Tuesday, 2 December 2014
Sunday, 30 November 2014
विधि संदेश 'काशी' ~ तृत्तीय संस्करण
विधि संदेश 'काशी' ~ तृत्तीय संस्करण
💫नयी सोच नया नज़रिया 💫
नवम्बर / दिसम्बर 2014
वाराणसी कचहरी
वर्ष : 1 - अंक : 3 - कुल पृष्ठ : 8
प्रकाशित प्रतियां :3000
👉 Web link:-
http://vidhisandeshkashi.blogspot.in/2014/11/blog-post_29.html
👉 Check it, Comment on it, Advise us for improvement and please share it.
Sunday, 23 November 2014
कचहरी बम धमाका 23/11 - श्रद्धांजलि
Thursday, 13 November 2014
उनकी भी नसबन्दी करा दाे :-
गरीबी का मज़ाक गरीबाेें की माैत पे,
जितना चाहे बतिया लाे, राजनीति कर लाे,
डाक्टरों काे जेल भेज दाे, दवा कम्पनी काे बन्द कर दाे,
जाे चाहाे वह कर लाे, करवा दाे।
पर बिन मां के बच्चाें का क्या हाेगा यह ताे बता दाे..?
भाई की सूनी कलाई काे दम हाे ताे फिर से सजा दाे,
पत्नी के बिन पति का फिर से विवाह करा दाे...
आैर कुछ ना कर सकाे ताे उनकी भी नसबन्दी करा दाे,
मीडिया काे काफी दिनाें बाद रमन सिंह के खिलाफकुछ मिला है, तनी टी.आर.पी. ताे बड़ा लेने दाे।
गरीबाें का काम ही मरना है,
चाहे दवा से, चाहे भूख से, चाहे बिमारियां से,
लाइन में खडा़ कर गरीबाें काे जलियांवाला बाग बना दाे,
वाह रे तेरी दुनिया, वाह रे तेरे अच्छे दिन।
जय हाे भारत।
Wednesday, 12 November 2014
पांच चीजों को फेसबुक पर कभी पोस्ट नहीं करना चाहिए :-
आज के दौर में सोशल नेटवर्किंग के मामले में फेसबुक का कोई सानी नहीं है . अगर आप इस वक्त अपना स्टेटस अपडेट नहीं कर रहे होंगे तो आप या तो फोटो अपलोड कर रहे होंगे या फेसबुक पर किसी अजीब से क्विज में भाग ले रहे होंगे. जाने-अनजाने हम अपने बारे में ऐसी कई निजी जानकारियां फेसबुक पर साझा करने लगे हैं जिनके बारे में आमतौर पर हम किसी से जिक्र तक करना पसंद नहीं करते. हम सोचते हैं कि अगर हमने अपनी प्राइवेसी सेटिंग्स सही से सेट की हैं तो चिंता करने की कोई बात नहीं और खुद को अपने फ्रेंड सर्किल के बीच पूरी तरह महफूज समझने लगते हैं.
असल परेशानी इस बात की है कि हमें कभी ये पता ही नहीं चलता है कि फेसबुक पर कौन हमारे बारे में पढ़ रहा है या जानकारी जुटा रहा है. हो सकता है कि हमारा कोई दोस्त ऐसी एप्लीकेशन डाउनलोड कर लेता है जिससे उसका एकाउंट हैक हो जाए. यह भी हो सकता है कि हमारा दोस्त लॉगआउट करना भूल जाए और उसके कोई अंकल या जानकार उसके एकाउंट का इस्तेमाल करने लगे. ऐसे में अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए आपको इन पांच चीजों को फेसबुक पर कभी पोस्ट नहीं करना चाहिए:
(1) अपने और अपने परिवार की पूरी बर्थडेट: बर्थडे के दिन अपनी फेसबुक वॉल पर "हैप्पी बर्थडे" मैसेज पढ़कर हम सबको बेहद खुशी होती है. यही वजह है कि हम में से ज्यादातर लोग अपने जन्मदिन की तारीख फेसबुक पर जरूर मेंशन करते हैं, लेकिन ऐसा करते वक्त हम ये भूल जाते हैं कि हम चोरों को अपने बारे में बेहद निजी जानकरी दे रहे हैं. वैसे हमें बर्थ डेट मेंशन करने से बचना चाहिए, लेकिन फिर भी अगर आप ऐसा करना ही चाहते हैं तो कम से कम से बर्थ ईयर के बारे में कोई जानकारी न दें. वैसे भी जो आपके सच्चे और पक्के दोस्त होंगे उन्हें आपके बर्थडे के बारे में मालूम ही होगा.
