Sunday, 31 January 2016

क्षमा चाहूंगा बापू:-

क्षमा चाहूंगा बापू से (सेन्ट्रल बार के सभागार में स्थापित महात्मा गांधी की जीवन्त प्रतिमा व उसके सम्मान से) और सभी अधिवक्ता बहनाें व भाइयों तथा समस्त गांधीवादियाें से कि, मैं दिनांक 30 जनवरी 2016 काे बनारस बार के शहीद/बलिदान दिवस कार्यक्रम की तैयारियों महामंत्री श्री नित्यानन्द राय व अन्य के साथ तथा वकालत के कामाें में वयस्त रहा। जिस कारण से आज के दिवस 30/1 काे मैं सेन्ट्रल बार के सभागार में नहीं पहुंच पाया और वास्तविकता यह भी है कि, मुझे याद भी नहीं था की सेन्ट्रल बार में बापू की प्रतिमा के सम्मुख श्रद्धांजलि अर्पित करना है। यही वजह रही कि, मैं बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण अथवा बापू की प्रतिमा के सम्मुख श्रद्धांजलि समर्पित/अर्पित नहीं कर पाया और ना ही मुझे दीे सेन्ट्रल बार एसोसिएशन 'बनारस' वाराणसी में किसी श्रद्धांजलि सभा अथवा कार्यक्रम की सूचना थी। जहां तक मुझे जानकारी है, सेन्ट्रल बार में काेई कार्यक्रम था भी नहीं।

यह मेरी त्रुटि व भूल है और मैं स्वयं अपने आपकाे इस गलती के लिए दाेषी मानता हूँ और मेरा यह कृत्य क्षमा के याेग्य नहीं है, यह मेरा विचार है।

यदि मेरे प्रिय अधिवक्ता बहनाें व भाइयों तथा समस्त भारतवंशियाें व गांधीवादियाें के द्वारा इस कृत्य के लिए मुझे क्षमा दी जाती है, ताे यह उनकी श्रेष्ठता तथा प्रेम व आशीर्वाद हाेगा।
पुनः क्षमा के साथ आपका निंदनीय...
अंशुमान दुबे (एडवोकेट)
पूर्व उपाध्यक्ष
दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी
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बहुत भरोसा था हमें कोमल शब्दों पर
और सदियों के आंसुओं से तुम्हारी आंख़ें गीली थीं
यकीन था भावनाओं पर
पर तुम्हारे स्वत्व पर लोहे की जिन सलाखों के निशान थे
उसका कोई काट न था इन भावनाओं के पास
शब्द थे ढेर सारे
निरर्थक नहीं थे सब
पर तुमको संबोधित होकर भी कितने गैर थे तुम्हारे लिये

क्षमा करना, इन्हीं शब्दों के बीहड़ वन में
बदहवास भटकते बीत गया है कितना वक्त……
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#भारतमेराधर्म
#AdvAnshuman

Sunday, 24 January 2016

गणतंत्र दिवस-2016 की हार्दिक शुभकामनायें:-

आदरणीय अधिवक्ता गुरूजन एवं सम्मानित अधिवक्ता बहनाें व भाइयों तथा माननीय न्यायिक अधिकारीगण व सम्मानित कर्मचारीगण और वादीकारियाें काे *गणतंत्र दिवस-2016* की हार्दिक शुभकामनायें।
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हमारे गणतंत्र काे समर्पित:-
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"तस्वीरों से क्या होगा गाँधी भगत पटेल की,
उनकी राह चल सके ईमान इतना चाहिए।"
********(हरजीत सिंह 'विशेष')***
#भारतमेराधर्म
#AdvAnshuman

Tuesday, 19 January 2016

खराब है दाैर :-

राेता है बच्चा ताे राेने दाे, आँसू काे उसके बहने दाे।
तुम मुस्करते हुये हाथ फैलाकर चाैखटाें पर जाते रहाे।।

दर्द का क्या मिट जायेगा, घाव का क्या भर जायेगा।
तुम जिन्दगी में उनकी बबूल की शाखें बिछाते चलाे।।

