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Showing posts from 2019

एक वकील का दर्द, वकील की जुबानी:-

मै एक वकील हूँ, मै डबल ग्रेजवेट कहलाता हूँ। मै एक वकील हूँ मैं ऑफिसर ऑफ़ द कोर्ट कहलाता हूँ। मै एक वकील हूँ पैरवी करता हूँ आपने क्लाइंट के। लिये फिर चाहे वो खुनी हो या कातिल। मेरे काम में बड़ा है रिस्क एक जीत जाये तो दूसरा दुश्मन, दूसरा जीत जाये तो पहला दुश्मन। फिर भी मुझे ना तो कोई प्रोटेक्सन नहीं मिलता एडवोकेट प्रोटेक्सन बिल पास नहीं होता मैं सबसे बड़े संघ का सदस्य हूँ परंतु मुझे सामूहिक बीमा नहीं मिलता मैं बीमार होता हूँ संघ की आस तकता हूँ मुझे मेडिकल बीमा नहीं मिलता मुझे किराये पर कोई मकान नहीं देता मुझे संघ की तरफ से अधिवक्ता आवास नहीं मिलता । मै जिनके लिये पैरवी करता हूँ उनके पोर्टेक्सन के लिये ढेरों नियम और कानून हैं परंतु मेरे प्रोटेक्सन के लिये कोई कानून नहीं मुझे लोन देने मैं बैंकों के द्वारा आना कानी किया जाता है। मै हमेशा दूसरों की सोचता हूँ पर मेरी कोई नहीं सोचता क्योकी मै एक वकील हूँ मुझे ईश्वर ने मौका दिया है पीड़ित और शरणागत के रक्षा की। मैं अपने काम के प्रति सजग हूँ तभी तो पक्षकार के साथ न्यायलय के कार्य निरंतर होते हैं । मुझको फीस देने मे लोगो को तकलीफ होती है

वकीलों से इतनी नफ़रत, क्यों?

वाह रे मीडिया? वकीलों को सिर्फ गुण्डा कहने से काम नहीं चलेगा।  कुछ ऐसा करिश्मा पैदा करो ताकि, वकीलों को आतंकवादी घोषित किया जा सके और कचहरी को आतंक का अड्डा तब जाकर, सरकार में बैठे तुम लोगों के अब्बा लोगों को सुकून मिलेगा।  इतनी नफ़रत, किस काम की?  रिव्यू पिटीशन के लिए भी किसी न किसी वकील का ही सहयोग लेना पड़ा, फिर भी इतनी नफ़रत, समझ से परे है। क्या पुलिस को तानाशाही पसंद है, हम जिसको चाहे मार दे, उठा ले, हत्या कर दे पर हम पुलिस वालों से कोई प्रश्न न किया जाए? ऐसा अधिकार चाहिए तो फिर गुण्डा और आतंकी कौन हुआ, यह बताना आवश्यक नहीं रह गया है। क्षमा के साथ निवेदन है, ईमानदारी से एक माह नौकरी करके देखो, 32वें दिन त्यागपत्र लेकर उसी मुख्यालय के सामने खड़े मिलोगे, जहां 10 घण्टे दलाल मीडिया के साथ धरना प्रदर्शन कर रहे थे। एक आप लोग सभ्य, संस्कारी और मर्यादित हो और दूसरा आपका हुक्मरान बाकी जनता, जज, वकील, आदि सब बेईमान, भ्रष्ट और अमर्यादित है? मीडिया की बात ही निराली है, जब चाहे किसी को सिर पर बैठा ले और जब चाहे किसी को पैरों तले कुचल दे। इस प्रकरण में एक बात ध्यान देने योग्य है, कि

तीन लोकों में न्यारी काशी में देवाधिदेव महादेव तो बसते ही हैं, इस नगरी को 11वें रुद्रावतार हनुमान का भी धाम बनाने का श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। संकटमोचन के रूप में उन्होंने तुलसीदास जी को यहीं दर्शन दिए:-

