पौराणिक साहित्य को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि हमारे देवता भी सर्वथा निर्दोष या दुर्गुणों से मुक्त नहीं थे। लेकिन जहां उनका पतन हुआ, वहीं राक्षसों का जन्म हुआ। उन राक्षसों ने देवताओं को ही प्रताड़ित किया।
इन पाैराणिक कथाओं में मनुष्य के लिए संभवत: यही संदेश है। वह गलत वृत्तियों का शिकार हो सकता है। वही वृत्तियां हमारे समाज में राक्षस संस्कृति को जन्म देती हैं। और अंतत: मनुष्य को स्वयं ही उनका निदान या उपचार करना होता है।
इन बाताें काे यहां शेयर करने का तात्पर्य यह है कि, कुछ राक्षसी चरित्र के मनुष्य वर्तमान समय में तीव्र गति से विचरित हैं। जाे कुछ सज्जन/देवता व्यक्ति की गलत साेच का परिणाम हैं और उसका दण्ड सम्पूर्ण विद्वत समाज भाेग रहा है।
Friday, 27 November 2015
सज्जन व्यक्ति की गलत साेच का परिणाम :-
Sunday, 22 November 2015
दाेहे:-
'मान' जीभ भयी बावरी उगले ज़हर हजार।
जाे बस में रहे बावरी बचा रहे शीष सम्मान।
#भारतमेराधर्म
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'मान' समूह में मिलत है, संख्य सैकड़ाे हजार।
सफल तभी हाेत जब एक हाेये संकल्प विचार।
#भारतमेराधर्म
23/11 कचहरी ब्लास्ट के आठ साल पुरे, अधिवक्ता देंगे श्रंद्धांजलि:-
वाराणसी/काशी के न्याय मंदिर में बम ब्लास्ट की घटना को आठ साल बीत गए हैं। घटना में तीन अधिवक्ताओं समेत नौ लोगों की मौत और पचास से अधिक लोग घायल हुए थे। कचहरी परिसर में काम करने वाले अधिवक्ताओं को साथियों को आज तक न्याय न मिलने का गम सता रहा है।
23 नवंबर 2007 को सिविल और कलक्ट्रेट परिसर में दो स्थानों पर ब्लास्ट हुए थे। घटना से पूरी वाराणसी थर्रा उठी थी। साेमवार को घटना की आठवीं बरसी तक न्याय तो दूर मामले में आज तक न ही कोई अभियुक्त पकड़ा जा सका है और न ही किसी का बयान दर्ज किया गया है। मामला एसटीएफ के पास है लेकिन फिर भी विवेचना आगे नहीं बढ़ सकी है। इससे अधिवक्ता और पीड़ितों के परिवार नाराज हैं।
अधिवक्ता देते हैं प्रति वर्ष श्रद्धांजलि :- 23/11/2007 के बाद से हर बरसी पर दोनों घटना स्थल पर मारे गए लोगों की याद में पुष्प अर्पित करने के साथ दीप और कैंडिल जलाकर अधिवक्ता बंधुओं द्वारा श्रद्धांजलि दी जाती है।
Sunday, 15 November 2015
कबीर :: शिरडी साईं :: महात्मा गांधी :-
कबीर ने करघे पर बैठकर ऐसी नायाब चादर बुनी, जिसे ऋषि-मुनि सबने ओढ़ी, फिर जस की तस धर दीनी चदरिया।
साईं बाबा चक्की में रोग-शोक पीसकर सबको मुक्त करते थे, परन्तु बाबा कबीर चलती चाकी देख रोते थे। ‘चलती चाकी देख दिया कबीरा रोय’ अथवा 'चक्की में जाकर कोई साबुत नहीं बचता'।
साईं बाबा मानते थे, आटे की तरह बिखराे मत, केन्द्र की तरफ जाओ। कबीर के कथन में न गेहूँ बचता है और न घुन।
साईं बाबा एवं कबीर, दोनों के ही बीच में चक्की जन कल्याण का अद्भुत उपकरण रहा हैं।
कैसी विचित्र बात है कि, कबीर के चार सौ साल बाद साईं बाबा ने चक्की को जनकल्याण के सन्देश का माध्यम बनाया और साईं बाबा के लगभग पाँच दशक बाद महात्मा गाँधी ने चरखे को परिवर्तन का ज़रिया बनाया।
जड़ के नीचे तीनाें संताें में एक समानता 'राम' का नाम रहा है। अगर कबीर 'निर्गुण राम' में रमे थे ताे साईं बाबा काे सब 'साईं राम' कह कर भजते हैं तथा गांधी 'हे राम' कह कर उपासना करते थे। यह भी एक जड़ हो सकती है, जिससे ये संत जुड़े थे।