(2) रिलेशनशिप स्टेटस: चाहे आप रिलेशन में हों या न हों, उसे सार्वजनिक रूप से जाहिर न करने में ही अक्लमंदी है. अगर आप अपना स्टेटस कमिटेड से सिंगल करते हैं तो उन लोगों को मौका मिल जाता है जो काफी समय से आपके पीछे पड़े हुए थे. इससे उन्हें यह भी पता चल जाता है कि अब आप ज्यादातर समय अकेले रहती हैं. ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि अपने प्रोफाइल में रिलेशनशिप स्टेटस को ब्लैंक ही छोड़ दिया जाए.
(3) करंट लोकेशन: ऐसे कई लोग हैं जिन्हें फेसबुक पर लोकेशन टैग करना बहुत अच्छा लगता है ताकि वे बता सकें कि 24 घंटे सातों दिन वे कहां रहते हैं. यानी कि आप खुलेआम इस बात का ऐलान करते फिर रहे हैं कि आप छुट्टियों पर हैं (और आपके घर में कोई नहीं है). इस पर अगर आप ये भी बता दें कि आप कितने दिनों के लिए बाहर गए हैं तो चोरों का काम आसान हो जाता है और वे आसानी से आपके घर पर हाथ साफ करने की साजिश रच लेते हैं. अच्छा यह रहेगा कि छुट्टियों से वापिस आने पर आप फोटो अपलोड कर अपने दोस्तों को जताएं कि जब वो काम कर रहे थे तब आप घूमने, खाने-पीने और शॉपिंग में बिज़ी थे.
(4) घर पर अकेले हैं तो रखें खास एहतियात: पेरेंट्स को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि जब उनके बच्चे घर पर अकेले हों तब न तो खुद और न ही बच्चे इस बारे में अपने-अपने फेसबुक एकाउंट पर कुछ लिखें. वैसे भी जब आप घर पर अकेले होते हैं तब खुद किसी अजनबी के घर जाकर उसे इस बारे में जानकारी नहीं देते हैं तो फेसबुक पर भी ऐसा न करें.
हमें लगता है कि सिर्फ हमारे दोस्त ही हमारा स्टेटस पढ रहे हैं, लेकिन असल में हमें पता ही नहीं होता है कि कौन-कौन उसे पढ़ रहा है. हो सकता है कि आपके दोस्त का एकाउंट हैक हो गया हो या दफ्तर में उसके पीछे खड़े होकर कोई चुपके से आपके स्टेटस को पढ़ रहा हो. सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप फेसबुक पर ऐसा कोई स्टेटस अपलोड न करें जिसे आप किसी अजनबी से कभी शेयर नहीं करेंगे.
(5) बच्चों की तस्वीरें उनके नाम से टैग न करें: हम अपने बच्चों से बेहद प्यार करते हैं. उन्हें महफूज रखने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग अपने बच्चों की ढेर सारी फोटो और वीडियो बिना सोचे-समझे टैग कर देते हैं. यही नहीं कई बार तो हम उनकी फोटो को ही अपनी प्रोफाइल पिक्चर बना लेते हैं. 10 में से नौ पेरेंट्स ऐसे हैं जो डिलीवरी के बाद अस्पताल में रहते हुए ही अपने बच्चों का पूरा नाम और डेट तथा टाइम फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं.
