एक राेज़ सूफ़ी संत 'शेख़ फरीद' अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। तभी एक आदमी वहां से एक गाय को ज़बरदस्ती खींचता हुआ निकला।
यह देखकर फरीद ने अपने शिष्यों से पूछा, "तुम्हारे विचार में कौन किससे बंधा है?"
उनकेे शिष्यों ने जवाब दिया कि स्पष्ट है, गाय ही उस आदमी से बंधी है।
फरीद ने फिर पूछा, "अच्छा यह बताओ, कौन किसका मालिक है?"
सब शिष्य इस अजीब से प्रश्न पर हंसने लगे और बोले कि वह आदमी ही मालिक था और कौन? गाय तो पशु है, वह मनुष्य कि स्वामिनी कैसे हो सकती है?"
"अच्छा, यह बताओ कि अग़र रस्सी को तोड़ दिया जाय तो क्या होगा?" फरीद ने पूछा।
शिष्यों ने उत्तर दिया, "तब तो गाय भागने की कोशिश करेगी।"
"और फिर उस आदमी का क्या होगा?" फरीद ने पूछा।
"स्पष्ट रूप से तब तो यह आदमी गाय का पीछा करेगा और गाय के पीछे-पीछे भागेगा।" तुरंत जवाब आया।
जैसे ही शिष्यों ने यह जवाब दिया, वे समझ गए कि कौन किससे बंधा है?
आज यदि हम सोचें कि आज के परपेक्ष्य में हम लोग कार, स्कूटर, बाइक, लैपटॉप, कम्पूटर, डीवीडी, मोबाईल, टीवी इत्यादि भोग विलास की वस्तुओं के मालिक हैं या यह भोग विलास की वस्तुएं हमारी मालिक हैं?
हम इन वस्तुओं का उपयोग अपने लाभ के लिए ही कर रहे हैं या इन वस्तुओं के कारण हमारा नुकसान हो रहा है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम इन वस्तुओं के इतने अधिक आदी हो चुके हैं कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक से नहीं कर पा रहे?
हमें यह समझना होगा कि हमें इन भोग विलास के साधनों का उपयोग अपने गुलाम के रूप में करना है और किसी भी कीमत पर इनका गुलाम नहीं बनना है।
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