चक्की व चरखा आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन के प्रभावी माध्यम बन गये। प्रतीत हाेता है, तीनों संत अपनी-अपनी तरह वैज्ञानिक थे या फिर कहूं ताे "आध्यात्मिक वैज्ञानिक" थे। तीनों ने परिवर्तन के अपने-अपने यन्त्र ढूँढ़ रखे थे, जाे आज भी प्रभावी हैं और भविष्य में भी प्रभावी रहेंगे।
#भारतमेराधर्म
Thursday, 5 November 2015
सहिष्णुता का मतलब :-
"सहिष्णुता का मतलब है, हर वह अधिकार जिसे आप अपने लिए पाना चाहते हैं, वह दूसरों को भी मिले।"
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Meaning of सहिष्णुता (Sahishnuta) in English:-
Forbearance; Patient; Tolerance
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Meaning of असहिष्णुता (Asahishnuta) in English:-
Intolerance; Impatience
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सहिष्णुता का अनुपम उदाहरण :-
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर थे। एक बार वहां रेल से उतरने के बाद उन्होंने एक तांगा किया। तांगे में कुछ गोरे अंग्रेज व कुछ काले (भारतीय व अफ्रीकन नागरिक) बैठे थे। अंग्रेजों की भेदभाव-नीति यह थी कि वे अपने साथ काले लोगों का बैठना-खाना-पीना पसंद नहीं करते थे, तब भारत व अफ्रीकन देश गुलाम थे।
तांगे में जगह न मिलने पर गांधीजी उसमें रखे बॉक्स (पेटी) पर बैठ गए। यह बात अंग्रेजों को नागवार गुजरी और उनमें से एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पीटना शुरू कर दिया। गांधीजी काफी देर तक मार खाते रहे, तब दूसरे अंग्रेजों में इंसानियत जागी और उन्होंने गांधीजी को पिटने से बचाया। उन्होंने अंग्रेजों का कोई प्रतिरोध नहीं किया व उन्हें क्षमा कर दिया था। यह गांधीजी की सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है।
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सहिष्णुता यानी सहनशीलता। सहिष्णु व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। असहिष्णु को कोई भी पसंद नहीं करता है। सहिष्णु बनना कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं। किसी भी प्रकार की तनातनी होने पर हमें चाहिए कि हम सहिष्णुता का परिचय दें। इससे बात नहीं बढ़ेगी तथा वातावरण सामान्य बना रहेगा।
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मानस की शुरुआत ही शिव वंदना से हुई है (भवानी शंकरो वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणो …….)। इसके अतिरिक्त राम को शिव वंदना करते दिखाया गया है और शिव को राम की। अंतरपंथीय सहिष्णुता अब आवश्यकता बन चुकी है।
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जिस तरह से कट्टरता बढ़ रही है, उससे तो यही लगता है कि आनेवाले समय में सहिष्णुता का भविष्य उज्जवल है। ठीक उसी तरह, जिस तरह गाँधी ने नाभिकीय हमले के बाद कहा था कि अहिंसा पर उनका विश्वास और बढ़ गया है।
#भारतमेराधर्म
Thursday, 29 October 2015
Smart City :: सुव्यवस्थित शहर
Smart City (सुव्यवस्थित शहर) के concept काे मैं कुछ यू परिभाषित करना चाहता हूँ।
SMART शब्द पाँच अक्षराें S.M.A.R.T. से मिलकर बना है। इनकाे कुछ इस तरह समझा जाये....
