बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसमें हमेशा महिलाएं ही पीड़ित होती हैं।बलात्कारियों को अदालत से दोष सिद्ध हो जाने के बाद ही सरकारी तौर पर बलात्कारी माना जाता है और भारत में बलात्कार करना जितना आसान है उसको दोषी साबित करना उतना ही कठिन है।इस अपराध की पीड़िता अकेली पुलिस में केवल इसलिए शिकायत करने ही हिम्मत नहीं जुटा पाती क्योंकि पुलिस स्टेशन पहुँचने में तो कोई दिक्क़त नहीं होती परन्तु उसके बाद उसको अन्देशा रहता है कि जिस बात की शिकायत वह लेकर पहुंची है कहीं वह काम उसके साथ पुलिस स्टेशन में न दोहरा दिया जाय।अब ऐसी छवि वाली पुलिस जिस तरह की विवेचना करके अदालत तक केस पहुंचाती है उसमें शातिर किस्म के आरोपी से साठ गाँठ करके कुछ ऐसी त्रुटियाँ छोड़ दी जाती हैं जिनकी बुनियाद पर दोष सिद्ध न होने के कारण आरोपी बरी हो जाता है।
एक बार मायावती ने बयान दिया था कि उनकी पार्टी (ब.स.पा.) किसी बलात्कारी को चुनाव में टिकिट नहीं देगी।यह बात उन्होंने दोष सिद्ध अपराधियों के लिये कही होगी जबकि ऐसे अपराधियों को तो चुनाव आयोग ही इजाज़त नहीं देता लिहाज़ा उनके इस कथन का कोई मूल्य ही नहीं रह जाता है।मायावती को देश की न्यायायिक व्यवस्था पर कितना ज़बरदस्त भरोसा है यह क़ाबिले तारीफ़ है।इसी भरोसे के बल पर उनको यह यक़ीन है कि अगर अदालत में चल रहे केस वाले किसी बलात्कारी को टिकिट दे दिया जाय तो उसका फ़ैसला तो होना नहीं है और अगर होता भी है तो गवाह इस लायक़ ही न छोड़े जायेंगे कि गवाही दे सकें और मुजरिम को सज़ा हो सके।
इस बात के सबूत में एक ही उदाहरण काफी है। दो भाइयों के ख़िलाफ़ बलात्कार और फिर हत्या का आरोप था। मायावती द्वारा उनमें से एक भाई को उ. प्र. विधानसभा के चुनाव में टिकिट दिया और वह MLA बन गया इसके बाद जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो दूसरे भाई को वहां टिकिट दिया परन्तु वह हार गया। न्यायायिक प्रक्रिया का यह हाल है कि एक अवधि (term) पूरी करने के बाद अब वह दोबारा भी विधायक चुना जा चुका है लेकिन अदालत में अभी तक मुक़द्दमे की सुनवाई सुचारू रूप से नहीं चल सकी है। मायावती जी उसी इलाक़े की रहने वाली हैं इसलिए अपने विधायक के चरित्र से अनभिज्ञ भी नहीं होंगी।
हमारे देश की महिला राजनीतिज्ञों की पसन्द जब बलात्कारी होंगे तो वह किस प्रकार बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठायेंगी।यह उदहारण तो केवल इसलिये दिया गया है क्योंकि इस पार्टी की मालिक महिला है वरना शायद कोई भी पार्टी बलात्कारियों से ख़ाली नहीं है।इस प्रकार से जब हर बड़ी पार्टी में बलात्कारी मौजूद हैं तो क्या राजनेताओं का बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना पीड़िताओं से मज़ाक़ करने जैसा नहीं है?
बलात्कार की शिकार महिला का सबसे ज़्यादा उत्पीड़न अदालत द्वारा फ़ैसले में देरी करके कियां जाता है क्योंकि फैसला होने तक वह बदनसीब मानसिक रूप से हर दिन प्रताड़ित सी महसूस करती है और अपने साथ घटित होने वाली घटना से ज़्यादा वह उस घड़ी को कोसती है जिस घड़ी उसने इन्साफ़ की आशा में अदालत का द्वार खटखटाया था। इस प्रकार यदि वह खामोश बैठ रहती तो केवल उसके अलावा बलात्कारी ही तक बात सीमित रहती परन्तु अदालत का भरोसा करके वह न्याय मांगने की जो ग़लती कर बैठती है उसके नतीजे में वह समाज, पुलिस, राजनेता व न्यायपालिका आदि हर जगह मानसिक रूप से बलात्कारित सी होती सी महसूस होती है और न्याय के रूप में अन्याय का शिकार हो जाती है।
लेखक :-
श्री शरीफ खान जी
जनपद-बुलंदशहर, उ. प्र.
Link of this article:-
http://teesrijungnews.com/
एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते ? ये बात सही है कि रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था और यह सब झूठ है। यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस
Comments
Post a Comment