बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश द्वारा तिथि 20/2/2015 काे विराेध दिवस के रूप में एक दिन का कार्य से विरत प्रस्तावित किया गया है। कार्य से विरत में न्यायालयों के साथ-साथ हर जिले के रजिस्ट्री अॉफिस, वाणिज्य कर विभाग, आयकर विभाग, फाेरम एवं समस्त सरकारी विभागों में भी हम सब अधिवक्ताआें काे कार्य से विरत रहना समय की मांग है। आर्थिक हानि सरकार काे हम अधिवक्ताआें के कल्याण की याेजना काे लागू करने के लिए प्रेरित करेगी। इस संदेश काे उत्तर प्रदेश के सभी अधिवक्ताआें के मध्य पहुंचा दे ताकि बार काउंसिल का यह आवाहन पूरा हाे सके।
हम अधिवक्ता दूसराें के अधिकाराें के लिए ताे सदैव लड़ते है परन्तु यह समय पुरानी बातों काे भूलकर बार काउंसिल अॉफ उत्तर प्रदेश के आंदोलन का समर्थन करते हुए समग्र अधिवक्ता कल्याण में कल 20.02.2015 काे कलम-बंद कार्य से विरत रहिए।
धन्यवाद।
निवेदक- आपका
अंशुमान दुबे (अधिवक्ता)
पूर्व उपाध्यक्ष, दी बनारस बार एसाेसिएशन, वाराणसी।
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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