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Showing posts from 2022

कबीर :: शिरडी साईं :: महात्मा गांधी :-

कबीर ने करघे पर बैठकर ऐसी नायाब चादर बुनी, जिसे ऋषि-मुनि सबने ओढ़ी, फिर जस की तस धर दीनी चदरिया।  साईं बाबा चक्की में रोग-शोक पीसकर सबको मुक्त करते थे, परन्तु बाबा कबीर चलती चाकी देख रोते थे। ‘चलती चाकी देख दिया कबीरा रोय’ अथवा 'चक्की में जाकर कोई साबुत नहीं बचता'।  साईं बाबा मानते थे, आटे की तरह बिखराे मत, केन्द्र की तरफ जाओ। कबीर के कथन में न गेहूँ बचता है और न घुन।  साईं बाबा एवं कबीर, दोनों के ही बीच में चक्की जन कल्याण का अद्भुत उपकरण रहा हैं।  कैसी विचित्र बात है कि, कबीर के चार सौ साल बाद साईं बाबा ने चक्की को जनकल्याण के सन्देश का माध्यम बनाया और साईं बाबा के लगभग पाँच दशक बाद महात्मा गाँधी ने चरखे को परिवर्तन का ज़रिया बनाया।  जड़ के नीचे तीनाें संताें में एक समानता 'राम' का नाम रहा है। अगर कबीर 'निर्गुण राम' में रमे थे ताे साईं बाबा काे सब 'साईं राम' कह कर भजते हैं तथा गांधी 'हे राम' कह कर उपासना करते थे। यह भी एक जड़ हो सकती है, जिससे ये संत जुड़े थे।  चक्की व चरखा आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन के प्रभावी माध्यम बन गये। प्रतीत हाेता ह

नफ़रत कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो ख़ुद ब ख़ुद बढ़ सके। इसे तो जब तक बढ़ाया नहीं जाएगा, यह बढ़ नहीं सकती:-

नफ़रत कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो ख़ुद ब ख़ुद बढ़ सके। इसे तो जब तक बढ़ाया नहीं जाएगा, यह बढ़ नहीं सकती। इस वक़्त समाज में नफ़रत अगर बढ़ रही है और तेज़ी से बढ़ रही है, तो यह इस बात का खुला सबूत है कि एक गिरोह ऐसा मौजूद है को इसे बढ़ाने कि कोशिश में लगा है और नई नई साजिश कर के नफ़रत को फ़ैला रहा है। अब समाज के जो लोग नफरतों से नफ़रत करते हैं, उन्हें चाहिए कि नफ़रत फैलाने वाले लोगों को पहचाने और उनको इससे रोकें। उनका हाथ पकड़ें और उन्हें ऐसी हर जगह से दूर रखें जहां से वह अपने गंदे ज़हन का इस्तेमाल करके लोगों के बीच में दुश्मनी पैदा कर सकें। यह न सिर्फ़ समाज और देश की ज़रूरत है, बल्कि यह इंसानियत को बचाने के लिए भी ज़रूरी है। अधिवक्ता अंशुमान दुबे वाराणसी  #AdvAnshuman #अंशुमानदुबे