वाराणसी : मन मंदिर में भगवान श्रीराम को बसाए गोस्वामी तुलसीदास को हनुमत प्रभु का बाल रूप सदा ही भाया। मानस की रचना के दौरान सनातन समाज को सबल और जागृत बनाने में भी उन्हें प्रभु का यही रूप अधिक याद आया। उन्होंने मंदिरों के साथ अखाड़ों को जोड़कर समाज के शौर्य प्रकटीकरण का जतन किया। काशी के टोले-मोहल्लों में शौर्य नायक हनुमान के 12 मंदिरों का उन्होंने निर्माण कराया, जिनमें सात को बालरूप हनुमान से ही सजाया। कागजी प्रमाणों का अभाव है, लेकिन इन मंदिरों के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा का भाव है। गंगा तट पर जहां यायावर तुलसी को स्थायी ठौर मिला, वहां उन्होंने दक्षिणमुखी हनुमत प्रतिमा स्थापित की। जीवन पर्यत वे यहीं उनके चरणों में बैठकर ध्यान लगाया। तब नगर के वन क्षेत्र कर्णघंटा में भी तुलसीदास ने दक्षिणमुखी बाल रूप हनुमान की मूर्ति सजाई। पक्के महाल के राजमंदिर क्षेत्र में बूंदी राजघराने के परकोटा भवन पर गोस्वामीजी ने हनुमान मंदिर की जो स्थापित की, वह भी बालरूप, दक्षिणमुखी व एक विशाल वृक्ष के नीचे है। दारानगर क्षेत्र के महामृत्युंजय मंदिर में गोस्वामीजी ने दो प्रतिमाओं की स्थापना की। एक मुख्य प्रां

महिला कार्यस्थल कानून, 2012 में किन शिकायतों का है प्रावधान:-

कार्यस्थल कानून, 2012 में बताया गया है कि किन परिस्थितियों में एक महिला कार्यस्थल पर किन स्थितियों के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है, यह स्थितियां निम्न प्रकार की हो सकती हैं:  * यदि किसी महिला पर शारीरिक सम्पर्क के लिए दबाव डाला जाता है या फिर अन्य तरीकों से उस पर ऐसा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है या बनाया जाता है।   * यदि किसी भी सहकर्मी, वरिष्ठ या किसी भी स्तर के कार्मिक द्वारा उससे यौन संबंध बनाने के लिए अनुरोध किया जाता है या फिर उस पर ऐसा करने के लिए दबाव डाला जाता है।   * किसी भी महिला की शारीरिक बनावट, उसके वस्त्रों आदि को लेकर भद्दी, अशालीन टिप्पणियां की जाती हैं तो यह भी एक कामकाजी महिला के अधिकारों का हनन है।   * किसी भी महिला को किसी भी तरह से अश्लील और कामुक साहित्य दिखाया जाता है या ऐसा कुछ करने की कोशिश की जाती है।  * किसी भी तरह से मौखिक या अमौखिक तरीके से यौन प्रकृति का अशालीन व्यवहार किया जाता है।  कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिए वर्कप्लेस बिल, 2012 भी लाया गया जिसमें लिंग समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर कड़े कानून बनाए गए

देवी देवताओं की आरती के बाद, क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र

हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा समपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोला जाता है । कर्पूरगौरं मंत्र:- कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् । सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।। - इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है । अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा क

ब्राह्मण समाज के तथाकथित ठेकेदार फिल्म Article 15 का विरोध कर रहे हैं:-

अरे स्वयंभू विद्वानों यह बेटियों के ऊपर हुये अत्याचार पर बनी फिल्म है, जहाँ तक मेरी जानकारी है। आप सबसे सादर सविनय निवेदन है कि, विरोध करके अभिव्यक्ति की आजादी का हनन न करे। आप लोगों के इन कृत्यों से हर सामान्य ब्राह्मण का अपमान होता है। "भारतीय संविधान का Article 15 क्या कहता है, वह आप सबके लिए उपलब्ध है:- भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 (Article 15 in Hindi) - धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध:- विवरण (1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। (2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर-- (क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या (ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा। (3) इस अनुच्छेद की

संविधान में दिये गये मूल कर्तव्य समस्त भारतीयों पर लागू होते हैं, चाहे वह जनता हो अथवा प्रधान सेवक:-

भारतीय संविधान अनुच्छेद 51A  :: मूल कर्तव्य:- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह- (क) संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ; (ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उन का पालन करे; (ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे; (घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे; (ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है; (च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे; (छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे; (ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे; (झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हि

Aawaz Deke Hamen Tum Bulao लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ अभी तो मेरी ज़िंदगी है परेशां कहीं मर के हो खाक भी न परेशां दिये की तरह से न हमको जलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ मैं धड़कन के हर राग में बस रहा हूँ ज़रा दिल की जानिब निगाहें झुकाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ ना होंगे अगर हम तो रोते रहोगे सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे जो तुम पर मिटा हो उसे ना मिटाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

सब्र और सच्चाई

‘सब्र’ और ‘सच्चाई’ एक ऐसी सवारी है, जो अपने सवार को कभी गिरने नहीं देती, ना किसी के कदमो में, और ना किसी की नज़रों में...!!