हम अपने बच्चों की फोटो पोस्ट करने के साथ ही उन्हें और उनके दोस्तों को अपने भाई-बहनों, कजिन्स और दूसरे रिश्तेदारों के साथ टैग कर देते हैं. इस जानकारी का इस्तेमाल बदमाश आपके बच्चे को बहलाने के लिए कर सकते हैं. आपके बच्चों का विश्वास जीतने के लिए वे उन्हें नाम से बुलाने के साथ ही उनके दोस्तों और रिश्तेदारों का नाम भी ले सकते हैं ताकि उन्हें यकीन हो जाए कि वो अजनबी नहीं हैं. इस तरह वे धीरे-धीरे बच्चों के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं और फिर अपने नापाक इरादों को अंजाम देते हैं.
अगर आप अपने बच्चों की तस्वीरें अपलोड भी कर रहे हैं तो उनका पूरा नाम और डेट ऑफ बर्थ की जानकारी देने से बचें. वैसे ज्यादा फोटो अपलोड करने की जरूरत ही क्या है.
आखिर में अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के बच्चों को टैग करने से पहले दो बार सोचें. हो सकता है कि ऊपर दिए गए कारणों की वजह से वे यह चाहते ही न हो कि आप उनके बच्चों की फोटो को टैग करें. बेहतर होगा कि आप उन्हें फोटो ईमेल कर दें और अगर उनकी मर्जी होगी तो वो खुद ही उन्हें टैग कर देंगे.
Sunday, 9 November 2014
स्वच्छ भारत - 'गांधी' सत्ता की चाेट में
![]() |
दिनांक ०७-११-२०१४ को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वच्छ भारत अभियान में अस्सी घाट, वाराणसी पर गंगा की मिट्टी साफ़ करते हुए। |
Sunday, 2 November 2014
देह व्यापार को कानूनी बनाने की सिफारिश कर सकता है, महिला आयोग :-
Monday, 27 October 2014
विधि सन्देश 'काशी' - द्वितीय संस्करण
विधि सन्देश 'काशी' - द्वितीय संस्करण
साेमवार - 27 अक्टूबर 2014 - वाराणसी कचहरी
वर्ष : 1 - अंक : 2 - कुल पृष्ठ :8 - प्रतियां : 3000
Web link:-
http://vidhisandeshkashi.blogspot.in/2014/10/blog-post_26.html/
Check it, Comment on it, Advise us for improvement and please share it.
Thursday, 23 October 2014
Sunday, 28 September 2014
भारत में बाल यौन शोषण कानून :-
- I.P.C. (1860 ) 375- बलात्कार
- I.P.C. (1860 ) 354- महिला का लज्जा भंग करना
- I.P.C. (1860 ) 377- अप्राकृतिक अपराध
- I.P.C. (1860 ) 511- प्रयास
- आईपीसी 375 में योनि संभोग के अलावा अन्य प्रवेश के यौन कृत्यों से पुरुष पीड़ितों या किसी अन्य की भी रक्षा नहीं करता।
- आईपीसी 354 में 'लज्जा' की परिभाषा का अभाव है। कमजोर जुर्माना किया जाता है। यह नर बच्चे की 'लज्जा' की रक्षा नहीं करता।
- आईपीसी 377 में शब्द 'अप्राकृतिक अपराधों' परिभाषित नहीं है। यह केवल उनके हमलावर सेक्स कार्य से प्रवेश पर लागू होता है। बच्चों के यौन शोषण का अपराधीकरण नहीं बनाया गया है।
साइबर क्राइम करना भारी पड़ेगा :-
हैकिंग:-
हैकिंग का मतलब है किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफॉर्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना। यह हैकिंग उस सिस्टम की फिजिकल एक्सेस के जरिए भी हो सकती है और रिमोट एक्सेस के जरिए भी। जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के नतीजे में उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो। अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है, तो भी घुसपैठ करना साइबर क्राइम के तहत आता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है।
कानून :-
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66
- आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत कार्रवाई मुमकिन
सजा:- अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल और/या पांच लाख रुपये तक जुर्माना।
किसी और व्यक्ति, संगठन वगैरह के किसी भी तकनीकी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा (सूचनाओं) की चोरी। अगर किसी संगठन के अंदरूनी डेटा तक आपकी आधिकारिक पहुंच है, लेकिन अपनी जायज पहुंच का इस्तेमाल आप उस संगठन की इजाजत के बिना, उसके नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं, तो वह भी इसके दायरे में आएगा। कॉल सेंटरों, दूसरों की जानकारी रखने वाले संगठनों आदि में भी लोगों के निजी डेटा की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं।
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी)
- आईपीसी की धारा 379, 405, 420