S = Safty of its people's. अर्थात जनता की सुरक्षा विशेषकर महिला, बुजुर्गों व बच्चाें की।
M = Moveable Traffic. अर्थात सड़कें व पब्लिक यातायात की सुविधायें सुगम व सरल हाे।
A = Approachable basic needs. अर्थात पानी, बिजली, सीवर, संचार, स्कूल, कालेज, इंटरनेट, अस्पताल, रोजमर्रा की जरुरताें के लिए उचित बाजार, आदि की सुविधायें सुगम व सरल हाे।
R = Rights of Citizens. अर्थात हर जाति व धर्म के मानने वाले नागरिकों के माैलिक अधिकार सुरक्षित हाे।
T = Trust on Administration & Police. अर्थात जनता का शासन प्रशासन व पुलिस पर भराेसा हाे।
CITY काे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है, क्याेंकि जिस शहर में उपराेक्त विषय वस्तु की उपस्थित रहेगी, वह स्वयं में Smart city कहलाने लगेगा।
धन्यवाद।
त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
Tuesday, 27 October 2015
"राम नाम सत्य है"
जब तलक जिस्म में श्वास की आराेह-अवराेह है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जीवन में मां बाप का आशीर्वाद है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जिन्दगी की राहाें में मित्राें का हाथ है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तलक जीवन संगिनी का प्रेम स्वयं में स्वयं से है,
तब तक सब राम-राम है, अन्यथा सब मरा-मरा है।
जब तक घट-घट में राम हैं,
तब तक ये दुनिया काम की है,
अन्यथा ऐ "मान" पुनः राम नाम सत्य है,
राम नाम सत्य है।
#भारतमेराधर्म
Monday, 26 October 2015
बचपन काे तू संभाला के चल :-
चन्द रूपयाें के लिए वह अपना ईमान बेचता है,
कुछ पाने की चाह में ईमान त्यागना कहा मना है।
बचपन में जाे संस्कार सीखा वह ताे थाेथा था,
रूपया सच्चा है जिस पर बिका हर बच्चा है।
बचपन की अठनी चवनी घुलक में मिट चुकी है,
जवानी आते आते ईमान मिट व फट चुका है।
गद्दाराें की बारी है
ना आँख में हया
ना मन में राष्ट्र प्रेम है।
हे "मान" तू संभल चल अंदर तेरे अभी कुछ बचा है,
कम से कम उस बचपन काे तू संभाला के चल।
Sunday, 25 October 2015
"मान" तू प्रेम कर :-
नज़राें से जहान भर में माेहब्बत बयान हाेती है,
जुबान से जहान भर की नफरत सरेआम हाेती है।
बेजुबान जानवर नजराें से माेहब्बत बयान करते हैं,
जुबान वाले ताे लफ्जाें से नफ़रत सरेआम करते हैं।
ऐ जुबान वालाें कबीर मीरा रहीम वाला प्रेम कराे,
ताे जुबान के प्रदर्शन की आवश्यकता ना हाेगी।
मेरी काशी कबीर साईं राम बाेले "मान" तू प्रेम कर।।
Saturday, 24 October 2015
कबीर के राम, हमारे राम :-
कबीर के राम 'सगुण' अथवा 'रूप' अथवा 'आकार' के भेद से परे हैं। दरअसल उन्होंने अपने राम को शास्त्र-प्रतिपादित अवतारी, सगुण, वर्चस्वशील, वर्णाश्रम व्यवस्था के संरक्षक राम से अलग करने के लिए ही ‘निर्गुण राम’ शब्द का प्रयोग किया –
***निर्गुण राम जपहु रे भाई।***
इस ‘निर्गुण’ शब्द को लेकर भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं। कबीर का आशय इस शब्द से सिर्फ इतना है कि ईश्वर को किसी नाम, रूप, गुण, काल आदि की सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता। जो सारी सीमाओं से परे हैं और फिर भी सर्वत्र हैं, वही कबीर के निर्गुण राम हैं। इसे उन्होंने ‘रमता राम’ नाम दिया है। अपने राम को निर्गुण विशेषण देने के बावजूद कबीर उनके साथ मानवीय प्रेम संबंधों की तरह के रिश्ते की बात करते हैं। कभी वह राम को माधुर्य भाव से अपना प्रेमी या पति मान लेते हैं तो कभी दास्य भाव से स्वामी। कभी-कभी वह राम को वात्सल्य मूर्ति के रूप में माँ मान लेते हैं और खुद को उनका पुत्र।
