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Showing posts from October, 2019

तीन लोकों में न्यारी काशी में देवाधिदेव महादेव तो बसते ही हैं, इस नगरी को 11वें रुद्रावतार हनुमान का भी धाम बनाने का श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। संकटमोचन के रूप में उन्होंने तुलसीदास जी को यहीं दर्शन दिए:-

वाराणसी : मन मंदिर में भगवान श्रीराम को बसाए गोस्वामी तुलसीदास को हनुमत प्रभु का बाल रूप सदा ही भाया। मानस की रचना के दौरान सनातन समाज को सबल और जागृत बनाने में भी उन्हें प्रभु का यही रूप अधिक याद आया। उन्होंने मंदिरों के साथ अखाड़ों को जोड़कर समाज के शौर्य प्रकटीकरण का जतन किया। काशी के टोले-मोहल्लों में शौर्य नायक हनुमान के 12 मंदिरों का उन्होंने निर्माण कराया, जिनमें सात को बालरूप हनुमान से ही सजाया। कागजी प्रमाणों का अभाव है, लेकिन इन मंदिरों के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा का भाव है। गंगा तट पर जहां यायावर तुलसी को स्थायी ठौर मिला, वहां उन्होंने दक्षिणमुखी हनुमत प्रतिमा स्थापित की। जीवन पर्यत वे यहीं उनके चरणों में बैठकर ध्यान लगाया। तब नगर के वन क्षेत्र कर्णघंटा में भी तुलसीदास ने दक्षिणमुखी बाल रूप हनुमान की मूर्ति सजाई। पक्के महाल के राजमंदिर क्षेत्र में बूंदी राजघराने के परकोटा भवन पर गोस्वामीजी ने हनुमान मंदिर की जो स्थापित की, वह भी बालरूप, दक्षिणमुखी व एक विशाल वृक्ष के नीचे है। दारानगर क्षेत्र के महामृत्युंजय मंदिर में गोस्वामीजी ने दो प्रतिमाओं की स्थापना की। एक मुख्य प्रां