- कॉपीराइट कानून
सजा:- अपराध की गंभीरता के हिसाब से तीन साल तक की जेल और/या दो लाख रुपये तक जुर्माना।
कंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर के सफाए पर लोग ध्यान नहीं देते। उनके कंप्यूटर से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं। हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाई-फाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैलते हैं। वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी इंडस्ट्री है जिनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है। वैसे, आम लोग भी कानून के दायरे में आ सकते हैं, अगर उनकी लापरवाही से किसी के सिस्टम में खतरनाक वायरस पहुंच जाए और बड़ा नुकसान कर दे।
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66
- आईपीसी की धारा 268
- देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरसों पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लागू (गैर-जमानती)।
सजा:- साइबर-वॉर और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्र कैद। दूसरे मामलों में तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।
किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं वगैरह का इस्तेमाल करना। मिसाल के तौर पर कुछ लोग दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ई-कॉमर्स ट्रांजैक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करते हुए शॉपिंग, धन की निकासी वगैरह कर लेते हैं। जब आप कोई और शख्स होने का आभास देते हुए कोई अपराध करते हैं या बेजा फायदा उठाते हैं, तो वह आइडेंटिटी थेफ्ट (पहचान की चोरी) के दायरे में आता है।
- आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी)
- आईपीसी की धारा 419 का इस्तेमाल मुमकिन
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या एक लाख रुपये तक जुर्माना।
किसी दूसरे शख्स के ई-मेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ई-मेल भेजना इसके तहत आता है। हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस-स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फ्रॉड का इस्तेमाल ज्यादा होता है। इनका मकसद ई-मेल पाने वाले को धोखा देकर उसकी गोपनीय जानकारियां हासिल कर लेना होता है। ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ई-कॉमर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं।
- आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी
- आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465।
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।
पोर्नोग्राफी के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और सामग्री आती है, जिसकी प्रकृति यौन हो और जो यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो। ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिये प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है। जो लोग दूसरों के नग्न या अश्लील विडियो तैयार कर लेते हैं या एमएमएस बना लेते हैं और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दूसरों तक पहुंचाते हैं, किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ अश्लील संदेश भेजते हैं, वे भी इसके दायरे में आते हैं।
अपवाद: पोर्नोग्राफी प्रकाशित करना और इलेक्ट्रॉनिक जरियों से दूसरों तक पहुंचाना अवैध है, लेकिन उसे देखना, पढ़ना या सुनना अवैध नहीं है, लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध है। कला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, धर्म आदि से जुड़े कामों के लिए जनहित में तैयार की गई उचित सामग्री अवैध नहीं मानी जाती।
- आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 67 (ए)
- आईपीसी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा:- जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर पांच साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा सात साल हो जाती है।