निर्गुण-निराकार ब्रह्म के साथ भी इस तरह का सरस, सहज, मानवीय प्रेम कबीर की भक्ति की विलक्षणता है। यह दुविधा और समस्या दूसरों को भले हो सकती है कि जिस राम के साथ कबीर इतने अनन्य, मानवीय संबंधपरक प्रेम करते हों, वह भला निर्गुण कैसे हो सकते हैं, पर खुद कबीर के लिए यह समस्या नहीं है।
कबीर राम की किसी खास रूपाकृति की कल्पना नहीं करते, क्योंकि रूपाकृति की कल्पना करते ही राम किसी खास ढाँचे अथवा आकृति में बँध जाते, जो कबीर को किसी भी हालत में मंजूर नहीं। कबीर राम की अवधारणा को एक भिन्न और व्यापक स्वरूप देना चाहते थे। इसके बावजूद कबीर राम के साथ एक व्यक्तिगत पारिवारिक किस्म का संबंध जरूर स्थापित करते हैं। राम के साथ उनका प्रेम उनकी अलौकिक और महिमाशाली सत्ता को एक क्षण भी भुलाए बगैर सहज प्रेमपरक मानवीय संबंधों के धरातल पर प्रतिष्ठित है व रहेगा।
अतएव यह तथ्य सत्य है राम से बड़ा राम का नाम।
कुत्ता समाज खफ़ा:-
कुत्ता समाज इंसानी नेताओं से बेहद खफा है। ये इंसानी नेता बात-बात में हमारे बच्चों (पिल्लाें) काे और हम कुत्तों काे अपनी लड़ाई में क्याें घसीटते हैं।
जबकि सदियाें से लेकर आज तक लाेग, हमारी वफादारी की मिसाल देते हैं और देते चले आ रहे हैं।
इंसानी नेताओं से विनम्र निवेदन कि, कृपया हम कुत्तों काे अपने विवादाें में ना घसीटें। हम कुत्ते आज भी अपने मालिकाें के प्रति वफादार हैं और बाबा के आशीर्वाद से सदैव रहेंगे क्याेंकि हम कुत्ते हैं इंसान या नेता नहीं।
कृत-
बाबा कालभैरव की सवारी *श्वान*
Friday, 23 October 2015
एम सी छागला - पितामह
एम सी छागला : महोम्मेदाली करीम चागला (एम.सी.छागला) (30 सितंबर 1900-9 फ़रवरी 1981) एक प्रसिद्ध भारतीय न्यायधीश, राजनयिक तथा कैबिनेट मंत्री थे, जिन्होनें 1948 से 1958 तक बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की थी।
30 सितंबर 1900 को बंबई में एक धनी शिया मुस्लिम व्यापारी परिवार में जन्मे छागला ने 1905 में अपनी मां की मौत के कारण एकाकी बचपन व्यतीत किया। उन्होनें बंबई के सेंट जेवियर्स हाई स्कूल और कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की, जिसके बाद 1919 से 1922 तक वह अध्ययन करने के लिए लिंकन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। इसके बाद उन्हें बंबई उच्च न्यायालय के बार में दाखिला मिल गया जहां उन्होनें सर जमसेतजी कांगा और मोहम्मद अली जिन्ना, जो बाद में पाकिस्तान के संस्थापक बन गए, जैसे दिग्गजों के साथ काम किया।
छागला ने जिन्ना को अपना आदर्श माना और मुस्लिम लीग के सदस्य बन गए, किन्तु बाद में उनके (जिन्ना) द्वारा पृथक मुस्लिम राज्य की मांग उठाने के बाद उन्होनें जिन्ना से सभी संबंध समाप्त कर लिए. उसके बाद उन्होंने अन्य लोगों के मिल कर बंबई में मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की जो एक ऐसी पार्टी थी जिसे स्वंत्रता संग्राम के दौरान अनदेखा किया गया और हाशिए में धकेल दिया गया। 1927 में उन्हें बंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में विधि प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त किया गया, जहां उन्होनें डॉ॰ बी आर अम्बेडकर के साथ काम किया। 1941 में उन्हें बंबई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया, 1948 में वे मुख्य न्यायधीश बने और 1958 तक इस पद पर सेवा करते रहे.
