राजेंद्र कृष्ण द्वारा रचित गोपी फिल्म का यह गीत कितना प्रासंगिक है...!!!
हे रामचन्द्र कह गए सिया से
आइसा कलजुग आएगा
हंसा चुगेगा दाना दुन्न्का
कौव्वा मोती खाएगा
सिया ने पूछा, "क्या कलजुग में धरम करम को कोई नहीं मानेगा?"
तो प्रभु बोले :-
धरम भी होगा, करम भी होगा
परंतु शर्म नहीं होगी
बात बात पर मात पिता को
लड़का आँख दिखाएगा
राजा और प्रजा दोनों में
होगी निस दिन खींचातानी
कदम कदम पर करेंगे दोनों
अपनी अपनी मन मानी
जिसके हाथ में होगी लाठी
भैंस वही ले जाएगा
सुनो सिया कलजुग में काला धन और काले मन होंगे
चोर उचक्के नगर सेठ और प्रभु भक्त निर्धन होंगे
जो होगा लोभी और भोगी वो जोगी कहलाएगा
मंदिर सूना सूना होगा भरी रहेंगी मधुशाला
पिता के संग संग भरी सभा में नाचेगी घर की बाला
कैसा कन्यादान पिता ही कन्या का धन खाएगा
मूरख की प्रीत बुरी जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ चैन भागे ही भागे
काजल की कोठारी में कैसे ही जतन करो
काजल का दाग भाई लागे ही लागे
कितना जती हो कोई कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे
सुनो कहे गोपी राम जिसका है रामकाम
उसका तो फंदा गले लागे ही लागे।
Comments
Post a Comment