ऐसे मामलों में कानून और भी ज्यादा कड़ा है। बच्चों को सेक्सुअल एक्ट में या नग्न दिखाते हुए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मैट में कोई चीज प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना। इससे भी आगे बढ़कर कानून कहता है कि जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह भी गैरकानूनी है। बच्चों को बहला-फुसलाकर ऑनलाइन संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उनके साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकॉर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसके तहत आते हैं। यहां बच्चों से मतलब है - 18 साल से कम उम्र के लोग।
- आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 67 (बी), आईपीसी की धाराएं 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा:- पहले अपराध पर पांच साल की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरे अपराध पर सात साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना।
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं। डिजिटल जरिए से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर क्राइम के दायरे में आता है। किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना (जैसा कि पूर्वोत्तर के लोगों के मामले में हुआ), नफरत फैलाना या बदनाम करना।
- आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए)
सजा:- तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना
वेब पर मौजूद दूसरों की सामग्री को चुराकर अनधिकृत रूप से इस्तेमाल करने और प्रकाशित करने के मामलों पर भारतीय साइबर कानूनों में अलग से प्रावधान नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक कानूनों के तहत कार्रवाई की मुनासिब व्यवस्था है। किताबें, लेख, विडियो, चित्र, ऑडियो, लोगो और दूसरे क्रिएटिव मटीरियल को बिना इजाजत इस्तेमाल करना अनैतिक तो है ही, अवैध भी है। साथ ही सॉफ्टवेयर की पाइरेसी, ट्रेडमार्क का उल्लंघन, कंप्यूटर सोर्स कोड की चोरी और पेटेंट का उल्लंघन भी इस जुर्म के दायरे में आता है।
- कॉपीराइट कानून 1957 की धारा 14, 63 बी
सजा:- सात दिन से तीन साल तक की जेल और/या 50 हजार रुपये से दो लाख रुपये तक का जुर्माना।
Friday, 26 September 2014
विधि सन्देश 'काशी'
Wednesday, 24 September 2014
Thursday, 4 September 2014
हिंदी भाषा का उच्चतम न्यायालय में प्रयोग :-
अब देश में हिंदी भाषा में कार्य करने में सक्षम न्यायविदों और साहित्य की भी कोई कमी नहीं है। न्यायाधीश बनने के इच्छुक, जिस प्रकार कानून सीखते हैं, ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी सीख सकते हैं, चूंकि किसी न्यायाधीश को हिंदी नहीं आती, अत: न्यायालय की भाषा हिंदी नहीं रखी जाए, तर्कसंगत व औचित्यपूर्ण नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि न्यायालय न्यायाधीशों और वकीलों की सुविधा के लिए बनाये जाते हैं। देश के विभिन्न न्यायालयों से ही उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश आते हैं। देश के कुल 18008 अधीनस्थ न्यायालयों में से 7165 न्यायालयों की भाषा हिंदी हैं और शेष न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी अथवा स्थानीय भाषा है। इन अधीनस्थ न्यायालयों में भी कई न्यायालयों की कार्य की भाषा अंग्रेजी है, जबकि अभियोजन की प्रस्तुति हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में की जा रही है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, तमिलनाडु आदि इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार कई राज्यों में अधीनस्थ न्यायालयों, उच्च न्यायालय में अभियोजन की भाषाएं भिन्न-भिन्न हैं, किंतु उच्च न्यायालय अपनी भाषा में सहज रूप से कार्य कर रहे हैं।
Sunday, 24 August 2014
साइबर अपराध और साइबर कानून :-
17 अक्टूबर, 2000 को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (सूचना तकनीक क़ानून, 2000) अस्तित्व में आया. 27 अक्टूबर, 2009 को एक घोषणा द्वारा इसे संशोधित किया गया. संशोधित क़ानून में परिभाषाएं निम्नवत हैं :
(ए) यहां क़ानून से तात्पर्य सूचना तकनीक क़ानून, 2000 से है.
(बी) संवाद (कम्युनिकेशन) का मतलब किसी भी तरह की जानकारी या संकेत के प्रचार, प्रसार या उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना है. यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी तरह का हो सकता है.