1946 में, छागला संयुक्त राष्ट्र में भाग लेने वाले पहले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। 4 अक्टूबर से 10 दिसम्बर 1956 तक छागला तत्कालीन बंबई राज्य के राज्यपाल रहे जो बाद में गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्यों में विभक्त हो गया। मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के बाद, वह उस एकल सदस्यीय आयोग का हिस्सा बने जिसने विवादित हरिदास मूंदड़ा एल.आई.सी. बीमा घोटाले के लिए भारत के वित्तमंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी की जांच की, जिसके कारन टी.टी. कृष्णमाचारी को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. कृष्णमाचारी नेहरू के काफी निकट थे और इसलिए नेहरू टीटीके के बारे में छागला द्वारा किए गए खुलासे से काफी नाराज़ थे, हालांकि बाद में उन्होनें छागला को माफ़ कर दिया. सितंबर 1957 से 1959 तक छागला ने हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
सेवानिवृत्ति के बाद 1958 से 1961 तक उन्होनें संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। इसके बाद छागला ने अप्रैल 1962 से सितम्बर 1963 तक ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया। वापिस लौटने के तुरंत बाद, उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद ग्रहण करने की पेशकश की गई जो उन्होनें स्वीकार कर ली, तथा 1963 से 1966 तक उन्होनें शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया, इसके बाद नवंबर 1966 से सितम्बर 1967 तक विदेश मामलों के मंत्री के रूप कार्य किया, जिसके बाद उन्होनें सरकारी नौकरी का परित्याग कर दिया. उसके बाद सत्तर वर्ष की उम्र में अपने जीवन के बचे हुए वर्षों में वह सक्रिय रूप से वकालत करते रहे.
जवाहरलाल नेहरू के अधीन शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य करते समय छागला सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को ले कर बहुत परेशान थे:
हमारे संविधान निर्माताओं का इरादा यह नहीं था कि हम सिर्फ झोंपड़ी खड़ी करें, वहां बच्चों को भरें, उन्हें अप्रशिक्षित शिक्षक दें, उन्हें फटी हुई किताबें दें, खेल का कोई मैदान न हो और फिर यह कहें कि हमने अनुच्छेद 45 का पालन किया है और प्राथमिक शिक्षा का विस्तार हो रहा है।.. उनकी इच्छा थी कि 6 से 14 वर्ष की उम्र के बीच हमारे बच्चों को वास्तविक शिक्षा दी जानी चाहिए।
दुर्भाग्य से, यह टिप्पणी आज भी भारतीय शिक्षा के लिए उतनी ही सत्य है।
Vakil/Advocate in India :: भारत में वकील/एडवोकेट
Excellent secular court systems existed under the Mauryas (321-185 BCE) and the Mughals (16th – 19th centuries) with the latter giving way to the current common law system.
During the shift from Mughal legal system, the advocates under that regimen, “Vakil”, too followed suit, though they mostly continued their earlier role as client representatives.
During British rules the indian lawyers i.e. "Vakil" (वकील) are under the Legal Practitioners Act of 1846 which opened up the profession regardless of nationality or religion.
In Republic of India, the law relating to the Advocates is the "Advocates Act, 1961" introduced and thought up by Shri Ashok Kumar Sen, the then law minister of India, which is a law passed by the Parliament and is administered and enforced by the Bar Council of India.
Wednesday, 21 October 2015
अब मेरा दिल कोई मज़हब न मसीहा माँगे :-
अब मेरा दिल कोई मज़हब न मसीहा माँगे
ये तो बस प्यार से जीने का सलीका माँगे
ऐसी फ़सलों को उगाने की ज़रूरत क्या है
जो पनपने के लिए ख़ून का दरिया माँगें
सिर्फ़ ख़ुशियों में ही शामिल है ज़माना सारा
कौन है वो जो मेरे दर्द का हिस्सा माँगे
ज़ुल्म है, ज़हर है, नफ़रत है, जुनूँ है हर सू
ज़िन्दगी मुझसे कोई प्यार का रिश्ता माँगे
ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र
लोग हर जश्न पे मेहमान से पैसा माँगें
कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे
********* इस सुंदर रचना के लिए जनाब अज़ीज़ आज़ाद जी काे काेटिशः धन्यवाद।
Tuesday, 15 September 2015
सूचना का अधिकार ने आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है:-
सूचना का अधिकार अधिनियम - 2005 (आई.टी.आई.) ने हम लाेगाें और आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह कानून देश में 2005 में लागू हुआ। इस कानून का उपयोग करके आप किसी भी विभाग या सरकारी महकमे से संबंधित अपने काम की जानकारी पा सकते हैं। लेकिन आज हम आपको इसके बारे में कुछ रोचक जानकारी देने जा रहे हैं।
आई.टी.आई. से आप सरकार से कोई भी सवाल पूछ सकते हैं। किसी भी दस्तावेज की जांच कर सकते हैं। आर.टी.आई. से आप दस्तावेज या डाक्यूमेंट्स की प्रमाणित कॉपी ले सकते हैं। सरकारी कामकाज में इस्तेमाल सामग्री का नमूना भी ले सकते हैं।
कुछ लोगों का सवाल आया है कि, आर.टी.आई. में कौन-कौन सी धारा हमारे काम की हैं?
