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Showing posts from May, 2018

तुम इक गोरख धन्दा हो!! #AdvAnshuman

Naz Khialvi  (1947-2010, real name: Muhammad Siddique) was a Pakistani poet and radio broadcaster from near the city of Faisalabad, most famous for his poem “Tum Ik Gorakh Dhanda Ho”. This philosophically and spiritually rich text explores the paradoxes of religion like the prevalence of evil and injustice, selective divine intervention, and other indecipherable aspects of God. The poem also points toward the unity of human religious experiences. At the end, after listing his grievances, the bewildered poet ultimately accepts divine incomprehensibility. कभी यहाँ तुम्हें ढूँढा, कभी वहाँ पहुँचा तुम्हारी दीद की ख़ातिर कहाँ-कहाँ पहुँचा ग़रीब मिट गए, पामाल हो गए लेकिन किसी तलक न तेरा आज तक निशां पहुँचा हो भी नहीं और, हर जा हो हो भी नहीं और, हर जा हो तुम इक गोरख धन्दा हो! हर ज़र्रे में किस शान से तू जल्वा-नुमा है हैरां है मगर अक़्ल के कैसा है तू, क्या है? तुम इक गोरख धन्दा हो! तुझे दैर-ओ-हरम में मैंने ढूँढा तू नहीं मिलता मगर तशरीग-फ़र्मा तुझे अपने दिल में देखा है! तुम इक गोरख धन्दा ह

काले चुनाव की जंजीर :: विमल राजस्थानी

जब तक इस काले चुनाव की टूटेगी जंजीर नहीं तक तक पायल मौन रहेगी, कूकेगी मंजीर नहीं यह चुनाव की बाढ़ भयंकर बहे आ रहे पत्थर-कंकर भोली जनता, मजबूरी में पूजे-माने जिनको शंकर ये शिव-शंकर नाग-नाथ हैं ये बम भोले साँप-नाथ हैं इनके दायें-बाँये-आगे-पीछे विषधर नाग साथ हैं इन्हें झुमातीं, इन्हें लुभातीं, आधुनिकाएँ सुर-बालाएँ पल भर को भी इन्हें रूलाती दीन-दुखी की पीर नहीं लोकतंत्र तो कफन ओढ़कर कब का सोया पड़ा चिता पर इसे चाहिए और कुछ नहीं सफल क्रांति की चिनगारी भर जब तक दीन दयालु सुधी जन  जाते नहीं सुभाष चन्द्र बन तब तक चक्के जाम रहेंगे सदा विधाता वाम रहेंगे सदा विधाता वाम रहेंगे इस शोषण का अंत न होगा, पतझर छोड़ वसन्त न होगा जब तक कवि की लौह लेखनी बन जाती शमशीर नहीं योग्य व्यक्ति झख मारेंगे ही नेता सब रस गारेंगे ही त्राहिमाम की मुद्रा में हम प्रभु को कलप पुकारेंगे ही दल दलदल-सा लीलेंगे ही ओझा हमको कीलेंगे ही जीने को तो उठते-गिरते जीते हैं हम, जी लेंगे ही लेकिन जब तक ये चुनाव हैं, छल-छद्मी हैं पेंच दाँव हैं तब तक कोटि-कोटि इन आँखों का सूखेगा नीर नहीं यह विधान तो सड़ा-