(सी) संवाद सूत्र (कम्युनिकेशन लिंक) का अर्थ कंप्यूटरों को आपस में एक-दूसरे से जोड़ने के लिए प्रयुक्त होने वाले सैटेलाइट, माइक्रोवेव, रेडियो, ज़मीन के अंदर स्थित कोई माध्यम, तार, बेतार या संचार का कोई अन्य साधन हो सकता है.
सूचना तकनीक क़ानून 9 जनवरी, 2000 को पेश किया गया था. 30 जनवरी, 1997 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली में प्रस्ताव संख्या 51/162 द्वारा सूचना तकनीक की आदर्श नियमावली (जिसे यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के नाम से जाना जाता है) पेश किए जाने के बाद सूचना तकनीक क़ानून, 2000 को पेश करना अनिवार्य हो गया था. संयुक्त राष्ट्र की इस नियमावली में संवाद के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक या काग़ज़ के इस्तेमाल को एक समान महत्व दिया गया है और सभी देशों से इसे मानने की अपील की गई है. सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की प्रस्तावना में ही हर ऐसे लेनदेन को क़ानूनी मान्यता देने की बात उल्लिखित है, जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के दायरे में आता है और जिसमें सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सूचना तकनीक का इस्तेमाल हुआ हो. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल करता है. इससे सरकारी संस्थानों में भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दस्तावेज़ों का आदान-प्रदान संभव हो सकता है और इंडियन पेनल कोड, इंडियन एविडेंस एक्ट 1872, बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट 1891 और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 अथवा इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े किसी भी क़ानून में संशोधन में भी इन दस्तावेज़ों का उपयोग हो सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली ने 30 जनवरी, 1997 को प्रस्ताव संख्या ए/आरइएस/51/162 के तहत यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ द्वारा अनुमोदित मॉडल लॉ ऑन इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित आदर्श कानून) को अपनी मान्यता दे दी. इस क़ानून में सभी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण के लिए काग़ज़ आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा रहीं तकनीकों से संबंधित कोई भी क़ानून बनाने या उसे संशोधित करते समय वे इसके प्रावधानों का ध्यान रखेंगे, ताकि सभी देशों के क़ानूनों में एकरूपता बनी रहे. सूचना तकनीक क़ानून 2000 17 अक्टूबर, 2000 को अस्तित्व में आया. इसमें 13 अध्यायों में विभक्त कुल 94 धाराएं हैं. 27 अक्टूबर, 2009 को इस क़ानून को एक घोषणा द्वारा संशोधित किया गया. इसे 5 फरवरी, 2009 को फिर से संशोधित किया गया, जिसके तहत अध्याय 2 की धारा 3 में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की जगह डिजिटल हस्ताक्षर को जगह दी गई. इसके लिए धारा 2 में उपखंड (एच) के साथ उपखंड (एचए) को जोड़ा गया, जो सूचना के माध्यम की व्याख्या करता है. इसके अनुसार, सूचना के माध्यम से तात्पर्य मोबाइल फोन, किसी भी तरह का व्यक्तिगत डिजिटल माध्यम या फिर दोनों हो सकते हैं, जिनके माध्यम से किसी भी तरह की लिखित सामग्री, वीडियो, ऑडियो या तस्वीरों को प्रचारित, प्रसारित या एक से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है.
आधुनिक क़ानून की शब्दावली में साइबर क़ानून का संबंध कंप्यूटर और इंटरनेट से है. विस्तृत संदर्भ में कहा जाए तो यह कंप्यूटर आधारित सभी तकनीकों से संबद्ध है. साइबर आतंकवाद के मामलों में दंड विधान के लिए सूचना तकनीक क़ानून, 2000 में धारा 66-एफ को जगह दी गई है.
