल करना अथवा अश्लील साहित्य या अश्लील सामग्री देखना भी अपराध माना गया है। परन्तु अभी भी कानूनी प्रक्रिया और परीक्षण थकाऊ प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया बाल यौन शोषण से ग्रसित बच्चे को समय पूर्व ही एक वयस्क बना देती है। बच्चों के विरुद्ध हो रहे अपराध में अभी और सुधारों की आवशयकता है। 
कानून 2012 विधान से पहले पारित किया गया था : - 
बाल यौन शोषण भारतीय दंड संहिता की निम्नलिखित धाराओं के तहत मुकदमा चलाया गया था :-
  • I.P.C. (1860 ) 375- बलात्कार 
  • I.P.C. (1860 ) 354- महिला का लज्जा भंग करना
  • I.P.C. (1860 ) 377- अप्राकृतिक अपराध
  • I.P.C. (1860 ) 511- प्रयास 
भारतीय दंड संहिता में विभिन्न खामियों के कारण बच्चो की रक्षा अपराधिक कृत्यों से प्रभावी ढंग से नहीं हो पा रही थी। 
  • आईपीसी 375 में योनि संभोग के अलावा अन्य प्रवेश के यौन कृत्यों से पुरुष पीड़ितों या किसी अन्य की भी रक्षा नहीं करता। 
  • आईपीसी 354 में 'लज्जा' की परिभाषा का अभाव है। कमजोर जुर्माना किया जाता है। यह नर बच्चे की 'लज्जा' की रक्षा नहीं करता।
  • आईपीसी 377 में  शब्द 'अप्राकृतिक अपराधों' परिभाषित नहीं है। यह केवल उनके हमलावर सेक्स कार्य से प्रवेश पर लागू होता है। बच्चों के यौन शोषण का अपराधीकरण नहीं बनाया गया है।

साइबर क्राइम करना भारी पड़ेगा :-

कंप्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज, वर्ल्ड वाइड वेब आदि के जरिए किए जाने वाले अपराधों के लिए छोटे-मोटे जुर्माने से लेकर उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है। दुनिया भर में सुरक्षा और जांच एजेंसियां साइबर अपराधों को बहुत गंभीरता से ले रही हैं। ऐसे मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 तो लागू होते ही हैं, मामले के दूसरे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि बिरले मामलों में आतंकवाद निरोधक कानून भी लागू किए जा सकते हैं। कुछ मामलों पर भारत सरकार के आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से अलग से जारी किए गए आईटी नियम 2011 भी लागू होते हैं। कानून में निर्दोष लोगों को साजिशन की गई शिकायतों से सुरक्षित रखने की भी मुनासिब व्यवस्था है, लेकिन कंप्यूटर, दूरसंचार और इंटरनेट यूजर को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि उनसे जाने-अनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है। तकनीकी जरियों का सुरक्षित इस्तेमाल करने के लिए हमेशा याद रखें कि इलाज से परहेज बेहतर है।
साइबर क्राइम, कानून और सज़ा :-

हैकिंग:-
हैकिंग का मतलब है किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफॉर्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना। यह हैकिंग उस सिस्टम की फिजिकल एक्सेस के जरिए भी हो सकती है और रिमोट एक्सेस के जरिए भी। जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के नतीजे में उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो। अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है, तो भी घुसपैठ करना साइबर क्राइम के तहत आता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है।
कानून :-
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66
- आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत कार्रवाई मुमकिन
सजा:- अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल और/या पांच लाख रुपये तक जुर्माना।

डेटा की चोरी :-
किसी और व्यक्ति, संगठन वगैरह के किसी भी तकनीकी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा (सूचनाओं) की चोरी। अगर किसी संगठन के अंदरूनी डेटा तक आपकी आधिकारिक पहुंच है, लेकिन अपनी जायज पहुंच का इस्तेमाल आप उस संगठन की इजाजत के बिना, उसके नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं, तो वह भी इसके दायरे में आएगा। कॉल सेंटरों, दूसरों की जानकारी रखने वाले संगठनों आदि में भी लोगों के निजी डेटा की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं।
कानून :-
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी)
- आईपीसी की धारा 379, 405, 420
- कॉपीराइट कानून
सजा:- अपराध की गंभीरता के हिसाब से तीन साल तक की जेल और/या दो लाख रुपये तक जुर्माना।