जले आशियानें बन जायेगें, बुझे चूल्हें जल जायेंगे।
खराब है दाैर 'मान' बिताया कराे रात अपने आशियानें में।।
*********अंशुमान दुबे 'मान'

Friday, 15 January 2016

भारतीय समाज का जाति दाेष :-

भारतीय समाज, विशेषकर हिंदुओं में जाति के प्रश्न बहुत पुराने हैं। यह ऐसी हकीकत है, जिसके कारण हिंदू धर्म को अनेकानेक आलोचनाएं झेलनी पड़ी हैं। इसका सहारा लेकर कथित ऊंची जातियां शताब्दियों से निम्नस्थ जातियों का शोषण करती आई हैं। इस कारण कुछ आलोचक जाति–प्रथा को भारतीय समाज का कलंक मानते हैं। काफी हद तक वे गलत भी नहीं हैं। आज भी समाज में जो भारी असमानता और ऊंच-नीच है, आदमी-आदमी के बीच गहरा भेदभाव है। जाति उसका बड़ा कारण है।

समाज में अार्थिक समानता लाने के लक्ष्य की यह आज भी सबसे बड़ी बाधा है। जातीय उत्पीड़न के शिकार समाज के दो-तिहाई से अधिक लोग, निरंतर इसकी जकड़बंदी से बाहर आने को छटपटाते रहे हैं। यदा-कदा उन्हें आंशिक सफलता भी मिली है। मगर आत्मविश्वास की कमी और बौद्धिक दासता की मनः स्थिति उन्हें बार-बार कथित ऊंची जातियों का वर्चस्व स्वीकारने को बाध्य करती रही है।

भारतीय समाज में जाति–विधान इतना अधिक प्रभावकारी है कि, सिख और इस्लाम जैसे धर्म भी, जिनमें जाति के लिए सिद्धांततः कोई स्थान नहीं है। इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं। इनमें सिख धर्म का तो जन्म ही जाति और धर्म पर आधारित विषमताओं के प्रतिकार-स्वरूप हुआ था, जबकि इस्लाम की बुनियाद बराबरी और भाईचारे पर रखी गई थी। भारत में आने के बाद इस्लाम पर भी जाति-भेद का रंग चढ़ चुका है।

जाति आधारित विभाजन पूरी तरह अमानवीय है। यह मनुष्य की नैसर्गिक स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न करता है। जाति और वर्ण की संकल्पना सामान्य मनोविज्ञान के भी विपरीत है, जिसके अनुसार जन्म के समय सभी शिशु एक समान होते हैं। उनका मस्तिष्क कोरी सलेट जैसा होता है। एकदम साफ इबारत उस पर बाद में लिखी जाती है।

ब्राह्मण और शूद्र के शिशुओं को यदि एक साथ, एक ही जंगल में छोड़ दिया जाए और उनसे किसी भी प्रकार का संपर्क न रखा जाए; तो समान अवधि के उपरांत दोनों की बौद्धिक परिपक्वता का स्तर लगभग एक-समान होगा। जो भी अंतर होगा, उसके पीछे उनकी देह–यष्टि का योगदान होगा। लगभग वैसा ही विकास जैसा पशुओं और वन्य प्राणियों में दिखाई पड़ता है। जाहिर है मनुष्य अपने गुण-कर्म और प्रवृत्तियां समाज में रहते हुए ग्रहण करता है।

जाति–व्यवस्था के अनुसार मान लिया जाता है कि फलां शिशु ‘पंडित’ के घर में जन्मा है, इसलिए उसमें जन्मजात पांडित्य है। जबकि शूद्र के घर में जन्म लेने वाले शिशु सामान्य बुद्धि-विवेक से भी वंचित मान लिए जाते हैं। उनका काम बताया जाता है कि वर्ग विशेष की सेवा करना, उनकी चाकरी करते हुए जीवन बिताना। यह थोपी हुई दासता है। परंतु हिंदू परंपरा में इसे धर्म बताया गया है। बिना कोई शंका किए, चुपचाप परंपरानुसरण करते जाने को पुरुषार्थ की संज्ञा दी जाती रही है। इस तरह जो धर्म बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार की अपेक्षा के साथ ब्राह्मण को शीर्ष पर रखता है और प्रकांतर में मानवीय विवेक का सम्मान करता है।

