परिवर्तन के दाैर में भारतीय समाज है आैर उसका असर राजनीति पर भी पड़ रहा है।
65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, जाे काम चाहती है काेरे वादे नहीं, यह है 21वीं सदी का भारतीय लाेकतन्त्र।
सभी सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं से सविनय निवेदन है कि कृपया काम करें आैर चुनावी वादाें काे पूरा करने का उचित प्रयास करें अन्यथा एक काे 60 साल के सत्ता के बदले शून्य (0) मिला है आैर दूसरे काे नाै माह की सत्ता पर तीन (3), वाह मेरे भारतीय भाइयाें आैर बहनाें आपने ताे साबरमती के संत जैसा कमाल कर दिया।
बनारसी अंदाज में कहूं ताे, "बा रजा दिल्ली बा, ऐके कहल जाला वाेट क चाेट, कुछ लाेग त सहरावे लायक भी नाही बचलन आैर कुछ लाेग बचल हुअन त खाली खुजावे खातिर। त्रिभुज बना के एक दूजे क खुजावा।"
वशिष्ठ जी भगवान श्रीराम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की एक चौपाई में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा हैं कि, "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ।" इस प्रकरण पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत हैं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि, "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है। जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं। मरण अगर प्रभु के हाथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपने हाथ में है।" @KashiSai
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