वायरस-स्पाईवेयर फैलाना :-
कंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर के सफाए पर लोग ध्यान नहीं देते। उनके कंप्यूटर से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं। हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाई-फाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैलते हैं। वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी इंडस्ट्री है जिनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है। वैसे, आम लोग भी कानून के दायरे में आ सकते हैं, अगर उनकी लापरवाही से किसी के सिस्टम में खतरनाक वायरस पहुंच जाए और बड़ा नुकसान कर दे।
कानून :-
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66
- आईपीसी की धारा 268
- देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरसों पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लागू (गैर-जमानती)।
सजा:- साइबर-वॉर और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्र कैद। दूसरे मामलों में तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।

पहचान की चोरी :-
किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं वगैरह का इस्तेमाल करना। मिसाल के तौर पर कुछ लोग दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ई-कॉमर्स ट्रांजैक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करते हुए शॉपिंग, धन की निकासी वगैरह कर लेते हैं। जब आप कोई और शख्स होने का आभास देते हुए कोई अपराध करते हैं या बेजा फायदा उठाते हैं, तो वह आइडेंटिटी थेफ्ट (पहचान की चोरी) के दायरे में आता है।
कानून:-
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी)
- आईपीसी की धारा 419 का इस्तेमाल मुमकिन
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या एक लाख रुपये तक जुर्माना।

ई-मेल स्पूफिंग और फ्रॉड :-
किसी दूसरे शख्स के ई-मेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ई-मेल भेजना इसके तहत आता है। हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस-स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फ्रॉड का इस्तेमाल ज्यादा होता है। इनका मकसद ई-मेल पाने वाले को धोखा देकर उसकी गोपनीय जानकारियां हासिल कर लेना होता है। ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ई-कॉमर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं।
कानून:-
- आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी
- आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465।
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।

पोर्नोग्राफी :-
पोर्नोग्राफी के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और सामग्री आती है, जिसकी प्रकृति यौन हो और जो यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो। ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिये प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है। जो लोग दूसरों के नग्न या अश्लील विडियो तैयार कर लेते हैं या एमएमएस बना लेते हैं और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दूसरों तक पहुंचाते हैं, किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ अश्लील संदेश भेजते हैं, वे भी इसके दायरे में आते हैं।
अपवाद: पोर्नोग्राफी प्रकाशित करना और इलेक्ट्रॉनिक जरियों से दूसरों तक पहुंचाना अवैध है, लेकिन उसे देखना, पढ़ना या सुनना अवैध नहीं है, लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध है। कला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, धर्म आदि से जुड़े कामों के लिए जनहित में तैयार की गई उचित सामग्री अवैध नहीं मानी जाती।
कानून:-
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 67 (ए)
- आईपीसी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा:- जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर पांच साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा सात साल हो जाती है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी :-
ऐसे मामलों में कानून और भी ज्यादा कड़ा है। बच्चों को सेक्सुअल एक्ट में या नग्न दिखाते हुए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मैट में कोई चीज प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना। इससे भी आगे बढ़कर कानून कहता है कि जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह भी गैरकानूनी है। बच्चों को बहला-फुसलाकर ऑनलाइन संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उनके साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकॉर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसके तहत आते हैं। यहां बच्चों से मतलब है - 18 साल से कम उम्र के लोग।
कानून:-
- आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 67 (बी), आईपीसी की धाराएं 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा:- पहले अपराध पर पांच साल की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरे अपराध पर सात साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना।

तंग करना :-
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं। डिजिटल जरिए से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर क्राइम के दायरे में आता है। किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना (जैसा कि पूर्वोत्तर के लोगों के मामले में हुआ), नफरत फैलाना या बदनाम करना।
कानून:-
- आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए)
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना

आईपीआर (बौद्धिक संपदा) उल्लंघन :-
वेब पर मौजूद दूसरों की सामग्री को चुराकर अनधिकृत रूप से इस्तेमाल करने और प्रकाशित करने के मामलों पर भारतीय साइबर कानूनों में अलग से प्रावधान नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक कानूनों के तहत कार्रवाई की मुनासिब व्यवस्था है। किताबें, लेख, विडियो, चित्र, ऑडियो, लोगो और दूसरे क्रिएटिव मटीरियल को बिना इजाजत इस्तेमाल करना अनैतिक तो है ही, अवैध भी है। साथ ही सॉफ्टवेयर की पाइरेसी, ट्रेडमार्क का उल्लंघन, कंप्यूटर सोर्स कोड की चोरी और पेटेंट का उल्लंघन भी इस जुर्म के दायरे में आता है।
कानून:-
- कॉपीराइट कानून 1957 की धारा 14, 63 बी
सजा:- सात दिन से तीन साल तक की जेल और/या 50 हजार रुपये से दो लाख रुपये तक का जुर्माना। 

Friday, 26 September 2014

विधि सन्देश 'काशी'

प्रथम संस्करण - शारदीय नवरात्र 
शुक्रवार - 26 सितम्बर 2014
वाराणसी कचहरी 

वर्ष : 1 - अंक : 1 - कुल पृष्ठ : 8
Page No. 1

Page No. 2



Wednesday, 24 September 2014

Best wishes for Navratri :-

Goddess 'Durga' is an embodiment of 'Shakti' who overcame the evils of the world. 
May this Navratri, everyone uses Her blessings and power to overcome their problems in life. 
~ Wish you a very Happy Navratri ~