तो वो इस प्रकार है-
धारा 6 (1)- आर.टी.आई. का ऐप्लीकेशन लिखने की धारा।
धारा 6 (3)- अगर आपका ऐप्लीकेशन गलत विभाग मे चला गया है तो गलत विभाग इसको 6 (3) धारा के अंतर्गत सही विभाग में 5
दिन के अंदर भेज देगा।
धारा 7(5)- इस धारा के अनुसार BPL कार्ड वालों को कोई आरटीआई शुल्क नहीं देना होता।
धारा 7 (6)- इस धारा के अनुसार अगर आरटीआई का जवाब 30 दिन में नहीं आता है तो सूचना फ्री में दी जाएगी।
धारा 18- अगर कोई अधिकारी जवाब नहीं देता तो उस की शिकायत सूचना अधिकारी को दी जाये।
धारा 8- इस के अनुसार वो सूचना आर.टी.आई. में नहीं दी जाएगी, जो देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा हो या विभाग की आंतरिक जांच को प्रभावित करती हो।
धारा 19 (1)- अगर आपकी आर.टी.आई. का जवाब 30 दिन में नही आता है तो इस धारा के अनुसार आप प्रथम अपील अधिकारी को प्रथम अपील कर सकते हो।
धारा 19 (3)- अगर आपकी प्रथम अपील का भी जवाब नहीं आता है तो आप इस धारा की मदद से 90 दिन के अंदर दूसरी अपील अधिकारी को अपील कर सकते हैं।
इसके लिए आप एक सादा पेपर लें और उसमें एक इंच की कोने से जगह छोड़े और नीचे दिए गए प्रारूप में अपने आरटीआई लिख लें-
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सूचना का अधिकार 2005 की धारा 6(1) और 6(3) के अंतर्गत आवेदन :-
सेवा में
(अधिकारी का पद)
जन सूचना अधिकारी---------------
विभाग का नाम-------------------
विषय - आर.टी.आई. एक्ट-2005 के अंतर्गत .................. से संबधित सूचनाएं
1- अपने सवाल यहां लिखें-
2-
3-
4-
मैं आवेदन फीस के रूप में 10 रुका पोस्टल ऑर्डर ........ संख्या अलग से जमा कर रहा / रही हूं या मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।
यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/ कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए। मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।
भवदीय:
नाम:
पता:
फोन नं:
.............................................
ये सब लिखने के बाद अपना हस्ताक्षर करें। अब मित्रो केंद्र से सूचना मांगने के लिए आप 10 रुपया और एक पेपर की कॉपी मांगने के 2 रु देते है और हर राज्य का आरटीआई शुल्क अगल-अलग है। जिसका पता आप कर सकते हैं।
Wednesday, 9 September 2015
प्रदेश सरकार द्वारा मृत अधिवक्ताओं के परिजनों काे 12.09.2015 काे 5 लाख की सहायता राशि दी जायेगी:-
ताे फिर सिर्फ 17 क्याें...??? यह बार काउंसिल के सदस्याें व महाधिवक्ता काे स्पष्ट करना चाहिए।
क्या वाराणसी के किसी मृत अधिवक्ता के परिजन काे भी 5 लाख का चेक मिल रहा है...???
यह प्रश्न इसलिए क्योंकि वाराणसी से तीन सदस्य बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश में हैं और वे मृतक अधिवक्ताओं के प्रति जवाबदेह भी माने जा सकते हैं, यदि वे ऐसा समझते हाे ताे।
Sunday, 30 August 2015
क्या होता है श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबंधन) ये क्यों किया जाता है, जानिए :-
रक्षाबंधन (29 अगस्त 2015, शनिवार) के दिन ब्राह्मणों द्वारा श्रावणी उपाकर्म किए जाने का विधान है। यह क्रिया पवित्र नदी के घाट पर सामूहिक रूप से की जाती है। जानिए क्या है श्रावणी उपाकर्म-
श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। सर्वप्रथम होता है- प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मकता से भरते हैं। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं और पुराने यज्ञोपवित का पूजन भी करते हैं । इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घी की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है। वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं। प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है।
हमेशा सफल होने के लिए अपनाएं चाणक्य की ये दस बातें :-
चाणक्य की बुद्धि के कारण ही उन्हें आज जाना जाता है। एक महान अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाने वाले चाणक्य ने कई ऐसी नीतियां बनाईं थी। जिसे अपना कर आप सफलता के शिखर पर पहुंच सकते हैं। आज हम बताने जा रहे है चाणक्य की ऐसी ही दस बातें जिन पर अमल कर आप अपना जीवन सफल बना सकते हैं...!!!
1- शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
2- अपने रहस्यों को किसी पर भी उजागर मत करो। यह आदत आपको बर्बाद कर सकती है।
3- हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है। ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमें स्वार्थ ना हो। यह कड़वा सच है।
4- हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं।
5- कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न जरुर कीजिये - मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल हो पाऊगां? और जब गहरई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें, तभी आगे बढें।
6- कोई व्यक्ति अपने कर्मों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।
7- भगवान मूर्तियों में नहीं है। आपकी अनुभूति आपका ईश्वर है। आपकी आत्मा आपका मंदिर है।
8- जैसे ही भय आपके करीब आये , उस पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये।
9- एक बार जब आप कोई काम शुरु करते हैं, तो असफलता से डरे नहीं और ना ही उसे त्यागें। ईमानदारी से काम करने वाले लोग खुश रहते हैं।
10- फूल की खुशबू केवल हवा की दिशा में जाएगी। लेकिन एक अच्छे इंसान की अच्छाई सब जगह फैलेगी।
Saturday, 15 August 2015
चंदे से हाेता है इलाज...!!!
चंदे से हाेता है इलाज..... यह है अधिवक्ता की कहानी।
शर्म आती है मुझकाे अधिवक्ता के रूप में अपनी अक्षमता पर।
क्या हमारे बार एसोसिएशन व बार काउंसिल के पदाधिकारियों काे भी शर्म आती है...???
नाेट:- मैं बात कर रहा हूँ, अधिवक्ता चन्द्र माेहन गुप्ता जी की, जाे कबीरचाैरा मंडलीय अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं। जरनल वार्ड नं. 1 बेड नं. 16 कृपया मदद करें।
सही है कि Adv Gupta jee के पास व साथ कचहरी का वाेट बैंक नहीं है और इससे भी बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि, उनके तीन पुत्र हैं। जाे इलाज में सहयाेग नहीं कर रहे हैं। यदि सही इलाज नहीं हुआ ताे वे अपंग भी हाे सकते हैं अन्यथा.....।
Tuesday, 21 July 2015
कचहरी हमारा "व्यवहारिक विश्वविद्यालय":-
काली अंधियारी रात में एक छाेटा सा चिराग दूर तक अपना प्रकाश पहुंचाकर अपने नन्हें से जीवन काे सफल बनाता है।
इसी तरह इस कलयुगी दुनिया में मानवता आैर प्रकृति काे समर्पित कर किया गया एक छोटा सा कार्य, दूर तक संदेश देकर जागरण के मार्ग काे प्रशस्त करते हुये मानव जीवन काे सफल बनाता है।
काेई कार्य छाेटा-बड़ा नहीं हाेता,
हर कार्य प्रभु द्वारा प्रदत्त है।
वरिष्ठ अधिवक्ताआें काे मृत्योपरान्त भी कचहरी अपने ह्रदय 'बार एसाेसिएशन' में उन्हें सदैव जीवित रखती हैं। यह हम अगली पीड़ी के अधिवक्ताआें के संस्कार हैं और यह संस्कार हमें अपने वरिष्ठाें से प्राप्त हुये हैं। कचहरी हमारा "व्यवहारिक विश्वविद्यालय" जिसने हमें व्यवहार एवं सत्र न्यायालय में काम करने लायक बनाया है।
Thursday, 16 July 2015
साेच का ढंग:-
दाे दिन से तबीयत खराब थी। जरूरी काम व मीटिंग में उपस्थित नहीं हाे सका। आज 15.07.2015 की सुबह 10:00 बजे बिना खाये घर से काेर्ट गया और पूरे दिन काम किया। शाम में चेम्बर कर जब 11:00 दही चावल का पहला निवाला मुंह में डालने काे हुआ ताे पुत्र अश्वथ ने पानी मांगा। मैंनें उसे व मां काे एक-एक ग्लास पानी दिया और फिर पहला निवाला ग्रहण किया।
मन में विचार आया,
"दिनभर के बाद भाेजन भी सुकून से नहीं कर सकता, पापा पानी।"
परन्तु दूसरे ही क्षण विचार आया,
"बीमारी में ही सही दिनभर के बाद निवाला ग्रहण करने के पूर्व अन्नपूर्णा रूपी मां व गणेश रूपी पुत्र काे जल पात्र देकर अन्न ग्रहण करने का अवसर परम पिता परमेश्वर ने दिया यह मेरा साैभाग्य है तथा यह घटना कही ना कही दायित्व का बोध भी करा गयी।"