66-एफ : साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान
1. यदि कोई-
(ए) भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को भंग करने या इसके निवासियों को आतंकित करने के लिए-
क. किसी अधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के इस्तेमाल से रोकता है या रोकने का कारण बनता है.
ख. बिना अधिकार के या अपने अधिकार का अतिक्रमण कर जबरन किसी कंप्यूटर के इस्तेमाल की कोशिश करता है.
ग. कंप्यूटर में वायरस जैसी कोई ऐसी चीज डालता है या डालने की कोशिश करता है, जिससे लोगों की जान को खतरा पैदा होने की आशंका हो या संपत्ति के नुक़सान का ख़तरा हो या जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं में जानबूझ कर खलल डालने की कोशिश करता हो या धारा 70 के तहत संवेदनशील जानकारियों पर बुरा असर पड़ने की आशंका हो या-
(बी) अनाधिकार या अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए जानबूझ कर किसी कंप्यूटर से ऐसी सूचनाएं हासिल करने में कामयाब होता है, जो देश की सुरक्षा या अन्य देशों के साथ उसके संबंधों के नज़रिए से संवेदनशील हैं या कोई भी गोपनीय सूचना इस इरादे के साथ हासिल करता है, जिससे भारत की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं संप्रभुता, अन्य देशों के साथ इसके संबंध, सार्वजनिक जीवन या नैतिकता पर बुरा असर पड़ता हो या ऐसा होने की आशंका हो, देश की अदालतों की अवमानना अथवा मानहानि होती हो या ऐसा होने की आशंका हो, किसी अपराध को बढ़ावा मिलता हो या इसकी आशंका हो, किसी विदेशी राष्ट्र अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा किसी अन्य को ऐसी सूचना से फायदा पहुंचता हो, तो उसे साइबर आतंकवाद का आरोपी माना जा सकता है.
2. यदि कोई व्यक्ति साइबर आतंकवाद फैलाता है या ऐसा करने की किसी साजिश में शामिल होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है.
2005 में प्रकाशित एडवांस्ड लॉ लेक्सिकॉन के तीसरे संस्करण में साइबरस्पेस शब्द को भी इसी तर्ज पर परिभाषित किया गया है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में फ्लोटिंग शब्द पर खासा जोर दिया गया है, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से से इस तक पहुंच बनाई जा सकती है. लेखक ने आगे इसमें साइबर थेफ्ट (साइबर चोरी) शब्द को ऑनलाइन कंप्यूटर सेवाओं के इस्तेमाल के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया है. इस शब्दकोष में साइबर क़ानून की इस तरह व्याख्या की है, क़ानून का वह क्षेत्र, जो कंप्यूटर और इंटरनेट से संबंधित है और उसके दायरे में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचनाओं तक निर्बाध पहुंच आदि आते हैं.
सूचना तकनीक क़ानून में कुछ और चीज़ों को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, कंप्यूटर से तात्पर्य किसी भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल या तेज़ गति से डाटा का आदान-प्रदान करने वाले किसी भी ऐसे यंत्र से है, जो विभिन्न तकनीकों की मदद से गणितीय, तार्किक या संग्रहणीय कार्य करने में सक्षम है. इसमें किसी कंप्यूटर तंत्र से जुड़ा या संबंधित हर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर शामिल है.
सूचना तकनीक क़ानून, 2000 की धारा 1 (2) के अनुसार, उल्लिखित अपवादों को छोड़कर इस क़ानून के प्रावधान पूरे देश में प्रभावी हैं. साथ ही उपरोक्त उल्लिखित प्रावधानों के अंतर्गत देश की सीमा से बाहर किए गए किसी अपराध की हालत में भी उक्त प्रावधान प्रभावी होंगे.