Happy Navratri - Anshuman Dubey - 2014

Thursday, 4 September 2014

हिंदी भाषा का उच्चतम न्यायालय में प्रयोग :-

संविधान के रक्षक उच्चतम न्यायालय का राष्ट्र भाषा हिंदी में कार्य करना अपने आप में गौरव और हिंदी को प्रोत्साहन का विषय है। राजभाषा पर संसदीय समिति ने 28 नवंबर 1958 को संस्तुति की थी कि उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए। इस संस्तुति को पर्याप्त समय व्यतीत हो गया है, किंतु इस दिशा में आगे कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में अंग्रेजी भाषी लोग मात्र 0.021% ही हैं। इस दृष्टिकोण से भी अत्यंत अल्पमत की, और विदेशी भाषा जनता पर थोपना जनतंत्र का स्पष्ट निरादर है। देश की राजनैतिक स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद भी देश के सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाहियां अनिवार्य रूप से ऐसी भाषा में संपन्न की जा रही हैं, जो 1% से भी कम लोगों में बोली जाती है। इस कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से अधिकांश जनता में अनभिज्ञता व गोपनीयता, और पारदर्शिता का अभाव रहता है। अब संसद में समस्त कानून हिंदी भाषा में बनाये जा रहे हैं और पुराने कानूनों का भी हिंदी अनुवाद किया जा रहा है अतः उच्चतम न्यायालय को हिंदी भाषा में कार्य करने में कोई कठिनाई नहीं है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग, विधि आयोग आदि भारत सरकार के मंत्रालयों, विभागों के नियंत्रण में कार्यरत कार्यालय हैं और वे राजभाषा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में हिंदी भाषा में कार्य करने को बाध्य हैं तथा उनमें उच्चतम न्यायालय के सेवा निवृत न्यायाधीश कार्यरत हैं। यदि एक न्यायाधीश सेवानिवृति के पश्चात हिंदी भाषा में कार्य करने वाले संगठन में कार्य करना स्वीकार करता है, तो उसे अपने पूर्व पद पर भी हिंदी भाषा में कार्य करने में स्वाभाविक रूप से कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय में 11 अनुवादक पदस्थापित हैं, जो आवश्यकतानुसार अनुवाद कार्य कर न्यायाधीशों के न्यायिक कार्यों में सहायता करते हैं। उच्चतम न्यायालय में भी हिंदी भाषा के प्रयोग को सुकर बनाने के लिए न्यायाधीशों को अनुवादक सेवाएं उपलब्ध करवाई जा सकती हैं।
आज केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत ट्राइब्यूनल तो हिंदी भाषा में निर्णय देने के लिए कर्तव्यरूप से बाध्य हैं। अन्य समस्त भारतीय सेवाओं के अधिकारी हिंदी भाषी राज्यों में सेवारत होते हुए हिंदी भाषा में कार्य कर ही रहे हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय की तो प्राधिकृत भाषा हिंदी ही है और हिंदी से भिन्न भाषा में कार्यवाही केवल उन्ही न्यायाधीश के लिए अनुमत है, जो हिंदी भाषा नहीं जानते हों। क्रमशः बिहार और उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालयों में भी हिंदी भाषा में कार्य होता है। न्यायालय जनता की सेवा के लिए बनाये जाते हैं और उन्हें जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहिए। हिंदी भाषा को उच्चतम न्यायालय में कठोर रूप से लागू करने की आवश्यकता ही नहीं है, अपितु वैकल्पिक रूप से इसकी अनुमति दी जा सकती है और कालांतर में हिंदी भाषा का समानांतर प्रयोग किया जा सकता है। आखिर हमें स्वदेशी भाषा हिंदी लागू करने के लिए कोई लक्ष्मण रेखा खेंचनी होगी-शुभ शुरुआत जो करनी है।
अब देश में हिंदी भाषा में कार्य करने में सक्षम न्यायविदों और साहित्य की भी कोई कमी नहीं है। न्यायाधीश बनने के इच्छुक, जिस प्रकार कानून सीखते हैं, ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी सीख सकते हैं, चूंकि किसी न्यायाधीश को हिंदी नहीं आती, अत: न्यायालय की भाषा हिंदी नहीं रखी जाए, तर्कसंगत व औचित्यपूर्ण नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि न्यायालय न्यायाधीशों और वकीलों की सुविधा के लिए बनाये जाते हैं। देश के विभिन्न न्यायालयों से ही उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश आते हैं। देश के कुल 18008 अधीनस्थ न्यायालयों में से 7165 न्यायालयों की भाषा हिंदी हैं और शेष न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी अथवा स्थानीय भाषा है। इन अधीनस्थ न्यायालयों में भी कई न्यायालयों की कार्य की भाषा अंग्रेजी है, जबकि अभियोजन की प्रस्तुति हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में की जा रही है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, तमिलनाडु आदि इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार कई राज्यों में अधीनस्थ न्यायालयों, उच्च न्यायालय में अभियोजन की भाषाएं भिन्न-भिन्न हैं, किंतु उच्च न्यायालय अपनी भाषा में सहज रूप से कार्य कर रहे हैं।
संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुति संख्या 44 को स्वीकार करने वाले राष्ट्रपति के आदेश को प्रसारित करते हुए राजभाषा विभाग के (राजपत्र में प्रकाशित) पत्रांक I/20012/07/2005-रा.भा.(नीति-1) दिनांक 02.07.2008 में कहा गया है-“जब भी कोई मंत्रालय विभाग या उसका कोई कार्यालय या उपक्रम अपनी वेबसाइट तैयार करे तो उसे अनिवार्य रूप से द्विभाषी तैयार किया जाए। जिस कार्यालय की वेबसाइट केवल अंग्रेजी में है, उसे द्विभाषी बनाए जाने की कार्यवाही की जाए।”  फिर भी राजभाषा को लागू करने में कोई कठिनाई आती है तो केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो अथवा आउटसोर्सिंग से इस प्रसंग में सहायता भी ली जा सकती है।
संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट खंड-5 में की गयी संस्तुतियों को राष्ट्रपति की पर्याप्त समय से पहले, राज-पत्र में प्रकाशित पत्रांक I/20012/4/92-रा.भा.(नीति-1) दिनांक 24.11.1998 से ही स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। संस्तुति संख्या (12)-उच्चतम न्यायलय के महा-रजिस्ट्रार के कार्यालय को अपने प्रशासनिक कार्यों में संघ सरकार की राजभाषा नीति का अनुपालन करना चाहिए। वहां हिंदी में कार्य करने के लिए आधारभूत संरचना स्थापित की जानी चाहिए और इस प्रयोजन के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहन दिए जाने चाहिएं। संस्तुति संख्या (13)-उच्चतम न्यायालय में अंग्रेजी के साथ–साथ हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत होना चाहिए। प्रत्येक निर्णय दोनों भाषाओं में उपलब्ध हों। उच्चतम न्यायालय द्वारा हिंदी और अंग्रेजी में निर्णय दिया जा सकता है, अत: अब कानूनी रूप से भी उच्चतम न्यायालय में हिंदी भाषा के प्रयोग में कोई बाधा शेष नहीं रह गयी है।
संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान है कि जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी। उच्च न्यायालयों में हिंदी भाषा के प्रयोग का प्रावधान दिनांक 07-03-1970 से किया जा चुका है और वे राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत अपनी कार्यवाहियां हिंदी भाषा में स्वेच्छापूर्वक कर रहे हैं। ठीक इसी के समानांतर राजभाषा अधिनियम में निम्नानुसार धारा 7क अन्तःस्थापित कर संविधान के रक्षक उच्चतम न्यायालय में भी हिंदी भाषा के वैकल्पिक उपयोग का मार्ग प्रक्रियात्मक रूप से खोला जा सकता है।
धारा 7 क. उच्चतम न्यायालय के निर्णयों आदि में हिंदी का वैकल्पिक प्रयोग-“नियत दिन से ही या तत्पश्चात्‌ किसी भी दिन से राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का प्रयोग, उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहां कोई निर्णय, डिक्री या आदेश हिंदी भाषा में पारित किया या दिया जाता है, वहां उसके साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।” इस हेतु संविधान में किसी संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। हिंदी के वैकल्पिक उपयोग के प्रावधान से न्यायालय की कार्यवाहियों में कोई व्यवधान या हस्तक्षेप नहीं होगा, अपितु राष्ट्र भाषा के प्रसार के एक नए अध्याय का शुभारंभ हो सकेगा।