बाबा कृपा सब पर बनी रहे। त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी।
Wednesday, 8 July 2015
"अहम्" - मैं श्रेष्ठ हूँ
Wednesday, 24 June 2015
देश भर में पत्रकाराें पर हमला व हत्या चिन्ता का विषय है :-
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीआरपी और विज्ञापन से हाेने वाले मुनाफ़े में व्यस्त है। प्रिंट मीडिया भी अब टीवी और सोशल मीडिया पर निर्भर हो चुका है। उसकी हालत भी उन जैसी ही हो चुकी है। प्रिंट में छपे निजी या सरकारी विज्ञापनों में समाचारों काे तलाश करने के बाद पढ़ने माैका मिलता है।
ऐसे में पत्रकारों व समाचार कर्मियाें की सुरक्षा कैसे सम्भव है...???
पत्रकारिता पूर्व में समाज सेवा की श्रेणी में आती थी। परन्तु 21वीं सदी नें पत्रकारिता अब व्यापार हाे चुका है। अभी समाज सेवा की भावना रखने वाले कुछ पत्रकार जीवित हैं पर इनकी हत्या हाे रही है, पूरे भारत में। सुरक्षा के आभाव में पत्रकारिता की मृत्यु हाे जायेगी।
Monday, 8 June 2015
गाे-दान नहीं, नेत्रदान :-
कल दिनांक 06.06.2015 काे मेरे परिवार (माँ, पापा, मैं और पत्नी) ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया है कि, परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु पर हमारा परिवार गाे-दान अथवा अन्य नहीं करेगा। बल्कि हमसब "नेत्र-दान" करेंगे।
#DonateEye
#नेत्रदान
Thursday, 28 May 2015
The Forget Story - Tribute to Late Nabi Ahmad
Saturday, 23 May 2015
"क्या हुआ तेरा वादा":-
अधिवक्ता कल्याण की योजनाएं- युवा अधिवक्ताआें काे भत्ता, 5 लाख का बीमा एवं पेंशन कब तक उत्तर प्रदेश सरकार व बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश के मध्य विचार और क्रियान्वयन के आश्वासन में फंसी रहेंगी...???
2011-12 के चुनाव में स.पा. एवं बार के सदस्याें ने इन याेजनाओं काे लागू करने का वादा किया था।
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यहां एक गाना याद आया, "क्या हुआ तेरा वादा"
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जहां तक मुझे पता है, वर्तमान में बार काउंसिल के 25 में से ज्यादातर स.पा. से किसी ना किसी रूप में जुड़े हैं अथवा लाभान्वित हैं।
सविनय निवेदन है कि कुछ लाभ हम वाेटराें काे भी उपलब्ध करायें, उपराेक्त याेजनाओं के द्वारा।
नाेट:- अगर मेरी उपरोक्त बातें अवमानना की श्रेणी में आती हाे ताे, मैं समग्र अधिवक्ता हित में अवमानना की कार्यवाही काे सह्रदय तैयार हूँ।
सभी मित्राें का धन्यवाद के साथ निवेदन है कि उक्त याेजनाओं के लागू हाेने में हाे रहे विलम्ब पर अपने विचार दें।
समझ के परे है यह विलम्ब...???
न्यायिक अधिकारियों के कितने पद खाली हैं, भारत में (as on 20.03.2025) by #Grok
भारत में न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों की संख्या समय-समय पर बदलती रहती है, क्योंकि यह नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति, और स्वीकृत पदों की संख्य...
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वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में...
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एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलस...
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Link of Bill:- एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 का प्रारुप विधेयक का प्रावधान :- विधेयक के प्रमुख प्रावधान विधेयक में बार काउंसिल की संरचना...