व्यवस्था बनते ही समाज के अस्सी प्रतिशत लोगों से बौद्धिक हस्तक्षेप और पसंदों का अधिकार छीनकर, पूरे समाज को नए ज्ञान का विरोधी बना देता है। हिंदू धर्म की यही विडंबना समय–समय पर उसके बौद्धिक एवं राजनीतिक पराभव का कारण बनी है। आज भी समाज में जो भारी असमानता और असंतोष है, उसके मूल में भी जाति ही है। जाति का लाभ उठा रहे वर्गों और जातीय उत्पीड़न का शिकार रहे लोगों के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी है कि, संस्कृति को लेकर जरा-सी बहस भी चले तो जनता का बड़ा हिस्सा उसपर संदेह करने लगता है। इससे कई बार धार्मिक-सांस्कृतिक सुधारवादी आंदोलन भी खटाई में पड़ जाते हैं।

वैसे भी पांडित्य, चिंतन-मनन और स्वाध्याय की उपलब्धि होता है। वह न तो बैठे-ठाले आ सकता है, न ही व्यक्ति का जन्मजात गुण हो सकता है। कथित दैवी अनुकंपा भी जड़बुद्धि व्यक्ति को पंडित नहीं बना सकती। दूसरी ओर जाति है कि उसके माध्यम से एक वर्ग जन्मजात पांडित्य के दावे के साथ हाजिर होता है तो दूसरा वर्ग ‘शासक’ के रूप में। फिर निहित स्वार्थ के लिए ये दोनों वर्ग संगठित होकर शेष समाज के लिए शोषक की भूमिका में आ जाते हैं। ‘पांडित्य’ को यदि ज्ञान का पर्याय भी मान लिया जाए तो वह स्वाभाविक रूप से व्यवहार का विषय होगा, अनुभव का विषय होगा, प्रदर्शन की वस्तु वह हरगिज नहीं हो सकता।
#भारतमेराधर्म
#AdvAnshuman

Wednesday, 13 January 2016

बनारस व सेन्ट्रल बार के अध्यक्षद्वय के संग आशीर्वाद:-

दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी के अध्यक्ष श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव तथा दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन बनारस, वाराणसी श्री विवेक शंकर तिवारी के साथ Ethical Lawyers Foundation, Varanasi के तत्वावधान में आयोजित सम्मान समारोह में मां गंगा के श्री चरणों में बजड़े पर अंशुमान दुबे एडवोकेट।

न्यायमूर्ती श्रीयुत् डी.वाई. चंद्रचूड़ जी :-

नववर्ष 2016 में माननीय मुख्य न्यायमूर्ती उत्तर प्रदेश श्रीयुत् डी.वाई. चंद्रचूड़ जी के प्रथम काशी आगमन पर दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी की ओर से स्वागत करते हुये अध्यक्ष - श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव, महामंत्री- श्री नित्यानन्द राय एवं पूर्व उपाध्यक्ष - श्री अंशुमान दुबे साथ में रजिस्ट्रार जनरल श्री एस. के. सिंह जी।

Saturday, 2 January 2016

नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाएँ:-

॥ ॐ ॥
सुख, शान्ति एवं समृध्दि की मंगलमयी कामनाओं के साथ आपकाे एवं आपके परिजन व मित्राें को "नववर्ष-2016" की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपका
एड. अंशुमान दुबे
पूर्व उपाध्यक्ष
दी बनारस बार एसोसिएशन, वाराणसी।
#भारतमेराधर्म
"Wish You & Your Family A Very Happy & prosperous New Year 2016"
Regards
Anshuman Dubey (Advocate)
9415221561

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