Sunday, 24 August 2014

साइबर अपराध और साइबर कानून :-

17 अक्टूबर, 2000 को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (सूचना तकनीक क़ानून, 2000) अस्तित्व में आया. 27 अक्टूबर, 2009 को एक घोषणा द्वारा इसे संशोधित किया गया. संशोधित क़ानून में परिभाषाएं निम्नवत हैं :

(ए) यहां क़ानून से तात्पर्य सूचना तकनीक क़ानून, 2000 से है.

(बी) संवाद (कम्युनिकेशन) का मतलब किसी भी तरह की जानकारी या संकेत के प्रचार, प्रसार या उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना है. यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी तरह का हो सकता है.

(सी) संवाद सूत्र (कम्युनिकेशन लिंक) का अर्थ कंप्यूटरों को आपस में एक-दूसरे से जोड़ने के लिए प्रयुक्त होने वाले सैटेलाइट, माइक्रोवेव, रेडियो, ज़मीन के अंदर स्थित कोई माध्यम, तार, बेतार या संचार का कोई अन्य साधन हो सकता है.

सूचना तकनीक क़ानून 9 जनवरी, 2000 को पेश किया गया था. 30 जनवरी, 1997 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली में प्रस्ताव संख्या 51/162 द्वारा सूचना तकनीक की आदर्श नियमावली (जिसे यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के नाम से जाना जाता है) पेश किए जाने के बाद सूचना तकनीक क़ानून, 2000 को पेश करना अनिवार्य हो गया था. संयुक्त राष्ट्र की इस नियमावली में संवाद के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक या काग़ज़ के इस्तेमाल को एक समान महत्व दिया गया है और सभी देशों से इसे मानने की अपील की गई है. सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की प्रस्तावना में ही हर ऐसे लेनदेन को क़ानूनी मान्यता देने की बात उल्लिखित है, जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के दायरे में आता है और जिसमें सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक का इस्तेमाल हुआ हो. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल करता है. इससे सरकारी संस्थानों में भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दस्तावेज़ों का आदान-प्रदान संभव हो सकता है और इंडियन पेनल कोड, इंडियन एविडेंस एक्ट 1872, बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट 1891 और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 अथवा इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े किसी भी क़ानून में संशोधन में भी इन दस्तावेज़ों का उपयोग हो सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली ने 30 जनवरी, 1997 को प्रस्ताव संख्या ए/आरइएस/51/162 के तहत यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ द्वारा अनुमोदित मॉडल लॉ ऑन इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित आदर्श कानून) को अपनी मान्यता दे दी. इस क़ानून में सभी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा रहीं तकनीकों से संबंधित कोई भी क़ानून बनाने या उसे संशोधित करते समय वे इसके प्रावधानों का ध्यान रखेंगे, ताकि सभी देशों के क़ानूनों में एकरूपता बनी रहे. सूचना तकनीक क़ानून 2000 17 अक्टूबर, 2000 को अस्तित्व में आया. इसमें 13 अध्यायों में विभक्त कुल 94 धाराएं हैं. 27 अक्टूबर, 2009 को इस क़ानून को एक घोषणा द्वारा संशोधित किया गया. इसे 5 फरवरी, 2009 को फिर से संशोधित किया गया, जिसके तहत अध्याय 2 की धारा 3 में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की जगह डिजिटल हस्ताक्षर को जगह दी गई. इसके लिए धारा 2 में उपखंड (एच) के साथ उपखंड (एचए) को जोड़ा गया, जो सूचना के माध्यम की व्याख्या करता है. इसके अनुसार, सूचना के माध्यम से तात्पर्य मोबाइल फोन, किसी भी तरह का व्यक्तिगत डिजिटल माध्यम या फिर दोनों हो सकते हैं, जिनके माध्यम से किसी भी तरह की लिखित सामग्री, वीडियो, ऑडियो या तस्वीरों को प्रचारित, प्रसारित या एक से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है.