कबीर

कबीर के literature काे भी तत्समय poor की संज्ञा दिया गया था। आज वर्षों बाद कबीर के विचार जीवित हैं परन्तु विरोधियों का ना ताे विचार रहा और ना ही उनका अस्तित्व। कबीर कहते हैं- चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस। ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।। भावार्थ:- जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं वे ज्ञान - मोती कैसे चुगेगे ? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं।

ऐ मालिक तेरे बंदे हम - भरत व्यास

ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हंसते हुये निकले दम जब ज़ुलमों का हो सामना तब तू ही हमें थामना वो बुराई करें हम भलाई भरें नहीं बदले की हो कामना बढ़ उठे प्यार का हर कदम और मिटे बैर का ये भरम नेकी पर चलें ये अंधेरा घना छा रहा तेरा इनसान घबरा रहा हो रहा बेखबर कुछ न आता नज़र सुख का सूरज छिपा जा रहा है तेरी रोशनी में वो दम जो अमावस को कर दे पूनम नेकी पर चलें बड़ा कमज़ोर है आदमी अभी लाखों हैं इसमें कमीं पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा तेरी कृपा से धरती थमी दिया तूने हमें जब जनम तू ही झेलेगा हम सबके ग़म नेकी पर चलें 

मेरे राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं:-

राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं। इस वाक्य से इस पोस्ट की शुरुआत कर रहा हूँ, क्योंकि यह सत्य है। इतिहास गवाह है, जिस किसी ने "राम-नाम" को खण्डित करने का प्रयास किया वह स्वयं खण्डित हो गया। मैं सिर्फ उस इतिहास की बात करता हूँ जो मैंने अपने 44 साल के जीवन में देखा व सुना है। ***पहली घटना जिसने राम-नाम की राजनीति में ताला खुलवाया, उसका शरीर खण्ड-खण्ड हो गया। ***दूसरी घटना, जिसने राम-नाम पर रथयात्रा निकालकर राजनीति की, उनके प्रधान बनने का सपना तीन बार खण्ड-खण्ड हो गया। ***तीसरी घटना जिसका दायित्व था कि उसे राम-नाम की राजनीति को रोकना है, उसने ऐसा नहीं किया तो उसके ही लोगों ने उसे मरने के बाद राजघाट, दिल्ली के बाहर फेंक दिया। इसलिए राम-नाम की राजनीति बंद करो और राम का नाम लेकर राम की जनता के लिए काम करो।

उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!"

माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदरणीय श्री रंजन गोगोई जी का बयान, "उच्चतम न्यायालय ख़तरे में! अब कोई संस्थान नहीं बचा!" मैं यह नहीं जानता कि, न्यायमूर्ति गोगोई साहब गलत हैं। मैं यह भी नहीं जानता कि, आरोप लगाने वाली महिला सच बोल रही है। लेकिन वकालत जीवन के सोलह साल में मैंने यह अनुभव जरुर किया कि, जिस प्रकार का आरोप गोगोई साहब पर लगाया गया, वह असाधारण आरोप है। भारतीय न्यायपालिका की सर्वोच्च सत्ता को भी उस सामान्य भारतीय की तरह सड़क पर ला खड़ा कर  दिया जो इस प्रकार के आरोपों से रोजाना दो चार होते रहते हैं। मित्रता सूची में मेरे साथ कई न्यायाधीशगण भी जुड़े हैं और गोगोई साहब पर लगे इस प्रकार के आरोप से हथप्रभ भी हुए होंगे। होना भी लाजिमी है। सवाल उनके शीर्ष अधिकारी के सम्मान का जो है लेकिन जब यही आरोप किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत, किसी जमीनी विवाद के तहत अथवा किसी प्रतिशोध की भावना के तहत एक सामान्य जीवन जीने वाले इंसान पर लगता है तो इसका दर्द वह आरोपी व्यक्ति, उसका परिवार, उससे जुड़े लोग महसूस कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका कत्तई यह मीमांसा करने का जहमत नहीं उठाती

