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घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005

घरेलू हिंसा की परिभाषा :-

इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ घरेलू हिंसा शब्द का व्यापक अर्थ लिया गया है। इसमें प्रत्यर्थी का कोई भी ऐसा कार्य, लोप या आचरण घरेलू हिंसा कहलाएगा, यदि वह व्यथित व्यक्ति (पीडि़त) के स्वास्थ्य की सुरक्षा, जीवन, उसके शारीरिक अंगों या उसके कल्याण को नुकसान पहुंचाता है या क्षतिग्रस्त करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है। इसमें व्यथित व्यक्ति का शारीरिक दुरुपयोग, शाब्दिक या भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग शामिल है। (धारा 3-क) राज्य सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत सभी उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग एवं समस्त बाल विकास परियोजना अधिकारियों एवं समस्त प्रचेताओं को कुल 574 अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त संरक्षण अधिकारी संविदा के आधार पर स्वीकृत किये गये हैं। राज्य में अभी तक 87 गैर-शासकीय संस्थाओं को सेवाप्रदाता के रूप में पंजीकृत किया गया है तथा 13 संस्थाओं को आश्रयगृह के रूप में अधिसूचित किया गया है।

राज्य में सरकार के अधीन संचालित सभी जिला अस्पतालों, सेटेलाइट अस्पतालों, उपजिला अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को चिकित्सा सुविधा के रूप में अधिसूचित किया गया है। मजिस्ट्रेट द्वारा किसी प्रकरण में परामर्शदाता नियुक्त करने हेतु जिलों में परामर्शदाताओं की सूची उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग (जिला संरक्षण अधिकारी) द्वारा तैयार की जाती है। व्यथित महिलाओं को तुरंत राहत पहुंचाने आदि के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रावधान किया गया है। प्रत्येक जिले में आवश्यकतानुसार राशि आवंटित की गई है। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की उपयुक्त क्रियान्वति एवं प्रबोधन की दृष्टि से जिला महिला सहायता समिति को शीर्ष संस्था बनाया गया है।
व्यथित महिला किससे सम्पर्क करे-

संरक्षण अधिकारी से सम्पर्क कर सकती है। (सम्बन्धित उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास, बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं प्रचेता) सेवा प्रदाता संस्था से सम्पर्क कर सकती है। पुलिस स्टेशन से सम्पर्क कर सकती है। किसी भी सहयोगी के माध्यम से अथवा स्वयं सीधे न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकती है।
व्यथित महिला को राहत-

इस अधिनियम के अन्तर्गत व्यथित महिला को मजिस्ट्रेट उसके संतान या संतानों को अस्थाई अभिरक्षा, घरेलू हिंसा के कारण हुई किसी क्षति के लिए प्रतिकार आदेश एवं आर्थिक सहायता के लिए आदेश दे सकते हैं। साथ ही आवश्यकता पडऩे पर 'साझा घरÓ में निवास के आदेश भी दिए जा सकते हैं। अधिनियम की धारा 33 के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा पारित संरक्षण आदेश की अनुपालना नहीं करने पर प्रत्यर्थी को एक वर्ष तक का दंड एवं बीस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों का दंड दिया जा सकता है।

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