आधुनिक क़ानून की शब्दावली में साइबर क़ानून का संबंध कंप्यूटर और इंटरनेट से है. विस्तृत संदर्भ में कहा जाए तो यह कंप्यूटर आधारित सभी तकनीकों से संबद्ध है. साइबर आतंकवाद के मामलों में दंड विधान के लिए सूचना तकनीक क़ानून, 2000 में धारा 66-एफ को जगह दी गई है.

66-एफ : साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान

1. यदि कोई-

(ए) भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को भंग करने या इसके निवासियों को आतंकित करने के लिए-

क. किसी अधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के इस्तेमाल से रोकता है या रोकने का कारण बनता है.

ख. बिना अधिकार के या अपने अधिकार का अतिक्रमण कर जबरन किसी कंप्यूटर के इस्तेमाल की कोशिश करता है.

ग. कंप्यूटर में वायरस जैसी कोई ऐसी चीज डालता है या डालने की कोशिश करता है, जिससे लोगों की जान को खतरा पैदा होने की आशंका हो या संपत्ति के नुक़सान का ख़तरा हो या जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं में जानबूझ कर खलल डालने की कोशिश करता हो या धारा 70 के तहत संवेदनशील जानकारियों पर बुरा असर पड़ने की आशंका हो या-

(बी) अनाधिकार या अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए जानबूझ कर किसी कंप्यूटर से ऐसी सूचनाएं हासिल करने में कामयाब होता है, जो देश की सुरक्षा या अन्य देशों के साथ उसके संबंधों के नज़रिए से संवेदनशील हैं या कोई भी गोपनीय सूचना इस इरादे के साथ हासिल करता है, जिससे भारत की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं संप्रभुता, अन्य देशों के साथ इसके संबंध, सार्वजनिक जीवन या नैतिकता पर बुरा असर पड़ता हो या ऐसा होने की आशंका हो, देश की अदालतों की अवमानना अथवा मानहानि होती हो या ऐसा होने की आशंका हो, किसी अपराध को बढ़ावा मिलता हो या इसकी आशंका हो, किसी विदेशी राष्ट्र अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा किसी अन्य को ऐसी सूचना से फायदा पहुंचता हो, तो उसे साइबर आतंकवाद का आरोपी माना जा सकता है.

2. यदि कोई व्यक्ति साइबर आतंकवाद फैलाता है या ऐसा करने की किसी साजिश में शामिल होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है.

2005 में प्रकाशित एडवांस्ड लॉ लेक्सिकॉन के तीसरे संस्करण में साइबरस्पेस शब्द को भी इसी तर्ज पर परिभाषित किया गया है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में फ्लोटिंग शब्द पर खासा जोर दिया गया है, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से से इस तक पहुंच बनाई जा सकती है. लेखक ने आगे इसमें साइबर थेफ्ट (साइबर चोरी) शब्द को ऑनलाइन कंप्यूटर सेवाओं के इस्तेमाल के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया है. इस शब्दकोष में साइबर क़ानून की इस तरह व्याख्या की है, क़ानून का वह क्षेत्र, जो कंप्यूटर और इंटरनेट से संबंधित है और उसके दायरे में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्‌स, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचनाओं तक निर्बाध पहुंच आदि आते हैं.

सूचना तकनीक क़ानून में कुछ और चीज़ों को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, कंप्यूटर से तात्पर्य किसी भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल या तेज़ गति से डाटा का आदान-प्रदान करने वाले किसी भी ऐसे यंत्र से है, जो विभिन्न तकनीकों की मदद से गणितीय, तार्किक या संग्रहणीय कार्य करने में सक्षम है. इसमें किसी कंप्यूटर तंत्र से जुड़ा या संबंधित हर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर शामिल है.

सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की धारा 1 (2) के अनुसार, उल्लिखित अपवादों को छोड़कर इस क़ानून के प्रावधान पूरे देश में प्रभावी हैं. साथ ही उपरोक्त उल्लिखित प्रावधानों के अंतर्गत देश की सीमा से बाहर किए गए किसी अपराध की हालत में भी उक्त प्रावधान प्रभावी होंगे.

सूचना तकनीक क़ानून, 2000 के अंतर्गत साइबरस्पेस में क्षेत्राधिकार संबंधी प्रावधान

मानव समाज के विकास के नज़रिए से सूचना और संचार तकनीकों की खोज को बीसवीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार माना जा सकता है. सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों, ख़ासकर न्यायिक प्रक्रिया में इसके इस्तेमाल की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि इसकी तेज़ गति, कई छोटी-मोटी द़िक्क़तों से छुटकारा, मानवीय ग़लतियों की कमी, कम ख़र्चीला होना जैसे गुणों के चलते यह न्यायिक प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है. इतना ही नहीं, ऐसे मामलों के निष्पादन में, जहां सभी संबद्ध पक्षों की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य न हो, यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प सिद्ध हो सकता है. सूचना तकनीक क़ानून के अंतर्गत उल्लिखित आरोपों की सूची निम्नवत हैः

1. कंप्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ की कोशिश-धारा 65

2. कंप्यूटर में संग्रहित डाटा के साथ छेड़छाड़ कर उसे हैक करने की कोशिश-धारा 66

3. संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 ए

4. कंप्यूटर या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से चोरी की गई सूचनाओं को ग़लत तरीक़े से हासिल करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 बी

5. किसी की पहचान चोरी करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 सी

6. अपनी पहचान छुपाकर कंप्यूटर की मदद से किसी के व्यक्तिगत डाटा तक पहुंच बनाने के लिए दंड का प्रावधान- धारा 66 डी

7. किसी की निजता भंग करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 इ

8. साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 एफ

9. आपत्तिजनक सूचनाओं के प्रकाशन से जुड़े प्रावधान-धारा 67

10. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सेक्स या अश्लील सूचनाओं को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 ए

11. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से ऐसी आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण, जिसमें बच्चों को अश्लील अवस्था में दिखाया गया हो-धारा 67 बी

12. मध्यस्थों द्वारा सूचनाओं को बाधित करने या रोकने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 सी

13. सुरक्षित कंप्यूटर तक अनाधिकार पहुंच बनाने से संबंधित प्रावधान-धारा 70

14. डाटा या आंकड़ों को ग़लत तरीक़े से पेश करना-धारा 71

15. आपसी विश्वास और निजता को भंग करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए

16. कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का उल्लंघन कर सूचनाओं को सार्वजनिक करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए

17. फर्ज़ी डिजिटल हस्ताक्षर का प्रकाशन-धारा 73

सूचना तकनीक क़ानून की धारा 78 में इंस्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी को इन मामलों में जांच का अधिकार हासिल है.

इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में साइबर अपराधों से संबंधित प्रावधान

1. ईमेल के माध्यम से धमकी भरे संदेश भेजना-आईपीसी की धारा 503

2. ईमेल के माध्यम से ऐसे संदेश भेजना, जिससे मानहानि होती हो-आईपीसी की धारा 499

3. फर्ज़ी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉड्‌र्स का इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 463

4. फर्ज़ी वेबसाइट्‌स या साइबर फ्रॉड-आईपीसी की धारा 420

5. चोरी-छुपे किसी के ईमेल पर नज़र रखना-आईपीसी की धारा 463

6. वेब जैकिंग-आईपीसी की धारा 383

7. ईमेल का ग़लत इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 500

8. दवाओं को ऑनलाइन बेचना-एनडीपीएस एक्ट

9. हथियारों की ऑनलाइन ख़रीद-बिक्री-आर्म्स एक्ट

न्यायिक अधिकारियों के कितने पद खाली हैं, भारत में (as on 20.03.2025) by #Grok

भारत में न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है, क्योंकि यह नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति, और स्वीकृत पदों की संख्य...