काशी Smart City:-

Social media i.e. facebook पर प्रश्न पूछ कर व smart city पर चर्चा कर, किसे बेवकूफ बनाने का प्रयास हो रहा है...??? काशी को smart city बनाने को जिम्मेदार नेता व अधिकारी के घर, गाड़ी, परिवार, रिश्तेदार मित्र व चेले सब रिश्वत के पैसे से जब तक smart बनते रहेंगे, तब तक मेरी प्यारी काशी (Varanasi) कभी smart नहीं बन पायेगी। मैं स्वयं सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सभागार में उपस्थित था जब काशी को smart city बनाने के प्रयास कर रहे, नगर आयुक्त के नेतृत्व में, निम्न दर्जें का presentation दिया गया था। आप लोगों ने काशी को smart तो बनाया नहीं, पर गंदगी में निम्नत्म रैंक लेकर अपनी कार्यशैली का परिचय तो सबको अवश्य करा दिया। इसके लिए आपसब धन्यवाद व बधाई के पात्र हैं। तर्क भी तैयार है जनता का सहयोग नहीं मिलता। यहाँ एक बात स्पष्ट करना है कि जो विभाग और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों ने जनता का विश्वास खो दिया हैं तथा जिनमें पद के प्रति निष्ठा ही न हो ऐसे नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों का जनता सहयोग करें भी तो किस उम्मीद में धोखा खाने के लिए..??? बड़ी उम्मीद से हम काशीवासियों ने सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुन

#JNU राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता:-

राष्ट्र के गद्दार ढूंढों प्रतियोगिता, दिल्ली के जाने माने JNU से उत्पन्न हुई है और पूरे चाव से चल व चलायी जा रही है गद्दार ढूंढो की नयी लीला। सब लगे हैं तलाश में, संयमरहित व त्वरित प्रतिक्रिया वादी हमारा Electronic मीडिया भी लगा है तलाश में, बहुते बड़े-बड़े नेता भी लगे हैं तलाश में और तो और पुलिस व कोर्ट भी और सबके अपने-अपने गद्दार हैं वर्तमान से इतिहास तक। परन्तु मिल नहीं रहा है किसी को, क्या करें वे भी जब जयचन्दों की संख्या सत्ता से लेकर जनता तक बहुसंख्यक हो तो किसी को गद्दार कहने में डर लगना स्वाभाविक है, कहीं कोई अपना न निकल आये? बहुत पुरानी कहावत है कि, "एक उँगली दूसरों पर उठाने वाले की तीन उँगलियाँ अपनी ओर होती हैं।" कानून हाथ में लेकर किसी को पीटकर यदि हम गर्व से सिर ऊँचा करते हैं तो, क्या भारतीय संविधान का सम्मान न करना गद्दारी नहीं है? जबकि सामने वाला अहिंसक हो। जिस कार्य के लिए वेतन ले रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार करना गद्दारी नहीं है? जिन राष्ट्रवादी सिद्धातों पर राजनीतिक दलों का गठन हुआ है, उसपर न चलकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का समर्थन व सत्ता पाने के लिए उनका उपयोग

न्याय और न्यायालय पर सबका हक है???

धनवान के पास न्याय पाने के अनेकों साधन है, यह कथन सत्य है। इसपर काेई विवाद न था आैर ना ही है। परन्तु उनका क्या जाे संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं...??? मेरे विचार में अंग्रेजाें के द्वारा बनाये गये कानून सामन्तवाद की साेच से उत्पन्न हुये हैं आैर यह सामन्तवादी साेच आजतक हमारे सिस्टम पर हावी है। तभी ताे जिसकाे भारतीय गणतंत्र में सेवक (नेता व अधिकारी) कहा जाता है, वाे लाल नीली पीली बत्ती वाली गाड़ी में घूमता है आैर जिसकाे मालिक (मतदाता) कहा तथा समझा जाता है वह किस हाल में है... यह बताना आवश्यक नहीं है। न्याय आैर न्यायालय पर सबका हक है, यह किताबाें में अंकित है। परन्तु भारत की यह विडम्बना है कि यह हकीकत नहीं है। पर हम भारतीय सदैव कहते रहेंगे कि हमें भारत पर नाज़ है। जय भारत जय गणतन्त्र।