सूचना तकनीक क़ानून, 2000 के अंतर्गत साइबरस्पेस में क्षेत्राधिकार संबंधी प्रावधान
मानव समाज के विकास के नज़रिए से सूचना और संचार तकनीकों की खोज को बीसवीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार माना जा सकता है. सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों, ख़ासकर न्यायिक प्रक्रिया में इसके इस्तेमाल की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि इसकी तेज़ गति, कई छोटी-मोटी द़िक्क़तों से छुटकारा, मानवीय ग़लतियों की कमी, कम ख़र्चीला होना जैसे गुणों के चलते यह न्यायिक प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है. इतना ही नहीं, ऐसे मामलों के निष्पादन में, जहां सभी संबद्ध पक्षों की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य न हो, यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प सिद्ध हो सकता है. सूचना तकनीक क़ानून के अंतर्गत उल्लिखित आरोपों की सूची निम्नवत हैः
1. कंप्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ की कोशिश-धारा 65
2. कंप्यूटर में संग्रहित डाटा के साथ छेड़छाड़ कर उसे हैक करने की कोशिश-धारा 66
3. संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 ए
4. कंप्यूटर या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से चोरी की गई सूचनाओं को ग़लत तरीक़े से हासिल करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 बी
5. किसी की पहचान चोरी करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 सी
6. अपनी पहचान छुपाकर कंप्यूटर की मदद से किसी के व्यक्तिगत डाटा तक पहुंच बनाने के लिए दंड का प्रावधान- धारा 66 डी
7. किसी की निजता भंग करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 इ
8. साइबर आतंकवाद के लिए दंड का प्रावधान-धारा 66 एफ
9. आपत्तिजनक सूचनाओं के प्रकाशन से जुड़े प्रावधान-धारा 67
10. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सेक्स या अश्लील सूचनाओं को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 ए
11. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से ऐसी आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण, जिसमें बच्चों को अश्लील अवस्था में दिखाया गया हो-धारा 67 बी
12. मध्यस्थों द्वारा सूचनाओं को बाधित करने या रोकने के लिए दंड का प्रावधान-धारा 67 सी
13. सुरक्षित कंप्यूटर तक अनाधिकार पहुंच बनाने से संबंधित प्रावधान-धारा 70
14. डाटा या आंकड़ों को ग़लत तरीक़े से पेश करना-धारा 71
15. आपसी विश्वास और निजता को भंग करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए
16. कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का उल्लंघन कर सूचनाओं को सार्वजनिक करने से संबंधित प्रावधान-धारा 72 ए
17. फर्ज़ी डिजिटल हस्ताक्षर का प्रकाशन-धारा 73
सूचना तकनीक क़ानून की धारा 78 में इंस्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी को इन मामलों में जांच का अधिकार हासिल है.
इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में साइबर अपराधों से संबंधित प्रावधान
1. ईमेल के माध्यम से धमकी भरे संदेश भेजना-आईपीसी की धारा 503
2. ईमेल के माध्यम से ऐसे संदेश भेजना, जिससे मानहानि होती हो-आईपीसी की धारा 499
3. फर्ज़ी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉड्र्स का इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 463
4. फर्ज़ी वेबसाइट्स या साइबर फ्रॉड-आईपीसी की धारा 420
5. चोरी-छुपे किसी के ईमेल पर नज़र रखना-आईपीसी की धारा 463
6. वेब जैकिंग-आईपीसी की धारा 383
7. ईमेल का ग़लत इस्तेमाल-आईपीसी की धारा 500
8. दवाओं को ऑनलाइन बेचना-एनडीपीएस एक्ट
9. हथियारों की ऑनलाइन ख़रीद-बिक्री-आर्म्स एक्ट
न्यायिक अधिकारियों के कितने पद खाली हैं, भारत में (as on 20.03.2025) by #Grok
भारत में न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है, क्योंकि यह नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति, और स्वीकृत पदों की संख्य...
-
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में...
-
एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलस...
-
Link of Bill:- एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 का प्रारुप विधेयक का प्रावधान :- विधेयक के प्रमुख प्रावधान विधेयक में बार काउंसिल की संरचना...